तीन सागरों के संगम पर अवस्थित कन्याकुमारी है तीर्थ-प्रकृति का संगम


कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य, नायका के अधीन रहा है। यह मध्यकाल में विजयानगरी साम्राज्य का भी हिस्सा रहा है। यहां पर तीन सागरों का संगम होता है। कन्याकुमारी में तीन समुद्रों-बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता है। इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। जहां समुद्र अपने विभिन्न रंगों से मनोरम छटा बिखेरते रहते हैं। समुद्र बीच पर रंग-बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। कन्याकुमारी पहले केप कोमोरन के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान भी हैं। समुद्र के बीच में इसी जगह पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था। यहां उनकी विशाल आदमकद मूर्ति है। इसी के पास एक दूसरी चट्टान पर तमिल के संत कवि तिरूवल्लुवर की 133 फीट ऊंची मूर्ति है।
यहां स्थित गांधी मंडपम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। बताया जाता है कि महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। कहते हैं कि 1948 में कन्याकुमारी में भी उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीनकाल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को 8 पुत्री और 1 पुत्र था। भरत ने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शिव की भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां होने लगीं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि वाणासुर का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाने लगा और वाणासुर के वध के बाद कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को ‘कन्याकुमारी’ कहा जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि शहर का नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर पड़ा है, जिन्हें भगवान कृष्ण की बहन माना गया है। यहां के समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं। कन्याश्रम- सवार्णी कन्याकुमारी : कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था। इसकी शक्ति है सवार्णी और शिव को निमिष कहते हैं। कुछ विद्वान को मानना है कि यहां मां का उर्ध्वदंत गिरा था। कन्याश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह शक्तिपीठ चारों ओर जल से घिरा हुआ है। ये एक छोटा सा टापू है जहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है।