हरियाणा और यूपी से लगने वाली दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों ने भीषण ठंड के बीच शनिवार रात बेमौसम बरसात को झेला. देर रात शुरू हुई बारिश रविवार को भी दिन भर होती रही. कभी तेज़ तो कभी धीमी.
बरसात ने तापमान भले ही कम कर दिया लेकिन किसानों के हौसले को कम नहीं कर पाई.
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर दोपहर दो बजे जब बरसात एक बार फिर तेज़ होने लगी तो लोग अपने तंबुओं की बजाय फ़्लाईओवर के नीचे जमा हो गए.
शामली से आए सत्तर वर्षीय बुज़ुर्ग राघव सिंह ने पिछले दो हफ़्ते से फ़्लाईओवर के नीचे ही अपना आशियाना बना रखा है. उनके साथ उन्हीं के गाँव के चार लोग और वहीं रहते हैं. शनिवार रात हुई बरसात में तंबू में पानी आ गया, गद्दे कंबल सब भीग गए.
राघव सिंह कहते हैं, “अब अलाव के सामने रात में भी बैठेंगे. बिस्तर-कंबल सूख जाएंगे तो सोएंगे, नहीं तो ऐसे ही रात और दिन दोनों कटेंगे. वैसे गाँव से कुछ लोग आएंगे तो बिस्तर भी ले आएंगे. हमें इसकी चिंता नहीं है. चिंता तो इस बात की है कि जिस सरकार को हमने वोट देकर दिल्ली में बैठाया है, उसे हमारी ये मुसीबत नहीं दिख रही है.”
केंद्र के नए कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ पिछले चालीस दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों की मुश्किलें शनिवार को रात भर हुई बारिश ने और बढ़ा दी हैं.
बारिश होने से आंदोलन स्थलों पर तंबुओं में पानी भर गया और इस मुसीबत में उनके बिस्तर, कंबल और कपड़ों के अलावा वो लकड़ियां भी भीग गईं जिन्हें जलाकर वो इस कड़ाके की सर्दी में कुछ गर्मी पाते थे.
बरसात जैसे ही कम होती, किसान फिर सड़कों पर उतर आते और नारेबाज़ी करते. मुज़फ़्फ़रनगर से आए कई किसान ठंड और बारिश से बेफ़िक्र दिखे.
दिलीप सिंह कहने लगे, “किसानों की तो ऐसे मौसम की आदत ही है. हम तो ठंड और बारिश में खेती के आदी हैं. हम पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. हमारे लिए तो अच्छा ही है कि गेहूं की फ़सल को बारिश से फ़ायदा होगा. हाँ, हम शौक़ से तो यहां बैठे नहीं है. लेकिन हम तब तक बैठे रहेंगे, जब तक क़ानून वापस नहीं हो जाते.”
‘क़ानून वापस नहीं होते हैं, हम यहीं रहेंगे’
बारिश के कारण हुए जलभराव की वजह से कई किसानों के कपड़े भीग गए. ज़्यादातर लोगों ने या तो ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में या फिर सड़क पर ही तंबुओं के ज़रिए रहने का ठिकाना बना रखा है लेकिन प्लास्टिक और कपड़े के बने ये तंबू बारिश और तेज़ हवा बर्दाश्त करने लायक नहीं हैं.
उधर दिल्ली-हरियाणा के बीच सिंघु बॉर्डर पर काफ़ी दूर तक प्रदर्शनकारी किसानों ने अपना बसेरा बना रखा है. सड़कों पर भरे पानी को हटाने का काम भी प्रदर्शनकारी ख़ुद ही करते दिखे.
पंजाब के लुधियाना से आए गुरिंदर सिंह बताते हैं, ”एक महीने से यहीं हूं. गाँव में हमारी खेती चौपट हो रही है लेकिन नए क़ानून के विरोध में इसलिए सड़क पर पड़े हैं ताकि हमारी ज़मीनें बची रहें. यह परेशानी हम झेल लेंगे लेकिन आने वाली पीढ़ी के हाथ से तो उसकी ज़मीन ही खिसकाने की साज़िश की जा रही है. अब तो तय करके आए हैं कि जब तक तीनों क़ानून वापस नहीं होते हैं, हम यहीं रहेंगे.”
बारिश से बचने के किए इंतज़ाम
चंडीगढ़ की रहने वाली साठ वर्षीय बलजीत कौर पिछले दस दिन से अपने कुछ साथियों के साथ लंगर में खाना बना रही हैं. वो जिस तंबू में रहती हैं, शनिवार रात हुई बारिश में उसमें पानी भर गया.
बलजीत कौर कहती हैं, “बारिश का पता हम लोगों को तब चला जब नीचे हमारे गद्दे भीग गए. ऊपर तो तीन परत में तिरपाल लगी थी, उससे पानी नहीं आया लेकिन सड़क पर पानी भर जाने के बाद बिस्तर गीले हो गए.”
हालांकि, अब लोगों ने उसके लिए भी इंतज़ाम कर लिए हैं. अब बिस्तर के नीचे लकड़ियों के टुकड़े रख दिए गए हैं और तंबू के प्रवेश द्वार को मिट्टी रखकर ऊंचा कर दिया गया है ताकि पानी अंदर न पहुंच सके.
किसानों को चार जनवरी का भी इंतज़ार है जबकि किसान संगठनों और सरकार के बीच सातवें दौर की बातचीत होगी. लेकिन, अब तक की बातचीत से किसान बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं. यहां तक कि छठे दौर की बात से भी नहीं, जबकि सरकार और किसानों के बीच दो अहम मांगों- बिजली क़ानून और पराली जलाने को लेकर जुर्माने के मामले में सहमति बन गई थी.
गुरिंदर सिंह कहते हैं कि यह मांग तो सबसे आख़िरी मांग थी. असली मांग तो यही है कि तीनों क़ानून रद्द हों और एमएसपी पर लिखित गारंटी को क़ानून बनाया जाए. छठे दौर की बातचीत में भी इन दोनों सबसे अहम मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ था. हालांकि, किसानों को सोमवार की वार्ता से भी कोई बहुत उम्मीद नहीं है.
पंजाब के फ़रीदकोट के रहने वाले 70 वर्षीय किसान फतेह सिंह कहते हैं कि ठंड बढ़ने से किसान और मज़बूत हुआ है. वो कहते हैं, “पिछले एक चालीस दिन में किसानों का जोश लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बारिश और ठंड ने इसे और बढ़ाया है. किसानों का साथ मज़दूर और अन्य लोग भी दे रहे हैं. अब पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं है.”
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