ईरान ने चेतावनी दी है कि उसके पड़ोसी देश अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच नए सिरे से शुरू हुई ये लड़ाई व्यापक रूप से ‘क्षेत्रीय युद्ध’ को बढ़ा सकती है.
राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा कि विवादित नागोर्नो-काराबाख़ इलाके को लेकर हुए भारी संघर्ष के दिनों के बाद इस क्षेत्र में ‘स्थिरता बहाल करने’ की उन्हें उम्मीद थी.
ये इलाका औपचारिक रूप से अज़रबैजान का हिस्सा है लेकिन इसे अर्मेनियाई समुदाय के लोग चलाते हैं.
मौजूदा युद्ध बीते कुछ दशकों का सबसे बुरा युद्ध माना जा रहा है दोनों देश एक दूसरे पर हिंसा की शुरुआत करने का आरोप लगा रहे हैं.
राष्ट्रपति रूहानी ने कहा है कि “हमें सजग रहना है कि अज़रबैजान और आर्मीनिया की ये लड़ाई इस इलाक़े की लड़ाई ना बन जाए.शांति हमारे काम का आधार है और हम शांतिपूर्ण तरीके से क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने की उम्मीद करते हैं.”
ईरान को ‘अस्वीकार्य’
रूहानी ने आगे कहा कि ईरान की मिट्टी पर ग़लती से भी मिसाइल या गोले गिरें, ये हमें पूरी तरह ‘अस्वीकार्य’ है.
दरअसल कुछ रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि अर्मीनिया और अज़रबैजान की सीमा से लगने वाले ईरान के कुछ गांवों में गोले गिरे पाए गए.
रूहानी ने कहा है, “हमारी प्राथमिकता हमारे शहरों और गांवों की सुरक्षा है.”
तसमीन न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए ईरानी बॉर्डर गार्ड्स के कमांडर क़ासम रेज़ाई ने भी कहा कि “जब ये संघर्ष शुरू हुआ तो कुछ तोप के गोले और रॉकेट ईरान के इलाके में आ गिरे. जिसे देखते हुए ईरान की सेनाओं को इस लड़ाई के दौरान “आवश्यक गठन” में रखा गया था.”
“हमारे सैनिक सतर्क हैं और वे सीमाओं की पूरी निगरानी और उनपर नियंत्रण रखे हुए हैं.”
क्या-क्या हो रहा है?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बुधवार को इस लड़ाई को समाप्त करने का आह्वान किया और इसे ‘त्रासदी’ बताया.
उन्होंने एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा, “हम बहुत चिंतित हैं, हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में यह संघर्ष समाप्त हो जाएगा. लोग मारे जा रहे हैं. दोनों ही देशों का बड़ा नुकसान हो रहा है.”
रूस से बताया कि राष्ट्रपति पुतिन ने अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव से गुरूवार को फ़ोन पर बात की.
रूस आर्मीनिया के साथ सैन्य गठबंधन का हिस्सा है और इस देश में रूस एक सैन्य बेस भी है. हालांकि, रूस के अज़रबैजान के साथ करीबी संबंध हैं.
अमेरिका, फ्रांस और रूस ने संयुक्त रूप से नागोर्नो-काराबाख़ में लड़ाई की निंदा की है और शांति वार्ता के लिए कहा है, लेकिन संघर्ष समाप्त होने के कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे हैं.
संघर्ष के कारण भूतिया होते शहर
ओर्ला ग्यूरिन का विश्लेषण, अज़रबैजान से
अजरबैजान का कहना है कि लंबे वक़्त से विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख़ में बेहतर स्थिति में है क्योंकि उसके पास अधिक गोला बारूद और उच्च कोटि के हथियार हैं. अब तक तो अज़रबैजान इस इलाके में बेहतर स्थिति में है लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र के पास के आर्मीनियाई बलों की ओर से गोलाबारी की जा रही है.
अज़रबैजान का टारटर शहर जिसकी सीमा नागोर्नो-काराबाख़ से लगती है वह एक भूतिया कस्बे में तब्दील हो चुका है. यहां सामान्यत: एक लाख लोग रहा करते थे लेकिन ये सभी लोग शहर छोड़ चुके हैं. मुख्य सड़क खाली है और टूटे कांच और छर्रे से पटे पड़े हैं. बंद दुकानों के शटर और छत पूरी तरह उड़ चुके हैं.
हमने कुछ परिवारों को ज़मीन के नीचे बने शेल्टरों में देखा. एक बुजुर्ग महिला, जिनके बेटा और बेटी अज़रबैजान की सेना का हिस्सा हैं और सीमा पर लड़ रहे हैं. उन महिला ने हमें बताया कि वह जीत की प्रतीक्षा कर रही है और ये जगह कभी नहीं छोड़ेंगी.
उनका सात महीने का पोता उनकी गोद में था. उन्होंने बताया कि गोलीबारी की आवाज़ पर वह डरता नहीं है उसे इसकी आदत हो चुकी है.
जंग के मैदान में क्या हो रहा है?
नागोर्नो-काराबाख़, स्टेपानाकर्ट के मुख्य शहर में कई दिनों तक गोलाबारी हुई है. लोग बेसमेंट में शरण लेते रहे हैं और शहर के अधिकांश हिस्सों की बिजली काट दी गई है. समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार सुबह ताजा हमले हुए और स्टेपानाकर्ट के आसपास धुआं देखा गया.
इस बीच, अजरबैजान ने जातीय आर्मीनियाई बलों पर शहरी इलाकों में गोलाबारी करने और आम लोगों की इमारतों को निशाना बनाने का आरोप लगाया. इसके दूसरे सबसे बड़े शहर, गांजा, पर हमला किया गया है और अज़रबैजान के अधिकारियों ने कहा कि सैकड़ों इमारतें नष्ट हो गईं हैं.
रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति ने “अंधाधुंध गोलाबारी और अन्य कथित ग़ैरकानूनी हमलों” की निंदा की है. इसके साथ ही ये भी कहा गया कि बड़ी संख्या में आम नागरिक मारे गए हैं.
27 सितंबर से शुरू हुए इस इस युद्ध में अब तक 300 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं. लेकिन माना जा रहा है कि दोनों ओर की सेनाओं और मारे आम लोगों का कुल आकड़ा इससे कई ज़्यादा हो सकता है.
नागोर्नो-काराबाख़ – ख़ास बातें
- साढ़े चार हज़ार वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला ये एक पहाड़ी इलाका है.
- इस इलाके में पारंपरिक रूप से आर्मीनियाई मूल के ईसाई और तुर्की मूल के मुसलमान रहते हैं.
- सोवियत संघ के ज़माने में ये अज़रबैजान के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी इलाका था.
- अंतरराष्ट्रीय रूप से इस इलाके को अज़रबैजान का ही हिस्सा माना जाता है लेकिन इसकी बहुसंख्यक आबादी आर्मीनियाई मूल के लोग हैं.
- स्वयंभू सरकारों को आर्मीनिया सहित संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश मान्यता नहीं देते हैं.
- साल 1988-94 के दौरान हुए युद्ध में तकरीबन दस लाख लोग विस्थापित हुए थे और 30 हज़ार लोग मारे गए थे.
- अलगाववादी बलों ने अज़रबैजान में इन्क्लेव के आसपास के इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया था.
- ये संघर्ष साल 1994 में संघर्ष विराम होने तक जारी रहा.
- तुर्की खुलकर अज़रबैजान का समर्थन करता है.
- आर्मीनिया में रूस का एक सैनिक अड्डा है.