वकील बन कचहरी में अपराध करना सबसे आसान


(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी (काशीवार्ता)। लखनऊ में कुख्यात अपराधी संजीव जीवा की कचहरी परिसर में हत्या के बाद प्रदेश की जिला अदालतों में सुरक्षा व्यवस्था पर पुन: सवाल खड़े हो गए हैं। यह पहला मौका नहीं है जब किसी व्यक्ति की हत्या कचहरी परिसर में की गई है। दिल्ली हो या बनारस हर जगह की जिला अदालतें अब असुरक्षित हो चुकी हैं। दिल्ली में पिछले दिनों एक वकील ने साकेत कोर्ट में एक महिला को गोली मारकर घायल कर दिया। दिल्ली की ही रोहणी कोर्ट में एक कुख्यात गैंगस्टर की पिछले दिनों हत्या हुई थी। कड़कड़डूमा कोर्ट में भी वकील के भेष में आए हमलावरों ने एक अपराधी पर गोलियां बरसाई थीं। बनारस कचहरी में तो कुछ साल पहले बम धमाके में जहां कई वकील और वादकारी मारे गए थे वहीं कई वकील स्थाई रूप से अपंग हो गए। देखा जाय तो जिला अदालतें सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। गेट पर वादकारियों की भले ही जामा तलाशी हो जाय पर काले कोट वालों की बिलकुल नहीं होती। समस्या की असली वजह भी यही है। असली वकीलों की भीड़ में नकली वकील आसानी से परिसर में प्रवेश कर जाते हैं और अपने मंसूबे को अंजाम तक पहुंचा देते हैं। जब भी कोई बड़ी घटना होती है तब कुछ दिनों तक पुलिस की चुस्ती फुर्ती दिखाई पड़ती है फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है। पुलिस वाले भी निश्चिंत होकर आराम फरमाने लगते हैं। दिल्ली की जिला अदालतों में न सिर्फ वादकारियों की जामा तलाशी होती है बल्कि उनके समान भी एक्सरे मशीन से गुजरते हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बिना परिचय पत्र के वकील भी अंदर नहीं जा सकते। पर बनारस सहित अन्य जिलों की अदालतों में ऐसा नहीं होता। जब तक वकीलों का परिचय पत्र चेक नहीं होगा तबतक कचहरी परिसर की सुरक्षा फूलप्रूफ नहीं हो सकती। वैसे देखा जाय तो वकीलों के आईकार्ड चेक होने में फायदा भी वकीलों को ही है। देखा गया है कि बिना किसी डिग्री के बड़ी संख्या में काली कोट धारक अदालतों और कार्यालयों में चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसे फर्जी वकील जज से छोटी मोटी बहस भी कर लेते हैं। किसी मुकदमें में तारीख लेना तो इनके बाएं हाथ का खेल है। इस खेल में नुकसान असली वकीलों का होता है। नकली वकील मामूली फीस पर भी मुवक्किल के छोटे मोटे काम करा देते हैं। पिछले दिनों बनारस बार एसोसिएशन ने नकली वकीलों की धरपकड़ का एक अभियान चलाया था। जिसमें कई फर्जी वकील पकड़े गए थे। यह भी देखा गया है कि कई वकीलों के मुंशी भी काला कोट पहनकर परिसर में घूमते हैं। दूसरी तरफ गेट पर चेकिंग के दौरान पुलिस द्वारा आईकार्ड मांगने पर वकील इसे अपनी तौहीन समझते हैं। पुलिस भी बिना किसी विवाद में पड़े उन्हे अंदर जाने देती है। इस अव्यवस्था की आड़ में अनेक फर्जी वकील भी काला कोट पहन कर परिसर में घुस जाते हैं। कचहरी की सुरक्षा में यही सबसे बड़ी बाधा है।