सीमा मुद्दे को लेकर चीन के साथ चल रहे विवाद के बीच भारतीय सेना ने उत्तरी सिक्किम में तैनात सैनिकों को लेटेस्ट सिग सॉयर असॉल्ट राइफलें और ऑल-टेरेन व्हीकल (एटीवी) उपलब्ध कराए गए हैं। कई सालों तक इंसास राइफल्स की मदद से आतंकियों और दुश्मनों से लड़ने के बाद अब सेना के पास लेटेस्ट सिग सॉयर 716 असॉल्ट राइफल है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी), नियंत्रण रेखा (एलओसी) से ये राइफलें आतंकवाद से प्रभावित कई इलाकों में तैनात जवानों को मुहैया कराई गई हैं। इन राइफलों का इस्तेमाल उज्बेकिस्तान के साथ चल रहे अभ्यास ‘डस्टलिक’ में भी हो रहा है।
सिग-716 का निर्माण अमेरिकी कंपनी ‘सिग सायर’ ने किया है। यह कंपनी दुनिया में बेहतरीन राइफल बनाने के लिए जानी जाती है। सिग-716 को एलओसी, एलएसी सहित उग्रवाद विरोधी अभियानों के लिए उपलब्ध कराया गया है। भारतीय सेना आमतौर पर एके-47 का इस्तेमाल करती रही है। इसके अलावा लंबे समय तक इंसास का भी इस्तेमाल किया जाता था। कश्मीर में आतंकी पहले से ही एके-47 का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसकी मारक क्षमता 300 मीटर है। इंसास की रेंज 400 मीटर हो सकती है। इसका 5.56 मिमी कैलिबर दुश्मन को घायल कर देगा, जिससे बहुत करीब से गोली मारने पर मौत हो जाएगी। नतीजा यह रहा कि कई गोलियां लगने के बाद भी आतंकवादी लड़ते रहे। तालिबान के खिलाफ अमेरिकी सेना को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ा था। इसके बाद एक नए प्रकार की असॉल्ट राइफल का विकास शुरू हुआ। इससे पहले, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में, 13 कुमाऊं के एक सैनिक ने उज्बेकिस्तान के साथ डस्टलिक अभ्यास में इस्तेमाल की गई सेना की बिल्कुल नई सिग सॉयर 716 असॉल्ट राइफलों के बारे में बताया था।
सिग सॉयर 716 को 7.62 x 51 मिमी राउंड फायर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसकी रेंज 600 मीटर है, जो एके-47 से दोगुनी है, यानी आतंकियों को उनके करीब जाए बिना भी निशाना बनाया जा सकता है। इसमें शॉर्ट-स्ट्रोक पिस्टन-चालित ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसके परिणामस्वरूप ऑपरेटर को कम झटका लगता है, जिसका अर्थ है कि सटीकता बढ़ जाती है। इसमें M1913 मिलिट्री स्टैण्डर्ड रेल्स भी मिलती हैं जिन पर नाइट विजन डिवाइस, टार्च या मिशन की आवश्यकता के अनुसार कोई अन्य उपकरण लगाया जा सकता है।