गाजीपुर (काशीवार्ता)। दिखने में सुन्दर चेहरा। चमकती आंखें। चेहरे पर धीर गंभीर मुस्कान। प्रखर वक्ता। हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करने वाली बोली। कुछ कर गुजरने की ताकत। सपनों की झोली। आप सोच रहेंगे होंगे कि आखिर यह कौन है। जी हां हम बात कर रहे हैं हार कर जीतने वाले डा. सानंद सिंह की। आखिर वह भाजपा में आएंगे या फिर समाजवाद की कमजोर हो चुकी डाली को मजबूत करेंगे। वह कभी भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में पूरे जिले में अलग पहचान बनाने वाले डा. सानंद सिंह का सियासी मिजाज क्या है इसको लेकर अब खूब चर्चा हो रही है। कभी साइकिल पर सवार होकर विधानसभा और विधान परिषद का चुनाव लड़ने वाले डा. सानंद को कब भाजपा में आनंद की अनुभूति होगी। यह सवाल हर तरफ उठ रहे हैं। वर्ष 2007 का विधानसभा चुनाव लड़कर अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले जहूराबाद विधानसभा के सागापाली गांव निवासी डा. सानंद को सियासत में शुरू से ही धोखा मिला है। जब 2007 का वह विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, तब जहूराबाद में कुछ लोगों ने जहाज उड़ा दिया और सानंद की साइकिल पंचर हो गई। जब चुनाव परिणाम आए तो डा. सानंद सिंह जीत के करीब होते हुए भी हार गए। चुनाव हारने के बाद उन्होंने एक संकल्प लिया और मालवीय जी के पदचिंहों पर चलते हुए उन्होंने सत्यदेव गु्रप आफ कालेजेज को ही आगे बढ़ाया। यहां पर एलकेजी से लेकर उच्च शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा के साथ ही तकनीकी शिक्षा के लिए हर वर्ष हजारों युवा बोरसिया आते हैं। यह बोरसिया पहले एक उजाड़ खंड था। यहां पर फसलें नहीं होती थीं। बेसो नदी के तट पर स्थित बोरसिया गांव को आज कौन नहीं जानता। पिछले दिनों उन्होंने अपने पिता कर्मवीर सत्यदेव सिंह की पांचवीं पुण्यतिथि पर जो जुटान कराई वह निश्चित तौर एक बड़ा संदेश दे गई। सानंद सिंह ने भी लोगों का दिल खोलकर सम्मान किया। जब उन्होंने अपने पिता की पुण्यतिथि पर भाषण दिया तो उनकी आंखें भर गई।