वाराणसी (काशीवार्ता)। महंत आवास पर सुबह बाबा के साथ माता गौरा की चल प्रतिमा का पंचगव्य, पंचामृत स्नान के बाद दुग्धाभिषेक किया गया। गुजरात से आये खास खादी का राजसी वस्त्र और शाही पगड़ी बाबा को धारण कराया गया। माता गौरा बरसाने से आया घाघरा पहन, सोलहो श्रृंगार रचाकर दुल्हन के लिबास में भगवान श्रीगणेश को गोद में लेकर रजत पालकी में विराजीं। अबीर- गुलाल की बारिश के बीच बाबा की पालकी महंत आवास से निकलते ही समूचा वातावरण हर-हर महादेव और नम: पार्वती पतये के उद्घोष से गुंजायमान हो उठा। जबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था के बीच काशी के राजा की पालकी यात्रा टेढ़ीनीम की गलियों से होते हुए दशाश्वमेध मार्ग तक पहुंची तो वहां मौजूद श्रद्धालुओं की उत्साहित भीड़ के एक बार फिर हर हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष से पूरा क्षेत्र गंूज उठा।
बाबा की पालकी यात्रा डेढ़सी पुल होते हुए पुन: विश्वनाथ गली में प्रवेश कर गयी। सड़कों और गलियों में भीड़ ठसाठस रही वहीं आसपास के मकानों की छतों से गुलाब की पंखुड़ियों, फूलों और अबीर गुलाल की बारिश ने पूरे क्षेत्र को सराबोर कर दिया। झूमते-नाचते भोलेनाथ के भक्तों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। कोई पालकी यात्रा में शामिल होकर, कोई अबीर-गुलाल चढ़ाकर और कोई फूल बरसाकर इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनकर अपनी धन्यता का अहसास कर रहा था। अधिकतर लोग इस अनूठे पल को अपने मोबाइल के कैमरों में कैद कर रहे थे। लाइव टेलीकास्ट के बीच बाबा की चल प्रतिमा के साथ माता गौरा, श्रीगणेश को लेकर श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर स्थित अपने स्वर्णमयी गर्भगृह में प्रवेश किया। तत्पश्चात चल प्रतिमाओं को गर्भगृह में प्रतिष्ठापित किया गया। देर रात तक बाबा भक्तों को दर्शन देंगे। इस दौरान देश के ख्यातिलब्ध कलाकर शिवार्चन कार्यक्रम में भगवान शिव व माता पार्वती के मंगलगीतों की प्रस्तुतियां भी देंगे। दुनिया की अद्भुत, ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी नाथों के नाथ भोलेनाथ और माता गौरा के विदाई के अलौकिक दृश्य की आज काशी साक्षी बनी। टेढ़ीनीम स्थित पूर्व महंत डा. कुलपति तिवारी का आवास माता गौरा के मायके में श्रीकाशी विश्वनाथ गुरूवार को ही पधार चुके हैं। मंडप मंगलगीतों से गूंज रहा है और विदाई के रस्मों की तैयारी सुबह से ही की जा रही थी। शाम को शहनाई की मंगलध्वनि, ढोल की थाप और मजीरे की खनक के साथ डमरूओं के निनाद के बीच भोलेनाथ ने माता गौरा को रजत पालकी पर लेकर अपने धाम के लिए प्रस्थान किया। माता गौरा की गोद में प्रथम पूज्य श्रीगणेश बाल रूप में विराजमान रहे। इसी के साथ ही प्राचीन नगरी काशी अनूठे रंगोत्सव से झूम उठी। रंगभरी एकादशी के इस शुभ अवसर पर काशीपुराधिपति के भाल पर काशीवासी अबीर-गुलाल लगाकर विश्व के नाथ से होली खेलने की अनुमति मांग रहे थे। प्राचीन काल से चली आ रही इस मान्यता के अनुसार इसी के साथ काशी में होली उत्सव की शुरूआत हो गयी।
बाबा से मांगी होली खेलने की अनुमति
रंगभरी एकादशी पर विश्व के नाथ, काशीपुराधिपति श्रीकाशी विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। मंगला आरती से शुरू हुए भोलेनाथ के दर्शन के लिए भक्त स्वर्णमयी दरबार में पहुंचते रहे। लोगों ने भोले को पुष्प, गुलाल व अबीर अर्पित कर उनसे होली खेलने की अनुमति मांगते रहे। काशी की पहली होली विश्वनाथ के साथ ही खेली जाती है। उधर, भक्त भोर से ही बाबा के दर्शन के लिए कतारबद्ध हो गये थे। भीड़ को देखते हुए प्रशासन की ओर से विशेष व्यवस्था की गई थी। भक्तों को भगवान भोलेनाथ के झांकी दर्शन से ही संतोष करना पड़ा। चारो द्वार से जलपात्र से ही अरघे तक दूध और जल समर्पित किया जाता रहा। श्रद्धालु जल में थोड़ा अबीर-गुलाल डालकर बाबा को अर्पित करते रहे। इसके साथ ही दूर-दराज से आये हजारों भक्तों ने बाबा के दरबार में शीश नवाया और मंगलकामना की।