डा. मनीष जिंदल को हर्निया के इलाज में महारथ हासिल


वाराणसी (काशीवार्ता)। प्रत्येक मरीज अपने अंदर अपना डॉक्टर रखता है। डॉक्टर जीवन के रक्षक हैं और हम इस तथ्य पर बहुत विश्वास करते हैं। वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान आधुनिक सर्जिकल उपकरणों के आविष्कार के साथ चिकित्सकीय तकनीकों में निरंतर सुधार के साथ आगे बढ़ रहा है। आज किसी भी जटिल बीमारी का इलाज संभव है। अब लोग ओपन सर्जरी की जगह लैप्रोस्कोपिक सर्जरी को प्राथमिकता दे रहे हैं। इस सर्जरी को वाराणसी में स्थापित करने में डा. मनीष जिंदल का बड़ा योगदान है। वे गुरुधाम कालोनी स्थित वाराणसी हॉस्पिटल के निदेशक हैं। जहां उन्होंने लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के माध्यम से हर्निया का इलाज शुरू किया। इसमें कम समय में उचित इलाज होता है। हालांकि इसके पूर्व बनारस में हर्निया का इलाज ओपेन सर्जरी से ही किया जाता था। डॉ.मनीष बताते हैं हर्निया एक गंभीर बीमारी है, जो अधिकांश लोगों में पायी जाती है। यह ऐसी बीमारी है, जो न केवल दर्द देती है बल्कि इसका समय पर इलाज न किया जाये तो चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है। पेट के विशेष हिस्से की मांसपेशियां कमजोर होने के कारण छेद हो जाने से अंदर का अंग उभर कर बाहर आने लगता है जिसे हर्निया कहा जाता है। डा.मनीष विगत दो दशक से हर्निया का लैप्रोस्कोपी विधि से इलाज कर रहे हैं।
जर्मनी से की है क्लिनिकल फेलोशिप
डॉ.मनीष ने प्रारंभिक शिक्षा सेंट जॉन्स स्कूल, डीएलडब्ल्यू से करने के पश्चात मेडिकल साइंस की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने एमआरएमसी गुलबर्गा से एमबीबीएस की डिग्री ली। आईएमएस बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमडी व कोयंबटूर से मिनिमल एक्सेस सर्जरी में फैलोशिप (एफएमएएस) की पढ़ाई करने के उपरांत डा. जिंदल ने नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में एंडोस्कोपिक हार्निया सर्जरी में रिसर्च फेलो के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने जर्मनी के ईएसएसईएस से आधुनिक शल्य चिकित्सा पद्धति में रक्तहीन, निशान रहित व कम दर्द वाली लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में अपनी क्लिनिकल फेलोशिप पूरी की।
स्मोकिंग न करें। लगातार खांसी रहती है तो उसका इलाज करायें। यूरीन जोर लगाकर न करें। बहुत भारी सामान न उठायें । वजन ज्यादा न बढ़े। हर्निया का इलाज दो प्रकार से हो सकता है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी दूसरा ओपन सर्जरी। जिसमें बड़े चीरों के माध्यम से मेश रिपेयर होता है।मतलब हर्निया वाली जगह पर एक सिंथेटिक जाली लगा दी जाती हैं। यह जाली आंतों या दूसरे अंगों को बाहर नहीं आने देती और उन्हें सपोर्ट करती है।
क्या है लैप्रोस्कोपिक सर्जरी
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी एक वरदान है। इसमें मरीज को ना के बराबर दर्द होता है। जबकि अस्पताल से 24 घंटे में ही डिस्चार्ज कर दिया जाता है। मरीज तीसरे दिन से काम पर लौट सकता है। वहीं, लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में बड़ी जाली लगाने से दोबारा हर्निया होने की संभावना नहीं के बराबर होती है।जांघों में दोनों तरफ होने वाले हर्निया का एक साथ दूरबीन विधि से आॅपरेशन किया जा सकता है।इस सर्जरी के दौरान यदि पेट के अंदर कोई अन्य गांठ या विकृति है तो वो उसका भी निदान संभव है तथा आंतों में चोट पहुंचने व संक्रमण की संभावना बिल्कुल नहीं होती। डा. मनीष बताते हैं यदि सर्जरी के बाद लगातार खांसी आए, अचानक वजन बढ़ने लगे या कब्जियत हो तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें।