अज़रबैजान आर्मीनिया युद्ध: काराबाख़ में समझौते की उम्मीदें – येरेवान से ग्राउंड रिपोर्ट


काराबाख़ में दूसरी बार मानवीय आधार पर संघर्ष विराम हुआ है. समझौते के तहत युद्ध बंदियों की अदला बदली होनी है और एक-दूसरे के शव भी सौंपे जाने हैं, लेकिन ये सब अभी शुरू नहीं हुआ है. आर्मीनिया और अज़रबैजान दोनों ने एक-दूसरे पर संघर्ष विराम उल्लंघन के आरोप लगाए हैं.

सीमा के उत्तर और दक्षिण में भीषण जंग छिड़ी है. दोनों ओर से मरने वालों की तादाद बढ़ रही है. बीबीसी रूसी सेवा की संवाददाता मरीना काताइवा ने येरेवान के उन लोगों से बात की है जिनके अपनों की जान इस जंग में चली गई है. रेड क्रॉस के प्रतिनिधियों से भी ये जानने की कोशिश की है कि शवों का आदान-प्रदान अब तक क्यों शुरू नहीं हो सका है और इसमें क्या चुनौतियां हैं.

येरेवान की सड़कों से गुज़रते हुए सड़क किनारे लगाए गए काले बैनर दिखाई देते हैं जिन पर नाम और नंबर लिखे हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि ये युद्ध में मारे गए लोगों के शोक का प्रतीक हैं.

जो सैनिक नागार्नो काराबाख़ में चल रहे युद्ध में मारे गए हैं ये बैनर उनके घरों के बाहर लटके हुए हैं. उनमें से एक बैनर पर लिखा था गोजो-28 और एक पर लिखा था डेविड-19. हम जब उसकी तस्वीर लेने के लिए रुके तो बगरत नाम के एक आदमी ने हमारे पास आकर पूछा कि हम ऐसा क्यों कर रहे हैं.

बगरत कहते हैं, “डेविड मेरा बेटा था और सिर्फ़ 19 साल का था. वो युद्ध लड़ने गया था और एक अक्तूबर को मारा गया.”

बगरत को जब ये पता चला कि हम पत्रकार हैं तो उन्होंने हमें डेविड के अंतिम सफर की तस्वीरें दिखाईं. अमरीकन यूनवर्सिटी ऑफ़ आर्मीनिया के चौक पर डेविड को दी गई सलामी में उसके सहपाठी और शिक्षक शामिल हुए थे. बगरत ने हमें एक तस्वीर दिखाई जिसमें डेविड की एक बड़ी तस्वीर के पास लोग हाथों में मोमबत्तियां जलाए खड़े थे.

डेविड के सहपाठी एक लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन लेकर आए थे और चाहते थे कि उसके परिजन डेविड के बारे में सबको बताएं. जिस अध्यापक के हाथ में माइक्रोफ़ोन था वो भी अपना भाषण पूरा नहीं कर पाए थे, बीच में ही उनका गला रूंध गया था. डेविड के पिता ने बहुत कम शब्दों बताया था कि उनका बेटा कैसे मारा गया था.

यूनिवर्सिटी के छात्र नेरेक बताते हैं कि डेविड ने दो सेमेस्टर पूरे कर लिए थे. वो बिज़नेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे थे. नेरेक के मुताबिक डेविड यूनिर्सिटी की चौथे छात्र हैं जिन्होंने सितंबर 2020 के बाद से इस युद्ध में जान गंवाई है.

‘वजह आपकी ख़ामोशी है’

हर कोई येरेवान के मारे गए लोगों की संख्या के बारे में बात कर रहा है. संयु्क्त राष्ट्र के दफ़्तर के पास हो रही रैली में शामिल लोगों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसका कोई परिजन युद्ध में न लड़ रहा हो या मारा न गया हो.

येरेवान की निवासी अलमीरा बताती हैं कि उनका एक 22 साल का भतीजा मारा गया है और एक लापता है. 12 दिन से उसकी कोई ख़बर नहीं मिली है. वो कहती हैं, उन लोगों को शर्म आनी चाहिए जो आज काराबाख़ में जो हो रहा है, उसे देखकर आंखें बंद किए हुए हैं.

