कोरोना महामारी की दूसरी लहर का भारत पर तबाही और बर्बादी लाने वाला असर दिखने लगा है. पिछले तीन दिनों से भारत में कोरोना संक्रमण के चार लाख से भी ज़्यादा मामले हर रोज़ दर्ज किए जा रहे हैं.
इस महामारी के कारण बीते सात दिनों से हर रोज़ औसतन 3700 से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है. जॉन्स हॉक्पिन्स युनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार महामारी की शुरुआत से इस वायरस से अब तक देश में 2.22 करोड़ से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और 2.42 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
विशेषज्ञ इस ओर भी ध्यान दिला रहे हैं कि भारत में संक्रमण और मृत्यु के सरकारी आँकड़े और जमीनी हक़ीक़त में बड़ा फासला है.भारत में महामारी की दूसरी लहर को कई पहलुओं से जोड़कर देखा जा रहा है.
पहला तो ये कि आँकड़े ठीक से इकट्ठा नहीं किए गए और सरकार ने हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ करते हुए उसे ख़ुशी से स्वीकार कर लिया. दूसरी वजह ये रही कोरोना वायरस का एक नया वैरिएंट उम्मीद और सोच से कहीं ज़्यादा घातक रहा.
तीसरी वजह ये थी कि देश में चुनाव का मौसम था, कुंभ आयोजित किया गया और ये सब कुछ कोविड प्रोटोकॉल को किनारे रखते हुए किया गया. अब ये साफ़ है कि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा एक मानवीय संकट का सामना कर रहा है.
देश में 1.4 अरब की आबादी रहती है यानी दुनिया का हर छठा आदमी हिंदुस्तानी है. आगे हम कुछ उन बातों को समझने की कोशिश करेंगे जिससे दुनिया की अर्थव्यवस्था भारत के संकट से अछूती नहीं रह सकती है.
1. एक साल जिसे भारत ने खो दिया
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विश्व के आर्थिक विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है. भारत का आर्थिक विकास तुलनात्मक रूप से चार से आठ फ़ीसदी के बीच रहता आया है. उसके पास दुनिया का एक बहुत बड़ा बाज़ार है.
यहां तक कि महामारी के आने से पहले साल 2020 के शुरू में विश्व मुद्रा कोष ने कहा था कि भारत के योगदान में कमी के कारण ही साल 2018 और 2019 में वैश्विक विकास में सुस्ती देखी गई थी.
साल 2020 के लिए आईएमएफ़ ने भारत की विकास दर को लेकर अपना पूर्वानुमान कम करके 5.8 फीसदी कर दिया था. हालांकि आईएमएफ़ को भारतीय उपमहाद्वीप से ज़्यादा की उम्मीद थी.
अब ऐसा लग रहा है कि साल 2020 में वैश्विक विकास की दर गिरकर चार फ़ीसदी के पास रह गई जबकि भारत के विकास दर में लगभग दस फ़ीसदी की गिरावट हुई है.
साल 2021 के लिए हर किसी को ये उम्मीद थी कि भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था फिर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी लेकिन अब इन अनुमानों पर पानी फिरता हुआ दिख रहा है.
उदाहरण के लिए इन्वेस्टमेंट समूह नोमुरा की चीफ़ इकॉनॉमिस्ट सोनल वर्मा ने अनुमान लगाया है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद मौजूदा तिमाही में 1.5 फीसदी सिकुड़ जाएगा.
ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं भी भारत की तरह ही संकट का सामना कर रही हैं. ऐसे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि दुनिया के विकास पर भी इसका असर पड़ेगा.
2. अंतरराष्ट्रीय पाबंदियां
भारत में महामारी जिस पैमाने पर फैली हुई है, उसे देखते हुए ऐसा लग रहा है कि अंतरराष्ट्रीय पाबंदियां अभी और लंबे समय तक बनी रहेंगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ़ साइंटिस्ट सौम्या स्वामिनाथन के शब्दों में कहें तो “कोरोना वायरस अंतरराष्ट्रीय सीमाओं, राष्ट्रीयताओं या उम्र या लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है.”
हालांकि कई विशेषज्ञ ये सवाल उठाते रहे हैं कि भारत जैसे बड़े देश को क्या वाकई में आइसोलेट किया जा सकता है?
हाल ही में नई दिल्ली से हॉन्ग कॉन्ग के लिए रवाना हुई एक फ्लाइट के 52 पैसेंजर कोरोना संक्रमित पाए गए थे. हम ये भी जानते हैं कि कोविड का भारतीय वैरिएंट पहले ही ब्रिटेन पहुंच चुका है. जबकि भारत में ख़ासकर पंजाब में दूसरी लहर के ब्रितानी वैरिएंट को जिम्मेदार ठहराया गया था.
भारत से इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए कड़े क्वारंटीन नियमों और यात्रा पाबंदियों की ज़रूरत है. विमानन सेवा, एटरपोर्ट और इस सेक्टर से जुड़े कारोबार पर निर्भर लोगों के लिए ये बुरी ख़बर है. इसलिए वैश्विक आर्थिक विकास पर इसका गहरा असर होने जा रहा है.
