यह धर्म नहीं, व्यापार है जनाब


(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी (काशीवार्ता)। यह मंदिर नगर निगम मुख्यालय सिगरा के ठीक सामने शहीद उद्यान की चाहर दीवारी को एक स्थान पर तोड़ कर बनाया गया है। मंदिर का कर्ताधर्ता एक नशेड़ी किस्म का व्यक्ति है जो समीप ही कभी आम के पन्ने का ठेला लगता था।अचानक एक दिन भक्तिभाव जागा और उसने एक छोटी सी मूर्ति की स्थापना की।जब किसी ने नहीं टोका तो उसने धीरे धीरे मंदिर को आकार देने शुरू किया।फिर उसने दान पेटी लगा दी।धीरे धीरे लोग आते जाते माथा टेकने लगे।कुछ पैसा दान पेटिका में भी डालने लगे।मंदिर चल निकला तो पन्ने का ठेला लगाना बंद कर दिया।अब वो हर सुबह दान पेटी खोलता है तथा जो भी पैसा मिलता है उससे नजदीक के देसी ठेके पर जाकर दारू लगा लेता है।उसे जितना दिन भर ठेला लगा कर आमदनी नहीं होती थी उससे कहीं ज्यादा अब मंदिर से होती है। कमोबेश यही स्थिति शहर के ज्यादातर उन धर्मस्थलों के हैं जो चौराहों तिराहों पर सरकारी जमीन कब्जा कर बने हैं।पिछले 10 सालों में सड़क और सरकारी जमीनों पर दर्जनों की संख्या में रातों-रात उग आए हैं। जिनका आस्था से कोई लेना देना नहीं है।यह शुद्ध रूप से व्यापार है।लगभग हर मन्दिर के पीछे कोई न कोई पाखंडी धूर्त और पंडित के भेष में छिपा भूमाफिया है। घरों पर आलीशान कोठी है सुख सुविधा के हर साधन मौजूद हैं घर में। कार ,मोटरसाइकिल का तो पूछना ही क्या। सिगरा थाना के पास इसी तरह सड़क कब्जा कर मंदिर बनाया गया है। जिसके महन्त इनोवा गाड़ी से पूजा करने आते हैं। गाड़ी मंदिर से दूर खड़ी करते हैं ताकि कोई इल्जाम न लगा सके। पूजा पाठ तो सिर्फ बहाना है। उनकी नजर तो चढ़ावे पर रहती है। सुना है प्रतिदिन हजारों की आमदनी होती है। न इनकम टैक्स न जीएसटी।सारी रकम व्हाइट मनी। समाज में ऊंचा स्थान भी है। लोग पंडित जी के नाम से पुकारते हैं। पैर भी छूते हैं। कुछ साल पूर्व एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने समस्त जिलाधिकारियों को ऐसे धर्म स्थलोँ की पहचान कर उन्हें हटाने का आदेश दिया था जो सार्वजनिक संपत्ति कब्जा कर बने हैं।वाराणसी में ऐसे लगभग 4 हजार मंदिरों को चिन्हित किया गया था।परंतु उसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं मालूम। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मंदिर के नाम पर ही सड़कों पर कब्जा हुआ हो।मस्जिद और मजार भी पीछे नहीं हैं।पर उनकी संख्या कम है।ये धर्मस्थल न सिर्फ शहर के यातायात व्यवस्था में गंभीर रूप से बाधा पहुंचाते हैं बल्कि काली कमाई का जरिया भी हैं।शासन प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह सार्वजनिक संपत्ति को भूमाफियाओं से मुक्त कराए।