नई दिल्ली। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की लंबी दूरी की पनडुब्बी रोधी, टोही, निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग क्षमताओं को अगले साल अमेरिका से चार और पी-8आई मल्टीमिशन विमानों के शामिल होने से और बल मिलने वाला है। भारत के पास छह और बोइंग खरीदने का विकल्प है। इन मामलों की जानकारी रखने वाले ने कहा कि 2021 के अंत तक खरीददारी की जा सकती है। ढ-8अ ढङ्म२ी्रङ्मिल्ल और ढ-8क को अनिवार्य रूप से समुद्री गश्त के लिए डिजाइन किया गया है। हार्पून ब्लॉक कक और हल्के टारपीडो, टोही क्राफ्ट 129 सोनोबॉय को ले जा सकता है। यह एक घातक पनडुब्बी में बदल जाता है जो एंटी-शिप मिसाइल भी लॉन्च कर सकता है। इस एयरक्राफ्ट को लंबी दूरी के पनडुब्बी रोधी युद्ध, सतह रोधी युद्ध के साथ-साथ खुफिया, निगरानी और टोही मिशन के लिए बनाया गया है। इसके अलावे भी इसका उपयोग किया जा सकता है। सेना ने चीन के साथ लद्दाख गतिरोध के दौरान निगरानी के लिए टोही विमान पर भरोसा किया था। 2017 के डोकलाम विवाद के दौरान भी इसका इस्तेमाल किया गया था। इसका रेंज लगभग 2200 किमी है। साथ ही अधिकतम 490 समुद्री मील या 789 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि छह और पी-8 आई विमानों की खरीद के लिए बातचीत शुरू होनी बाकी है। लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ गतिरोध से काफी पहले यानी नवंबर 2019 में रक्षा अधिग्रहण परिषद द्वारा छह ढ-8क की खरीद को मंजूरी दे दी गई थी। चीन ने पहले ही म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, ईरान और पूर्वी अफ्रीका में बंदरगाहों की एक स्ट्रिंग हासिल कर ली थी ताकि न केवल भारतीय नौसेना बल्कि अमेरिकी मध्य कमान बलों के साथ-साथ फ्रांसीसी और ब्रिटिश नौसेना की उपस्थिति को भी चुनौती दी जा सके। चीन की म्यांमार में क्युकायपु बंदरगाह में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जो बंगाल की खाड़ी में स्थित है। दक्षिण श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह हिंद महासागर पर भी हावी है।