वाराणसी (काशीवार्ता)। नवजात व छोटे बच्चों के इलाज के लिए बनारस में एक ऐसे अस्पताल की आवश्यकता थी, जहां बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल हो सके। तब प्रख्यात बाल रोग विशेषज्ञ डा. राजेंद्र पाठक ने अर्दली बाजार, महावीर मंदिर रोड पर वात्सल्य मल्टीस्पेशलिटी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल की स्थापना की। वात्सल्य यानि वह स्नेह जो माता-पिता के हृदय में संतति के प्रति होता है। इसे सही मायने में पूरा करता है यह हॉस्पिटल। यहां भर्ती नवजात बच्चों को चिकित्सक व कर्मचारी माता पिता जैसा स्नेह देते हैं। आज यह हॉस्पिटल पीडियाट्रिक्स के क्षेत्र में पूर्वांचल का एक जाना पहचाना नाम बन चुका है। यहां बच्चों के इलाज के लिए बेहतर और अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। डॉ.राजेन्द्र पाठक व उनकी पत्नी डॉ.छाया पाठक ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज, इलाहाबाद से एमडी करने के उपरांत 1990 में अर्दली बाजार क्षेत्र में बाल चिकित्सक के रूप में कार्य प्रारंभ किया।
तथा आगे चलकर उन्होंने वात्सल्य चिल्ड्रेन हास्पिटल की शुरूआत की। देखते-देखते डॉ.पाठक की ख्याति फैलने लगी और पूर्वांचल सहित बिहार के भी मरीज यहां आने लगे। अस्पताल को अब उनके बेटे डॉ. दिव्यांक पाठक आगे बढ़ा रहे हैं। डॉ. दिव्यांक ने सेंट मेरिज से कक्षा 8 तक व सनबीम भगवानपुर से 2006 में इंटर की परीक्षा पास की। तत्पश्चात पीएमटी का टेस्ट पास कर पुणे के परबरा इंस्टिट्यूट आॅफ मेडिकल साइंस से एमबीबीएस किया। जिसके उपरांत मेरिट के आधार पर एमडी पीडियाट्रिक हेतु उनका चयन हुआ। एमडी करने के बाद उन्होंने नई दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में दो वर्षों तक क्रिटिकल बच्चों व एक वर्ष हृदय रोग से पीड़ित गंभीर बच्चों का इलाज किया। बाद में आपने बच्चो के फेफड़े, एलर्जी, अस्थमा के लिए सुपर स्पेशलाइजेशन की डिग्री ली तथा मेदांता हॉस्पिटल में पीआईसीयू के लिए कंसल्टेंट के रूप में कार्य किये। हालांकि यह सब अधिक दिनो तक नहीं चल सका। बनारस ने उन्हें वापस बुला ही लिया। यहां आकर उन्होंने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा लिया। देखा जाये जरुरत बनारस जैसे शहर को ही ऐसे चिकित्सकों की है। वरना दिल्ली व दूसरे बड़े शहरों में पहले से ही तमाम चिकित्सक मौजूद हैं।
माता-पिता की प्रेरणा
से चिकित्सक बने
डॉ. दिव्यांक की शादी डेंटल सर्जन डॉ. मनीषा पाण्डेय से हुई। उनका कहना है बचपन से ही माता-पिता को बच्चों का इलाज करते देखा था। मेरे मन में भी यह विचार था कि एक दिन मैं भी अपने माता-पिता की तरह बच्चों का इलाज करूंगा। मेरे माता-पिता ने कभी मुझपर डाक्टर बनने का दबाव नहीं डाला। उनका कहना था कि जिस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना हो उसे चुनो और मन लगा कर पढ़ाई करो। मेरे समझ से हर मां-बाप को ऐसा ही करना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं तो देश में हर क्षेत्र में प्रतिभाएं बढ़ेंगी साथ ही आत्महत्या जैसी घटनाओं में भी कमी आएगी। डॉ. दिव्यांक का कहना है, काशी में वर्तमान समय में बहुत सारे अस्पताल हैं किंतु सुविधा की यहां बहुत कमी है। वात्सल्य चिकित्सालय में सभी सुविधाएं मौजूद हैं।
वात्सल्य से बच्चों को रेफर नहीं किया जाता
बनारस ही नहीं पूरे पूर्वांचल का सबसे अत्याधुनिक अस्पताल होने के कारण यहां क्रिटिकल केस ज्यादा आते हैं। यहां 24 घंटे सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सक की मौजूदगी होती है। जिसके चलते आज वात्सल्य मल्टीस्पेशलिटी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल पूरे पूर्वांचल का रेफरल सेंटर बन चुका है। यहां आने वाले बच्चे स्वस्थ होकर ही जाते हैं। उन्हें कहीं अन्यत्र रेफर नहीं करना पड़ता है। बताया जाता है कि पूर्वांचल सहित बिहार के अस्थमा, एलर्जी व फेफड़े के रोग से पीड़ित बच्चे यहां लाए जाते हैं। इस हॉस्पिटल में गरीब मरीजों के लिए सैनी बेड के नाम से एक हजार प्रतिदिन देने पर उनका इलाज, जांच एवं दवाएं उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा प्रतिमाह नि:शुल्क कैम्प लगाने के साथ ही स्कूलों में बच्चों को जरुरी परामर्श भी दिया जाता है। कभी-कभी यहां ऐसे भी मरीज आते हैं, जिनके माता-पिता के पास कुछ नहीं होता है। ऐसे मरीजों का हम नि:शुल्क इलाज करते है। अस्पताल में बीमार बच्चे की जांच के साथ ही उसके मां की भी पूरी जानकारी ली जाती है, जो अन्य अस्पतालों में नहीं होता है।