लिफाफा समर्पण की कला एवं संस्कृति


(व्यंग्य)
शादी, पार्टी, बर्थ डे और कई अन्य तरह के कार्यक्रम आयोजित हुए जा रहे हैं। हर कोई गधे को घोड़े पर बैठा रहा है। हर कोई 75 वर्षीय बूढ़ा भी अपना हैप्पी वाला बर्थडे मना रहा है। बाईं गली में ढोल-ताशे बज रहे हैं और दाईं गली में बैंड-बाजे सज रहे हैं। ऐसे डीजे मयी रचनात्मक काल में लिफाफा समर्पण अध्यादेश की सबको समझ होना जरूरी है। लिफाफा किसको दें, कैसे दें, कब दें आदि कलात्मक पहलूओं का गहरा ज्ञान जरूरी है। शादी हो या फिर कोई पार्टी हो हर जगह लिफाफा देना जरूरी हो गया है। कई बार लिफाफा देते समय मन में धुक-धुकी बनी रहती है कि वह बंदा लिफाफा देखेगा कि नहीं देखेगा! लिफाफे में डाले गए नोट कहीं आपा-धापी में खिसक तो नहीं जाएंगे? उनकी गलती से नोट गिर गए और लिफाफा खाली नजर आया तो क्या होगा! लिफाफा कितने रुपए का दें और कौन सी जगह दें ताकि लिफाफाग्राही लिफाफे को पूरा सम्मान दे सके। लिफाफोन्मुखी होकर कैसे हंसा जाए और कैसे मुस्कुराएं, यह सब बड़ा भारी भरकम नियम है। क्या करें कि जातक आपके लिफाफे को ही सर्वश्रेष्ठ बताए।


नहीं जी, नहीं जी लिफाफे की क्या जरूरत थी! नहीं जी, जी लिफाफा आपको थोड़े दे रहे हैं, यह तो हम बिटिया को आशीर्वाद दे रहे हैं। यह तो हम बेटे को आशीर्वाद दे रहे हैं। या यह तो ताऊजी के लिए कुछ प्यार है हमारा। खीसें निपोरें। थोड़ा ही-ही करें। नहीं नहीं नहीं हां हां हां! यही मंत्र मारें…और लिफाफा आखिर पकड़ा ही दें। याद रहे- लिफाफा उसी बंदे को पकड़ाना चाहिए जिस बंदे पर आपका पूरा विश्वास हो और जिस बंदे ने आप को कार्ड दिया हो। अगर कार्ड बाप ने दिया और आपने लिफाफा बेटे को थमा दिया तो समझ लो आपका आना और लिफाफा पकड़ाना सब बेकार हो जाएगा। अगर आपको कार्ड बीवी ने दिया और लिफाफा उसके शोहर को थमा दिया तब आपका कबाड़ा होना पक्का तय है। याद रखें- लिफाफा उसी बंदे को पकड़ाएं जिस बंदे ने आप को कार्ड दिया हो। सिद्धांत यही कहता है। लिफाफा देते समय उनके द्वारा किए गए हर एक आयोजन की तारीफ करना ना भूलें। मुंह से तारीफ के कसीदे काढ़ते जाएं और अपने दाएं हाथ में लिफाफा लेकर उनको हाथ में थमा दें। आपकी व्यवस्थाएं हमेशा ही टॉप की होती है। ऐसा कहते ही रहें। व्यवस्थाओं की तारीफ में जितना बड़ा पुल बांध सकें, बांध दें। इसी समय बाएं हाथ से एक अच्छी सी सेल्फी ले लें। जब सेल्फी ले लें तो उनकी फोटो को जरूर बढ़िया कहें। कहें कि क्या शानदार फोटो है! फिर इसे वाट्सअप पर लिफाफाग्राही को भेजकर कहें- आज तक मैंने इस तरह की फोटो नहीं देखी! वाह वाह वाह लाजवाब! याद रहे! लिफाफा थमाने से पहले आप लिफाफे पर बड़े-बड़े अक्षरों में बल्कि मोटे स्केच पेन की मदद से लाल रंग से अपना नाम जरुर लिख दें। इसमें लाल रंग ही सर्वथा उपयुक्त रहता है क्योंकि लाल रंग दूर से दिख जाता है। अगर आपने पीले या हरे रंग से लिख दिया तो वह दूर से दिखाई नहीं देगा और आपकी सारी कारस्तानी गुड़-गोबर हो जाएगी। डर भी रहता है- लिफाफा कहीं अंधेरे में गुम हो जाए तो! लिफाफा कहीं ओर खिसक गया तो! आपका देना और लेना सब गोबर हो जाएगा। लिफाफा समर्पण की अपनी एक संस्कृति है। बहुत शोरगुल हो, बहुत सारे लोग इकट्ठे हों व भारी भीड़ हो तो उस समय लिफाफा कतई नहीं देना चाहिए। ऐसी भीड़-भाड़ वाली जगह में और बहुत शोरगुल वाली जगह में आपने लिफाफा दे दिया और यहीं कहीं गिर गया व लिफाफाग्राही का ध्यान न रहा तो आपकी ऐसी-तैसी होना पक्का तय है। लिफाफा देना एक बहुत बड़ी कला है। अगर लिफाफा ठीक समय से वांछित के पास नहीं पहुंचा तो यह एक बारी बला है। लिफाफा बहुत एकांत में, हंसते हुए, सेल्फी लेते हुए, तमाम दिखावे के साथ बड़े ही इत्मीनान से देना अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ है। आखिर सारी जिंदगी दिखावे पर ही तो टिकी है!