रैली में मौजूद मैरी का 18 साल का बेटा भी युद्ध लड़ने गया है. वो संयुक्त राष्ट्र के बाहर खड़े होकर ये कहना चाहती हैं कि संयुक्त राष्ट्र को अब वो करना चाहिए जिसके लिए उसे स्थापित किया गया था. वो कहती हैं, कुछ भी करके यूएन को युद्ध रोकना चाहिए.

मैं इन माओं के आंसू नहीं देख पाती हूं, मुझे लगता है कि मैं भी इनकी जगह हो सकती हूं.ज़ारा एमाटूनी इंटरनेशनल कमिटी ऑफ़ रेड क्रॉस की प्रतिनिधि हैं

संयुक्त राष्ट्र की इमारत येरेवान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रतिनिधित्व का प्रतीक है. स्टपनेकार्ट शहर से आई एक 21 साल की युवती यूएन की इमारत के बाहर के एक पोस्टर लिए बैठी हैं जिस पर लिखा है मेरा घर बर्बाद हो गया है, आपकी चुप्पी की वजह से.

वो अपने आपको एक भौतिकविज्ञानी बताती हैं और यूरोपीय फिज़ीकल यूनियन की सदस्य भी हैं. वो कहती हैं कि उन्होंने काराबाख़ के युद्ध की ओर ध्यान खींचने के लिए यूनियन को पत्र भी लिखा है.

वो भावुक होकर कहती हैं, “पूरे दुनिया के भौतिक विज्ञानी और पूरी दुनिया एकजुट होगी. वो सवाल करती हैं कि लोग क्यों त्रासदी को झेलें. हमने कभी नहीं चाहा की युद्ध हो, ख़ुद मैं भी ये चाहती हूं कि कभी युद्ध ना हो.”

वहां मौजूद प्रदर्शनकारी उनके समर्थन में नारेबाज़ी करने लगते हैं.

ज़्यादातर प्रदर्शनकारी तुर्की को गुनहगार बता रहे हैं क्योंकि वह खुले तौर पर अज़रबैजान का समर्थन कर रहा है. वो विश्वास के साथ कहते हैं कि इस समय आर्मीनिया तुर्की और अज़रबैजान दोनों देशों से लड़ रहा है.

12 साल का किशोर होवहांस जोशीला भाषण देते हुए युद्ध के दोनों ओर के नेताओं के कथनों का ज़िक्र करता है. हमें बताया गया है कि ये पहली बार नहीं है जब छठी क्लास में पढ़ने वाला ये लड़का यहां भाषण दे रहा हो.

तुर्की पर प्रतिबंधों की मांग करता हुए एक पोस्टर लिए महिला कहती हैं कि इस बच्चे को इस वक्त स्कूल में होना चाहिए था ना कि यहां नारेबाज़ी करनी चाहिए थी. अब आगे इसका भविष्य क्या होगा, ये कहां जाएगा?

बीबीसी रूसी सेवा ने रैली में मौजूद जितने भी लोगों से बात, सबने रूस से मदद की गुहार लगाई, ख़ास तौर पर राष्ट्रपति पुतिन से.

वहां मौजूद एक युवा कहता है, कि हम रूसी भाषा और साहित्य की पढ़ाई करते हैं. आर्मीनिया शुरू से ही रूस का हिस्सा रहा है और समर्थक रहा है.

इतने में ही एक महिला सवाल करती है कि रूस अब तक चुप क्यों है? तब ही एक युवा उसे चुप कराते हुए कहता है कि उन्हें ऐसे नहीं बोलना चाहिए.

यहां मौजूद युवा इस बात पर पूरा ध्यान देते हैं कि भाषणों में धर्म का ज़िक्र ना हो. इस्लाम या ईसाइयों पर टिप्पणी करने वालों को तुरंत रोक दिया जाता है.

रैली शुरू होने के एक घंटे के बाद संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधी कई कार्यकर्ताओं को बातचीत के लिए यूएन की इमारत में बुलाते हैं. वो वापस आकर प्रदर्शनकारियों को बताते हैं कि उन्होंने अपनी मांगें उनके सामने रख दी हैं.

वो चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि संघर्ष क्षेत्र में जाएं और नागार्नो काराबाख़ की आज़ादी को मान्यता दें. वरना वो लोग दो दिन बाद और भी बड़ी संख्या में प्रदर्शन करने लौटेंगे.

