(राजेश राय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। कल चौकाघाट क्षेत्र में अभिषेक सिंह उर्फ प्रिंस नामक कथित वकील की हत्या ने पुन: वकालत जैसे पवित्र पेशे में अपराधियों की घुसपैठ का मामला सतह पर ला दिया है। एक वक्त था जब बनारस कचहरी की पहचान जेपी मेहता, जीपी श्रीवास्तव, मंसाराम सिंह, नागेन्द्र सिंह, हरिशंकर पाठक, धर्मशील चतुर्वेदी जैसे दिग्गज व कानूनविद वकीलों से होती थी। धीरे-धीरे गिरावट का सिलसिला शुरु हुआ तो अब अभिषेक सिंह प्रिंस जैसे अपराधी वकील के रुप में पहचाने जाने लगे। पुलिस ने प्रिंस के मोबाइल की पड़ताल की तो उसमें गांजा, असलहों की तस्करी के तमाम रिकार्ड मौजूद मिले। इससे यह पता चलता है कि वकालत कितनी तेजी से गर्त में जा रही है। इसकी वजह अपराधी तत्वों की असामाजिक गतिविधियों के प्रति कचहरी के वरिष्ठ वकीलों द्वारा आंखे मूंदना या दूसरे शब्दों में कहें तो मौन समर्थन देना है। इसके पीछे धनबल की प्रमुख भूमिका है। बताया जाता है कि असामाजिक तत्व अब बार के चुनाव को भी धनबल से प्रभावित करने लगे हैं। इसके बदले निर्वाचित बार पदाधिकारी न सिर्फ उनके अपराध कर्म पर पर्दा डालते हैं बल्कि पुलिस में उनकी पैरवी भी करते हैं। पिछले दिनों बार काउंसिल के एक बडेÞ पदाधिकारी तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर से मिलकर एक वकील को गनर सुविधा दिलाने की सिफारिश लेकर गये थे। परन्तु प्रभाकर ने यह कह कर इनकार कर दिया कि अगर वकालत को लेकर कोई खतरा हो तो सुरक्षा दी जा सकती है परन्तु अपराधियों से गठजोड़ पर यह सुविधा नहीं प्रदान की जा सकती। कचहरी में प्रैक्टिस करने वाले अदना वकील को भी मालूम है कि किन-किन कालाकोटधारियों की माफियाओं से सांठगांठ है परन्तु वे चुप रहते हैं कि कौन बवाल मोल ले। यही चुप्पी अपराधी तत्वों का मनोबल बढ़ाती है। आरोप तो यहां तक है कि कतिपय वकील नामधारी लोग जेलों में जाकर माफियाओं से विवादों की पंचायत कराते हैं, बदले में मोटी रकम कमीशन के रुप में वसूलते हैं। माफियाओं से गठजोड़ का ही परिणाम है कि कतिपय वकील देखते ही देखते तमाम लग्जरी गाड़ियों के काफिले में कचहरी आने लगे। हालांकि यह सबको मालूम है कि यह दौलत वकालत पेशे से नहीं आयी। तमाम ऐसे वाकये हैं जिनसे वकीलों के घरेलू व पट्टीदारों के विवाद में जब पुलिस ने कार्रवाई की तो पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरना-प्रदर्शन का सहारा लिया गया। ऐसा नहीं है कि अपराधी-अधिवक्ता गठजोड़ को तोड़ने की कोशिशें पूर्व में नहीं हुई। कई बार हाईकोर्ट व बार काउंसिल ने अपराधी वकीलों की पहचान कर उनका पंजीकरण रद करने की पहल की। परन्तु वकीलों की अंदरुनी राजनीति के चलते यह कार्रवाई अमलीजामा नहीं पहन सकी। पिछले दिनों यूपी बार काउंसिल के अध्यक्ष दरवेश यादव की हत्या के बाद भी यह मांग उठी परन्तु कुछ दिनों की सरगर्मी के बाद यह ठंडे बस्ते के हवाले हो गयी। इसके चलते यह बीमारी अब लाइलाज हो गयी है। अगर वकालत के पेशे से इमानदारी से जुडेÞ अधिवक्ताओं ने शीघ्र कोई पहल नहीं की तो स्थिति बद से बदतर होती जायेगी।
कचहरी में तीस प्रतिशत वकील अपराधी : अशोक प्रिंस
वाराणसी। कचहरी के वरिष्ठ अधिवक्ता तथा सेंट्रल बार के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंह प्रिंस ने वकालत
के मौजूदा हालात पर गंभीर चिंता व्यक्त की है तथा कहा है कि अपराधी प्रवृत्ति के वकीलों के चलते
समूचे वकील समुदाय की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। ‘काशीवार्ता’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि हालत इतने बदतर हो चुके हैं कि कचहरी में लगभग तीस प्रतिशत वकीलों का आपराधिक इतिहास है। अशोक सिंह ने कहा कि सन् 1857 से लेकर 1952 तक वकालत का स्वर्णिम युग था। अब यात्रा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। बताया कि पुलिस से बचने के लिए कुछ लोग वकील का चोला पहन कर कचहरी में घूमते हैं। ऐसे लोग बार पदाधिकारियों को भी उपकृत करते हैं ताकि बुरे वक्त में वे काम आवें। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस समस्या को पुरजोर तरीके से उठाया है।