सोशल मुद्दों पर आधारित ‘मुल्क’ और ‘आर्टिकल 15’ जैसी फिल्में बना चुके डायरेक्टर अनुभव सिन्हा अब ‘थप्पड़’ लेकर आए हैं। उनकी बाकी फिल्मों की तरह यह फिल्म भी काफी कुछ कहती है, पर शांत रहकर। इस फिल्म के बारे में दर्शकों को सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ये घरेलू हिंसा के बारे में न होकर भी उसी बारे में है। फिल्म दरअसल मर्द और औरत के रिश्ते को दशार्ती है, जिसे अनुभव ने एक थप्पड़ के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है। यह सोचने के लिए मजबूर करने की एक कोशिश है कि रिश्ते में आप जिन छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज कर देते है, क्या उन्हें वाकई नजरअंदाज किया जाना चाहिए?
फिल्म आपसे सवाल करती है कि रिश्ते में हम-एक दूसरे को कितनी इज्जत दे रहे हैं? एक अमृता है जो अपने पति का ख्याल एक मां की तरह रखती है। एक उसका पति है विक्रम जो दिन रात काम के नशे में चूर रहता है। दफ्तर की सियासत कैसे घरों को बर्बाद करती है, इसका जिक्र करते हुए फिल्म उस मुकाम पर आती है, जहां हॉल में एक ‘थप्पड़’ की गूंज सुनाई देती है। फिल्म की कहानी बस इतनी सी लगती है, पर है नहीं। खैर ‘थप्पड़’ के बाद पुरुषों के अहम के बारे में चर्चा होती है और कई ऐसे मुद्दे उठाकर आपकी आंखें खोलने की कोशिश की जाती है, जिन्हें आप आमतौर पर नजरअंदाज कर देते हैं। अनुभव का काम उनकी बढ़ती उम्र के साथ और बेहतर होता जा रहा है। एक मर्द होकर भी औरतों की फीलिंग्स पर उन्होंने जो कहानी लिखी है, वह काबिल-ए-तारीफ है। कहानी पर उनका साथ रीमा लागू की बेटी मृणमयी लागू ने दिया है। तापसी ने यहां चुप रहकर इतना कुछ कह दिया है कि वे फिल्म देखने वाली हर महिला की प्रेरणा बन जाएंगी। उन्होंने अमृता को पूरी तरह जिया है। पवैल भी पत्नी की खुशियों को भूल चुके पति के किरदार में बखूबी जमे हैं। कुमुद मिश्रा की मौजूदगी वाला हर फ्रेम जिंदगी से भरा हुआ है। बाकी फिल्म के हर किरदार की एक अपनी कहानी है, जिसे निभाने वाले हर कलाकार ने खूबसूरती से दिखाया है। इस फिल्म में न कोई मेलोड्रामा है और न ही कोई कोर्टरूम ड्रामा। एक गीत है, जो अपनी जगह सार्थक है। बस इसकी गति कहीं-कहीं थोड़ी धीमी लगती है, पर कोई भी दृश्य आपको बोर नहीं करता।’