रेड क्रॉस की भू्मिका

ज़ारा एमाटूनी इंटरनेशनल कमिटी ऑफ़ रेड क्रॉस की प्रतिनिधि हैं. वो कहती हैं कि एक्सचेंज मिशन में रेड क्रॉस की भूमिका पूरी तरह से मानवीय है. संस्था किसी भी तरह की राजनीतिक भूमिका नहीं निभा रही है और जो भी जानकारी उसे मिल रही है वो गुप्त सूचना है. हमें नहीं पता है कि कब, किस जगह और कैसे या कितने लोगों का आदान-प्रदान किया जाएगा.

एमाटूनी कहती हैं कि उनकी संस्था मारे गए लोगों की पहचान में मदद करेगी.

उनके अनुसार आमतौर पर वो लोग रेड क्रॉस के पास आते हैं जो आर्मीनिया या नागोर्ने काराबाख़ के रहने वाले हैं. वो मारे गए अपने रिश्तेदारों के शवों की तलाश में आते हैं. कुछ लापता हुए अपने लोगों का पता पूछते हुए आते हैं.

वो कहती हैं कि अभी रेड क्रॉस ने डीएनए सैंपल लेने शुरू नहीं किए हैं. बस अभी जानकारियां ही जुटाई जा रही हैं.

वो कहती हैं, लोग हमारे पास आते हैं, हम उनकी जानकारियां लेकर प्रशासन के साथ मिलकर काम करते हैं.

रेड क्रॉस के अभी काम शुरू ना करने की मुख्य वजह बताते हुए संस्था का एक प्रतिनिधि कहता है कि अभी वो सुरक्षा कारणों की वजह से शवों और क़ैदियों के आदान प्रदान का काम शुरू नहीं कर सके हैं.

एमाटूनी कहती हैं कि दोनों ही पक्षों की ओर हो रही बयानबाज़ी के बावजूद नागरिक ठिकानों और नागरिकों पर हमलों की जानकारियां उन्हें मिल रही हैं.

वो कहती हैं, ‘ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग घायल हो रहे हैं और मारे जा रहे हैं.’

दूसरे संघर्ष विराम की घोषणा के बाद भी झड़पें जारी हैं. बावजूद इसके रेड क्रॉस दोनों ही ओर के क़ैदियों से मिलने में कामयाब रहा है.

संस्था के एक कर्मचारी ने बीबीसी को बताया है कि 18 अक्तूबर को उनकी एक साथी आर्मीनिया के क़ैदियों से मिलीं थीं. ये लोग अज़रबैजान की क़ैद में हैं.

वो अज़रबैजान के एक नागरिक से भी मिली हैं जो आर्मीनिया के क़ब्ज़े में है.

वो कहती हैं, ‘हम बंदी बनाए गए लोगों के स्वास्थ्य, क़ैद के हालात और उनसे संपर्क बनाने की परिस्थतियों का जायज़ा ले पाए.’

आईसीआरसी ने उन बंदियों की संख्या नहीं बताई है जिनसे रेड क्रॉस संपर्क कर पाया है. ये जानकारी वो सिर्फ बंदियों के परिजनों और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ ही साझा करेंगे.

एमाटूनी के अनुसार उनकी संस्था दोनों ही पक्षों से संपर्क करती है और 27 सितंबर के बाद से बंदी बनाए गए लोगों के हालात जानने की कोशिश करती है.

आरोप-प्रत्यारोप

17 अक्तूबर को आर्मीनिया के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके रेड क्रॉस की मध्यस्तथा से हुए संघर्ष विराम समझौते के बारे में जानकारी दी थी.

आर्मीनिया की ओर से कहा गया है कि अज़रबैजान ने 17 अक्तूबर के समझौते और 10 अक्तूबर को मास्को में हुए समझौते का उल्लंघन किया है.

आर्मीनिया के विदेश मंत्रलाय की प्रेस प्रवक्ता एना नाग़दालयान ने बीबीसी को लिखित जवाब में बताया है कि बंदियों और मारे गए लोगों का आदान प्रदान और उनकी सूची देना संभव नहीं है क्योंकि अज़रबैजान जान बूझकर इस प्रक्रिया को निशाना बना रहा है.

वहीं अज़रबैजान ने भी आर्मीनिया पर ही संघर्ष विराम उल्लंघन के आरोप लगाए हैं. अज़रबैजान की ओर से कहा गया है कि वह मानवीय संघर्षविराम का सम्मान करता है लेकिन अपनी नागरिक आबादी की सुरक्षा के लिए जवाबी कार्रवाई का अधिकार भी रखता है.

