मोदी आज करेंगे नई संसद का शिलान्यास, पर योजना को लेकर सवाल क्यों?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 दिसंबर को 12:30 बजे देश के नए संसद भवन का शिलान्यास करेंगे. हालाँकि इसके निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. अदालत ने अभी केवल आधारशिला रखने की इजाज़त दी है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को इस बात का भरोसा दिया है कि इससे संबंधित याचिकाओं पर जब तक सुप्रीम कोर्ट अपना फ़ैसला नहीं दे देती तब तक सरकार किसी भी तरह के निर्माण या तोड़-फोड़ के काम को अंजाम नहीं देगी.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने कहा था कि सिर्फ़ शिलान्यास का कार्यक्रम होगा और अभी इस पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य या किसी भी तरह की तोड़-फोड़ नहीं होगी. पेड़ों को भी नहीं गिराया जाएगा.

दरअसल नई संसद बनाने की योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब तक 10 याचिकाएँ दायर हो चुकी है. इसमें से एक अहम याचिका वकील राजीव सूरी ने पूरे प्रोजेक्ट के निर्माण और ज़मीन के इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज करते हुए दायर की है. इसके अलावा कई और आधार पर भी इस निर्माण को लेकर आपत्ति दर्ज की गई है.

क्या है याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ

बीबीसी के लिए क़ानूनी मामलों को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुचित्र मोहंती के मुताबिक याचिकाकर्ताओं की दलील है कि संसद भवन वाले इलाके में नई इमारत बनाने पर रोक लगी हुई है.

उन्होंने नई संसद बनाने के लिए ज़मीन के इस्तेमाल को लेकर किए गए प्रस्तावित बदलाव पर आपत्ति दर्ज की है.

राजीव सूरी ने अपनी याचिका में ज़मीन के इस्तेमाल को लेकर किए गए कई बदलावों को लेकर अधिकारियों पर सवाल खड़े किए हैं.

सेंट्रल विस्टा कमिटी की ओर से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) जारी करने को लेकर भी याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी है. नई संसद के निर्माण से जुड़ी पर्यावरण संबंधी सवालों पर मंजूरी देने पर आपत्ति दर्ज की गई है.

एक याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने कहा कि सरकारी पैसे खर्च करके इस तरह के निर्माण को उचित ठहराने को लेकर किसी भी तरह का कोई अध्ययन नहीं हुआ है. इसे भी किसी तरह से साबित नहीं किया गया है कि मौजूदा संसद की इमारत के साथ ऐसी क्या समस्या है जिससे कि इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

श्याम दीवान कहते हैं कि सरकार को इस तरह के फैसले लेने से पहले उचित परामर्श करना चाहिए था और निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिकतम पारदर्शिता बरतनी चाहिए थी. इसके लिए पूरा वक्त लेना चाहिए था ताकि अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों से राय ली जा सके.

सरकार की दलील

भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार के इस कई सौ करोड़ के प्रोजेक्ट का बचाव किया है. उन्होंने कहा है कि मौजूदा संसद की इमारत करीब 100 साल पुरानी है. इस पर ज्यादा दबाव है. नई संसद बनाते वक्त इस इमारत की एक भी ईंट नहीं निकाली जाएगी.

उन्होंने कहा कि मौजूदा संसद की इमारत 1927 में बनी थी और अब यह बहुत पुरानी पड़ चुकी है. इसमें अब सुरक्षा संबंधी समस्याएँ हैं. जगह की कमी है. ये इमारत भूकंपरोधी भी नहीं है. इसमें आग लगने से बचाव संबंधी सुरक्षा मापदंडों का भी अभाव है.

नई योजना के तहत संसद की नई इमारत के अलावा केंद्रीय सचिवालय और कई मंत्रालयों की इमारत बनाई जाएंगी.

उन्होंने यह भी कहा कि फिर से इन इमारतों को बनाने की योजना से पहले पर्याप्त रूप से विचार-विमर्श किया गया है और इसके व्यावहारिक पक्ष को भी ध्यान में रखा गया है.

उन्होंने बताया कि इससे सालाना खर्च होने वाले 1000 करोड़ रुपये की बचत होगी और मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय में सुधार आएगा क्योंकि 10 नई इमारतों में शिफ्ट हुए ये मंत्रालय आपस में बेहतर तरीके से मेट्रो से जुड़े होंगे.

तुषार मेहता ने यह भी कहा कि सरकार के कामकाज में सुधार लाने के लिए यह ज़रूरी है कि सभी केंद्रीय मंत्रालय एक जगह पर हो. इसलिए इस योजना की ज़रूरत है.

नई संसद का ढांचा

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पाँच दिसंबर को बताया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 दिसंबर को इस नई इमारत की नींव रखेंगे और इसे 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा. इसमें अनुमान के मुताबिक़ क़रीब 971 करोड़ रुपये की लागत लगेगी.

उन्होंने यह भी बताया कि इस पूरे प्रोजेक्ट का निर्माण क्षेत्र 64,500 वर्ग मीटर होगा. यह मौजूदा संसद भवन से 17,000 वर्ग मीटर अधिक होगा.

इसके अलावा उन्होंने कहा कि नई इमारत में लोक सभा कक्ष भूतल में होगा, जिसमें 888 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी जबकि राज्य सभा में 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी. संयुक्त बैठक के दौरान 1272 सदस्य इसमें बैठ सकेंगे.

इस निर्माण कार्य से जुड़ी कई याचिकाएँ कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कोर्ट में दाख़िल की गई है. इसमें इस प्रोजेक्ट से जुड़ी पर्यावरण संबंधी चिंताएँ भी शामिल हैं.

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट

इसे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है. इसके तहत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच कई इमारतों के निर्माण की योजना बनाई गई है.

संसद की नई इमारत तिकोना होगी हालांकि पुराने संसद भवन का इस्तेमाल भी किया जाएगा.

मौजूदा संसद की इमारत 93 साल पुरानी है.

नई संसद के निर्माण का अनुमानित ख़र्च 971 करोड़ रुपये बताया जा रहा है. नई संसद के 2022 तक तैयार हो जाने की संभावना है.

प्रोजेक्ट के तहत नया केंद्रीय सचिवालय भी तैयार किया जाएगा जिसमें क़रीब 10 इमारतें होंगी. इस पूरे प्रोजेक्ट के पूरा होने की समय सीमा 2024 तक रखी गई है.