3. फार्मा कंपनियों की समस्याएं
आकार के पैमाने के हिसाब से देखें तो भारत का दवा उद्योग दुनिया की तीसरा सबसे बड़ी फार्मा इंडस्ट्री है. पैसे के हिसाब से ये दुनिया का 11वां सबसे बड़ा उद्योग है. दुनिया भर में जितनी दवाओं का निर्यात किया जाता है, उसमें 3.5 फीसदी हिस्से का योगदान भारत से आता है.
जेनरिक दवाओं के मामले में वैश्विक निर्यात का 20 फ़ीसदी भारत से होता है. अगर भारत के दवा उद्योग के इस निर्यात पर किसी किस्म का संदेह पैदा हुआ तो दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाओं को इसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं.
मौजूदा हालात में भारत दुनिया के 70 फ़ीसदी वैक्सीन का उत्पादन करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स प्रोग्राम के तहत भारत की सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया को 64 ग़रीब देशों के लिए ऐस्ट्रा ज़ेनेक वैक्सीन के उत्पादन का अधिकार दिया गया है.
इसके साथ ही सीरम इंस्टिट्यूट को ब्रिटेन के लिए 50 लाख खुराकों के लिए भी उत्पादन करना है. भारत के कोरोना संकट का ये मतलब हुआ कि या तो वैक्सीन के निर्यात को रोक दिया गया है या फिर रद्द कर दिया गया है.
महामारी की नई लहर का सामना कर रहे कई देशों के ये बुरी ख़बर है और उनके यहां आम जिंदगी को फिर से पटरी पर लौटाने की कोशिश में ठहराव आ जाएगा. अगर भारत पूरी दुनिया को वैक्सीन की सप्लाई नहीं कर पाएगा तो हम इसके साइड इफेक्ट्स देखेंगे.
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बार-बार लॉकडाउन लगाए जाएंगे, सोशल डिस्टेंसिंग के प्रोटोकॉल बढ़ जाएंगे और दुनिया भर के देशों में आर्थिक गतिविधियां एक बार सुस्ती का शिकार हो जाएंगी.
4. सेवाएं जो नहीं मुहैया कराई जा सकेंगी
भारत पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में कई कामों के सपोर्ट स्टाफ़ मुहैया करता है. ख़ासकर वित्तीय और स्वास्थ्य क्षेत्र में. अब महामारी के कारण ये सेवाएं अबाध गति से जारी नहीं रखी जा सकेंगी.
उदाहरण के लिए, इसे देखते हुए अमेरिकी व्यापारिक संगठन यूएस चैंबर ऑफ़ कॉमर्स ने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के कदमों में बेड़ियां डाल सकती हैं.
दूसरा उदाहरण ब्रिटेन का है, जिसके लिए ब्रेग्जिट के बाद भारत से व्यापारिक रिश्ते काफी मायने रखते हैं. ब्रिटेन के लिए भारत की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 2021 में ब्रितानी प्रधामंत्री बोरिस जॉनसन दो भारत यात्रा का कार्यक्रम बना चुके हैं लेकिन महामारी के कारण उन्हें आख़िरी लम्हों में इसे स्थगित करना पड़ा.
इन समस्याओं को देखते हुए दुनिया के लिए ये ज़रूरी हो गया है वो भारत की मदद के लिए जल्द से जल्द क़दम उठाए.
हालांकि शुरुआती देरी के बाद दुनिया भर के देशों से अब भारत के लिए मदद पहुंचने लगी है. ब्रिटेन ने वेंटिलेटर्स और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स भेजे हैं. अमेरिका ने दवाओं और वैक्सीन के लिए कच्चे माल के साथ रैपिड टेस्ट किट्स और वेंटिलेटर्स भेजे हैं.
जर्मनी ने भी मेडिकल हेल्प के अलावा ऑक्सीजन की सप्लाई भेजी है. लेकिन भारत को जो कुछ भी भेजा जा रहा है, वो उसकी ज़रूरतों के लिहाज से समंदर में एक बूंद के बराबर लग रहा है.
लेकिन कम से कम ये बात तो दिख रही है कि दुनिया को भारत की परवाह है.
भारत सरकार भले ही मौजूदा संकट को संभालने में कारगर न रही हो लेकिन दुनिया पर पड़ने वाले इसके असर को न समझना उसे नजरअंदाज करने जैसा ही था.
अगर दुनिया के बड़े देश भारत की मदद कर पाने में नाकाम रहे तो जल्द ही भारत का संकट वैश्विक संकट में बदल सकता है और ऐसा केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में नहीं होगा बल्कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
(उमा एस कंभमपति ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर हैं. उनका ये लेख अंग्रेज़ी में द कन्वर्शेशन पर प्रकाशित हुआ था. मूल लेख पढ़ने के लिए करें.)