दो सप्ताह पहले युद्ध में मारे गए डेविड के पिता अपने शहर के मेयर से बात कर रहे हैं. उसकी याद में शहर में एक पानी पीने का पियाऊ बनाया जाएगा. ये उसी के नाम पर होगा और उसके घर के बाहर ही बनाया जाएगा.

उसके घर के बाहर टंगा रिबन जिस पर डेविड 19 लिखा है, कुछ दिन बाद हटा लिया जाएगा.

दोनों देशों के विदेश मंत्री बातचीत के लिए रूस पहुँचे

उधर, समाचार एजेंसी एपीए के अनुसार अज़रबैजान के विदेश मंत्री जेहुन बायरामोव बुधवार को रूस के लिए रवाना हो गए हैं. वहां वो रूसी अधिकारियों से बातचीत करेंगे.

इससे पहले आर्मीनिया के विदेश मंत्री ज़ोहराब म्नातसाकान्यान पहले ही मॉस्को पहुँच चुके हैं.

अज़रबैजान और आर्मीनिया के विदेश मंत्री 23 अक्टूबर को अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियों के साथ वाशिंगटन में अलग-अलग मुलाक़ात करेंगे.

अज़रबैजान और आर्मीनिया की सेना के बीच विवादित नागोर्नो-काराबाख़ में 27 सितंबर को झड़पें शुरू हुईं थीं जिसने बाद में युद्ध का रूप धारण कर लिया है.

रूस ने मध्यस्थता कर मानवीय आधार पर दोनों देशों के बीच 9-10 अक्टूबर को युद्ध विराम लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन दोनों ही देशों ने उनका पालन नहीं किया और एक दूसरे पर युद्ध विराम के उल्लंघन के आरोप लगाते रहे.

इस बीच अज़रबैजान ने इस बात से इनकार किया है कि उसके लड़ाकू विमान को काराबाख़ में मार गिराया गया है.

आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि अज़रबैजान का एक लड़ाकू विमान नागोर्नो-काराबाख़ के दक्षिण में मार गिराया गया है.

आर्मीनियाई रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता शूशान स्टेपन्यान ने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा है, “नागोर्नो-काराबाख़ की वायु रक्षा यूनिट ने दुश्मन के एक लड़ाकू विमान को 21 अक्टूबर को स्थानीय समयानुसार सुबह साढ़े आठ बजे दक्षिणी क्षेत्र में मार गिराया है.”

बाकू स्थित एपीए समाचार एजेंसी के अनुसार अज़रबैजान के रक्षा मंत्रालय ने इन दावों को ख़ारिज करते हुए इसे आर्मीनिया सेना के प्रोपगैंड़ा का हिस्सा क़रार दिया.

मानवरहित लड़ाकू जहाज़ (UAVs)

अज़रबैजान के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि 20 अक्टूबर की शाम को आर्मीनिया के एक यूएवी को सेंट्रल अज़रबैजान के गोरानबॉय इलाक़े में और एक दूसरे यूएवी को सेंट्रल अज़रबैजान के ही गांजा इलाक़े में मार गिराया गया है.

इस बीच आर्मेनप्रेस समाचार एजेंसी ने आर्मीनियाई रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता शुशान स्टीपनयान के हवाल से लिखा है कि 20 अक्टूबर को नागाोर्नो काराबाख़ की सेना ने तुर्की में बने हुए अज़रबैजानी यूएवी बायराकटार TB2 को मार गिराया है. एजेंसी ने कथित तौर पर मार गिराए गए यूएवी की तस्वीर भी छापी है.

आर्मेनप्रेस ने आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान के हवाले से कहा है कि 27 सिंतबर से युद्ध शुरू के बाद से अबतक काराबाख़ की सेना ने क़रीब एक दर्जन बायराकटार ड्रोन को मार गिराया है.

आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता आर्ट्सरन होवहन्निसयान ने 20 अक्टूबर को प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 24 घंटों में 10 बायराकटार ड्रोन को मार गिराया गया है.

अज़रबैजान के रक्षा मंत्रालय ने इन ख़बरों की ना तो पुष्टि की है और ना ही इन्हें ख़ारिज किया है.