चिंता वास्तविक है लेकिन समस्या के दायरे का मूल्यांकन करना चुनौती भरा रहा है. लोगों से उनके वजन के बारे में मामूली सवाल पूछकर सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करना अविश्वनीय है. फिर भी, लॉकडाउन का असर हमारे वजन पर कितना पड़ा, इसकी झलक नई रिसर्च में देखी जा सकती है.
कोरोना वायरस संक्रमण को काबू में करने के लिए पिछले साल लॉकडाउन लगाए गए थे. लोग घरों में कैद रहने को मजबूर बना दिए गए. बाहर निकलना बंद होने से उन्होंने कंप्यूटर, नेटफ्लिक्स और भोजन का खूब इस्तेमाल किया. उसका नतीजा सोमवार को प्रकाशित जामा नेटवर्क ओपन की रिपोर्ट में देखा जा सकता है.
लॉडकाउन ने बढ़ाया प्रति महीना 2 पाउंड वजन
रिसर्च के मुताबिक, अमेरिकी नागरिकों का वजन क्वारंटीन में रहते हुए प्रति महीने 2 पाउंड बढ़ा. शोधकर्ताओं ने कार्डियोलॉजी पर रिसर्च में शामिल 269 प्रतिभागियों से हासिल डेटा का विश्लेषण किया. उन्होंने ब्लूटूथ डिवाइस युक्त स्मार्ट स्केल से वजन के माप की स्वेच्छा से रिपोर्ट दी और खुद को नियमित रूप से तौला. शोधकर्ताओं ने चार महीने तक 7,444 वजन के माप को इकट्ठा किया यानी औसतन हर प्रतिभागी से 28 वजन का माप.
प्रतिभागियों में करीब 52 फीसद महिला, 77 फीसद गोरे और उनकी औसत आयु 52 साल थी. शोधकर्ताओं ने 1 फरवरी 2020 और 1 जून, 2020 के बीच लिए गए वजन के माप का विश्लेषण किया. उनका मकसद लॉकडाउन लागू होने से पहले और लॉकडाउन लागू होने के बाद दोनों से वजन में आए बदलाव का पता लगाना था. रिसर्च टीम ने पाया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद हर 10 दिन पर प्रतिभागियों के वजन में एक पाउंड के छह-दसवें हिस्से नियमित बढ़े यानी प्रति महीना 1.5 से 2 पाउंड तक वजन ज्यादा हुआ.
रिसर्च ने दिखाया बड़ी समस्या की छोटी झलक
हालांकि, लाकडॉउन प्रभावी होने से पहले प्रतिभागियों में से कई लोगों का वजन कम हो रहा था. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सान फ्रांसिस्को के शोधकर्ता जॉर्ज मार्कस ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, “हम जानते हैं कि वजन का बढ़ना अमेरिका में जन स्वास्थ्य की समस्या है, इसलिए किसी भी चीज का उसे खराब बनाना निश्चित रूप से चिंता का विषय है और घरों में रहने के आदेश का असर इतना बड़ा है कि इससे मामूली संख्या के प्रभावित होने को अत्यंत प्रासंगिक बनाता है.”
उन्होंने टाइम्स को बताया कि लॉकडाउन का प्रभाव उन लोगों के लिए और भी व्यापक हो सकता था जो लॉकडाउन से पहले अपना वजन कम नहीं कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि ये बड़ी समस्या की छोटी सी झलक है. शोधकर्ताओं ने हालांकि ये भी कहा कि छोटे स्तर पर किया गया रिसर्च पूरी अमेरिकी आबादी के लिए सामान्य नहीं हो सकता, लेकिन ये एक संकेत है जो बताता है कि महामारी के दौरान क्या हुआ. प्रतिभागियों के वजन में उनके स्थान और पुरानी मेडिकल स्थितियों के बावजूद बढ़ोतरी हुई.