हिंदू अखबार में छपी खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस ने बुधवार को केरल के एक पत्रकार सिद्दीक़ी कप्पन समेत चार लोगों को गिरफ़्तार किया है.
इन सभी पर राजद्रोह की धाराएँ लगाई गई हैं. चारों को सोमवार को तब गिरफ़्तार किया गया जब ये हाथरस की तरफ़ जा रहे थे. इन्हें कोर्ट में पेश किया गया जिसके बाद सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
मथुरा के एसएसपी गौरव ग्रोवर ने कहा, “जांच जारी है, सबूत जुटाए जा रहे हैं. उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.”
इन सभी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है. इसके अलावा इन पर यूएपीए (अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट) की धाराएँ भी लगाई गई हैं.
इन सभी को मथुरा में एक टोल प्लाज़ा से हिरासत किया गया था, जब ये गाड़ी से हाथरस जा रहे थे. पुलिस के मुताबिक इन्हें रोका गया क्योंकि इनकी हरकतें ‘संदिग्ध’ लग रही थीं
कप्पन दिल्ली में एक मलयालम समाचार पोर्टल के लिए काम करते हैं. उनके साथ मुजफ्फरनगर के अतीक उर रहमान, बहराइच के महमूद अहमद और रामपुर के आलम को गिरफ़्तार किया गया है.
रहमान और अहमद रिसर्च स्कॉलर हैं और आलम गाड़ी के ड्राइवर हैं. पुलिस ने दावा किया है ये लोग प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्ऱंट ऑफ इंडिया (पीएफ़आई) से जुड़े हैं.
दिल्ली दंगे: पुलिस ने की बड़ी चूक
हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में छपी ख़बर के मुताबिक़ दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली पुलिस से एक बड़ी चूक हुई है.
अख़बार के मुताबिक़ पुलिस ने अनजाने में दो पन्नों का वो दस्तावेज़ चार्जशीट में जोड़ दिया, जिसमें दंगों की साज़िश रचने के आरोप में गिरफ़्तार लोगों के ख़िलाफ़ सबूत देने वाले कम से कम 15 गवाहों के नाम और पते लिखे हुए हैं.
पुलिस की ये चार्जशीट पिछले महीने कोर्ट में दायर की गई थी. अख़बार का दावा है कि उसने वो उन्होंने दस्तावेज देखा है लेकिन वो गवाहों के नाम नहीं बता रहा, क्योंकि वो उनकी पहचान ज़ाहिर नहीं करना चाहता.
दस्तावेज़ से जुड़ी ख़बर सबसे पहले बुधवार को समाचार वेबसाइट द वायर ने प्रकाशित की थी.
चार्जशीट तैयार करने और उसे पेश करने वाले स्पेशल सेल के पुलिस उपायुक्त प्रमोद कुशवाहा ने अख़बार के बार-बार किए गए फ़ोन और टेक्स्ट मैसेज का जवाब नहीं दिया.
कुशवाहा कथित साज़िश से जुड़ी जांच का नेतृत्व कर रहे हैं.
दिल्ली पुलिस ने बुधवार शाम बयान जारी कर कहा कि एक अदालत से संबंधित दस्तावेज़, जिसमें गवाहों की जानकारी है, वो “अनजाने में शामिल” हो गया और वो उनकी सुरक्षा के लिए “कदम उठा रहे हैं.”
इस दो पन्नों के दस्तावेज़ के अलावा 17 हज़ार पन्नों की चार्जशीट में हर जगह गवाहों के उपनामों का इस्तेमाल किया गया है. जैसे, पुलिस और कोर्ट के सामने इनके बयानों में इन्हें अल्फ़ा, बीटा, हेक्टर, डेस्टा, इको और माइक कहा गया है.
पुलिस का दावा है कि ये ‘प्रोटेक्टेड विटनेस’ (इनसाइडर/चश्मदीद) हैं, जिन्होंने कुछ अभियुक्तों जैसे पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कलीता और आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को दंगाइयों को इकट्ठा करते देखा था.
पुलिस ने कोर्ट से कहा था कि गवाहों की जान को ख़तरा है, इसलिए उनकी पहचान छुपाई गई है.
इन गवाहों के बयान मार्च और अगस्त में अलग-अलग जजों के सामने दर्ज किए गए थे और ये ट्रायल में सबूत के तौर पर स्वीकार्य हैं.
ये पुलिस के उस दावे का अहम हिस्सा हैं जिसमें पुलिस ने कहा है कि दंगों की योजना एंटी-सीएए प्रोटेस्ट साइट पर बनाई गई थी.
