70 हजार कामगारों को रोजगार की तलाश


(डा. लोकनाथ पाण्डेय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। जिले में असंगठित मजदूरों की आजकल भारी तादात सड़कों पर है। जिले में 54 हजार बाहर से आये प्रवासी श्रमिकों समेत लगभग 70 हजार कामगारों को अब भी काम की तलाश है। इसका नजारा देखना हो तो आज कल मैदागिन, अर्दली बाजार, नई बस्ती, सरैया, चेतगंज समेत शहर के तमाम मजदूर मंडियो में चले जाइए। यहां तमाम नये चेहरे अब काम की बाट जोहते आस लगाए मिल जायेंगे। इन मंडियो में आने वाले मजदूरों के माथे पर परिवार चलाने की चिंता वाली शिकन भी स्पष्ट देखी जा सकती है। खास बात यह है कि इन मंडियो में कई पढ़े लिखे युवा भी आजकल घर की जरूरतों के लिए गारा, मिट्टी से लेकर हर मोटा काम करने को तैयार दिखते है। अर्दली बाजार मंडी में मौजूद एक युवा मजदूर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सर अब तो उसके कई साथी भी मजबूरी में डिग्री धारक होने के बावजूद मजदूरी ही करने लगे हैं। मुम्बई ,दिल्ली से लौटने के बाद कुछ दिन ठेला भी लगाया,तब परिचित कुछ लोग हंसने भी लगे थे। सबसे दिक्कत यह है कि यहां के प्रतिष्ठानों पर बेहद कम तनख्वाह है। यहां उतने कल कारखाने भी नहीं है न उतना पैसे पर रखने को ही कोई तैयार है। अब पेट पालने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही था।
सरकार गम्भीर, जमीनी कार्य बाकी- प्रवासी कामगारों को लेकर प्रदेश सरकार बेहद गंभीर तो है लेकिन वैकल्पिक इंतजाम ना होने के कारण अभी उतना फायदा नहीं मिल पा रहा है। कोरोना संक्रमण के कारण मुम्बई, दिल्ली समेत तमाम बड़े शहरो से लाखों कामगार घर लौट आये। इनको अपने जिले में ही उचित काम दिलाने का भरोसा दिया गया। सूत्रों की मानें तो बाहर से आये लगभग 54 हजार प्रवासियों में से अब तक मात्र 1016 कामगारों को ही रोजगार दिया गया है। जिला उद्योग केंद्र, सेवा योजन, व लघु उद्योग भारती अभी उतने कारगर नहीं हो सके जितना होना चाहिए। वर्षो से ऐसे विभागों की सुप्तावस्था ने भी बंटाधार ही किया है।

मनरेगा पर बोझ, लेकिन झोल भी

प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिलाने के लिए मनरेगा पर फिर से बोझ बढ़ गया है। ग्रामीण इलाकों में मनरेगा को संजीवनी भी माना जाता है, लेकिन इसमें ग्राम प्रधानों सेक्रेटरी के मिलीभगत के चलते अब बड़ा खेल होने लगा है। तमाम पुराने ऐसे मामले मिलेंग जिसमे साथ पर काम तो हुआ नहीँ पैसे जरूर खातों में मंगवाकर बंदर बांट हो गए। अब भी अक्सर शिकायतें आ रही हैं।बताया जाता है कि अक्सर ग्राम प्रधान के खास परिचित जहां मनरेगा में काम पाने में सफल होते हैं वही जरूरत मंदो को दरकिनार कर दिया जाता है। एक अधिकारी की मानें तो जिले में फिलहाल 16 हजार प्रवासी मजदूर मनरेगा के तहत कार्य कर रहे हैं। अभी भी तमाम मजदूर मनरेगा में पंजीकरण के लिए प्रधानों के दरबार में ही रोज हाजिरी लगाते रहते हैं।

6600 कामगारों की फाइल सरकारी दफ्तरों में घूम रही

प्रदेश सरकार ने गम्भीर पहल कर रोजगार सृजन करने को कहा तो कुशल व अकुशल मजदूरों की लिस्ट तैयार हुई। रोजगार देने के लिए कई विभागों को जिम्मेदारी दी गई। सूत्रों के अनुसार बाहर से आये प्रवासियों में 6600 कामगार कुशल भी मिले थे। लेकिन मई से अबतक वह फाइलें सिर्फ सरकारी दफ्तरों में ही घूम रही है।

हेल्प डेस्क से हो रही राहत देने की कवायद
जिला प्रशासन ने प्रवासी मजदूरों को लेकर कमर कस ली है । बताया गया कि कुशल और अकुशल मजदूरों के लिए हेल्प डेस्क और काउंसलिंग सेंटर बनाने की व्यवस्था चल रही है। यह सेंटर विकास भवन और सभी 8 ब्लॉकों में बनेगी । इसके जरिए कामगारों को काम देने के साथ उनके स्किल डेवलपमेंट व काउंसलिंग की भी व्यवस्था किए जाएंगे।