विशेषज्ञों का कहना है कि गवाहों के नाम सार्वजनिक होने से ना सिर्फ मामलों को नुक़सान होगा बल्कि इससे उनकी ज़िंदगियों के लिए भी ख़तरा पैदा हो जाएगी.
हाथरस में हिंसा भड़काने के लिए 100 करोड़ रुपये भेजे गएईडी
प्रवर्तन निदेशालय ने बुधवार को कहा है कि उसे इस बाक के सबूत मिले हैं कि हाथरस की युवती को न्याय दिलाने के नाम पर जातीय और सांप्रदायिक संघर्ष को भड़काने के लिए हवाला के कम से कम 100 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश भेजे गए.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ ईडी ने कहा कि इसमें से 50 करोड़ रुपये मॉरीशस से आए.
ईडी के अधिकारी कुछ संदिग्धों को ट्रैक कर रहे हैं और “जस्टिस फॉर हाथरस” जैसी ब्लैकलिस्टेड वेबसाइट के डेटा का विश्लेषण कर ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं इसका इस्तेमाल विदेशी फंड हासिल करने के लिए तो नहीं किया गया.
जिन खातों में पैसे ट्रांसफर किए गए उनकी भी जांच हो रही है. ईडी वेबसाइट के एडमिन्स के ख़िलाफ़ प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज करने पर विचार कर रही है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ही एक अन्य ख़बर के मुताबिक़ हाथरस में 19 वर्षीय दलित युवती के परिवार ने इस बात से इनकार किया है कि वो युवती का रेप और हत्या करने वाले अभियुक्त के संपर्क में थे.
परिवार ने उन कथित कॉल रिकॉर्ड्स की सत्यता पर भी सवाल उठाए हैं, जो बताते हैं कि परिवार और अभियुक्त के बीच पांच महीने में 100 फ़ोन कॉल किए गए.
मृत युवती के बड़े भाई ने कहा कि “ये हमारे ख़िलाफ़ एक साजिश है.” कहा जा रहा है कि कॉल युवती के इसी भाई और अभियुक्त के बीच हुए थे.
उन्होंने कहा, “हत्यारे बहुत चालाक हैं. वो ख़ुदको बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.”
उन्होंने कहा, ”सिम हमारे पिता के लिए 10 साल पहले ख़रीदी गई थी. लेकिन वो अपना फ़ोन खो देते थे. इसलिए मैंने अपनी आईडी का इस्तेमाल करके सिम अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवा ली. फ़ोन हमेशा घर पर रहता था. सभी के पास वही एक नंबर था.”
उन्होंने कहा कि उनके पिता ही उस फ़ोन का ज़्यादातर इस्तेमाल करते थे. लेकिन उन्होंने कभी भी अभियुक्त संदीप से संपर्क करने की बात से इनकार किया, जिसका घर पीड़िता के परिवार के घर के सड़क की दूसरी ओर है.
बिहार चुनाव: इस बार दिखेंगे कम स्टार प्रचारक
द हिंदू अख़बार के मुताबिक़ चुनाव आयोग ने बुधवार को महामारी के मद्देनज़र स्टार प्रचारकों के लिए नियमों में बदलाव किए.
नए नियम में हर राजनीतिक पार्टी के लिए स्टार प्रचारक की अधिकतम संख्या को घटाकर 40 से 30 कर दिया गया है. साथ ही चुनाव प्रचार के लिए 48 घंटे पहले ज़िला चुनाव अधिकारी से अनुमति लेनी होगी.
नए नियम आगामी बिहार चुनाव और देश भर में होने वाले उप चुनाव और भविष्य में होने वाले किसी भी चुनाव पर लागू होंगे.
चुनाव आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र लिखकर ये जानकारी दी.
अब तक मान्यता-प्राप्त दलों के लिए 40 स्टार प्रचारकों और ग़ैर मान्यता प्राप्त दलों के लिए 20 स्टार प्रचारकों की अनुमति थी. साथ ही पार्टियों को प्रचारकों की सूची, जिनमें आम तौर पर शीर्ष राष्ट्रीय नेता और सेलेब्रिटी शामिल होते हैं, चुनाव आयोग को चुनाव के नोटिफिकेशन की तारीख़ से सात दिन में देनी होती थी.
लेकिन अब ईसी ने मान्यता प्राप्त दलों के लिए स्टार प्रचारकों की संख्या घाटकर 30 और ग़ैर मान्यता प्राप्त दलों के लिए 15 कर दी है. साथ ही पार्टियों को अपनी सूची अब नोटिफिकेशन की तारीख़ से 10 दिन में देनी होगी.