लंदन, ब्रिटेन के सुरक्षा सूत्रों ने दावा किया है कि रूस ने स्पुतनिक वैक्सीन बनाने के लिए बहुत बड़ी चोरी की है। ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ब्लूप्रिंट द्वारा ने चुरा लिया था और फिर उस ब्लूप्रिंट के जरिए ही रूस ने अपने देश में स्पुतनिक वैक्सीन बनाने में कामयाबी हासिल की है।
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रूस पर सनसनीखेज आरोप
ब्रिटिश सुरक्षा सूत्रों ने कथित तौर पर देश के मंत्रियों को बताया है कि, उनके पास इस बात के सबूत हैं कि क्रेमलिन के लिए काम करने वाले जासूसों ने अपनी खुद की वैक्सीन डिजाइन करने के लिए बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी से कोविड जैब का ब्लूप्रिंट चुराया था। ब्रिटिश अखबार द सन की रिपोर्ट के मुताबिक, यह समझा जाता है कि ब्लूप्रिंट और महत्वपूर्ण जानकारी एक विदेशी एजेंट द्वारा व्यक्तिगत रूप से चुराई गई थी। ब्रिटिश सुरक्षा सूत्रों ने ये दावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उस बयान के बाद किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो रूस में बनी स्पुतनिक वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके हैं और उन्होंने रूस के लोगों से वैक्सीन लेने का आग्रह किया था।
दोनों वैक्सीन में एक तरह की टेक्नोलॉजी
दरअसल, सितंबर महीने में रूस ने प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लैसेंट में स्पुतनिक वैक्सीन को लेकर शुरूआत में किए गये क्लिनिकल ट्रायल को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि रूसी वैज्ञानिकों ने आखिर किस तरह से स्पुतनिक वैक्सीन बनाई है, लेकिन मेडिकल जर्नल द लैसेंट में प्रकाशित रिपोर्ट ने ब्रिटिश वैज्ञानिकों को चौंका दिया। क्योंकि, स्पुतनिक वैक्सीन बनाने में जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था, वही टेक्नोलॉजी ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने इस्तेमाल किया था। रिसर्च में शामिल रूसी वैज्ञानिकों ने कहा कि वैक्सीन ने टीका लेने वाले सभी लोगों में एंटीबॉडी का निर्माण किया और किसी को भी स्वास्थ्य संबंधी कोई नुकसान नहीं हुआ। रूसी वैक्सीन को लेकर लिखा गया था कि, वैक्सीन लेने से शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण होता है और रूसी वैक्सीन कोरोना वायरस के ऊपर काफी प्रभावी है। हालांकि, इस रिसर्च में सिर्फ 76 लोगों को ही शामिल किया गया था और ज्यादातर स्वयंसेवकों की उम्र 20 से 30 साल के बीच थी।
”वैक्सीन उत्साह बढ़ाने वाला”
अमेरिका और ब्रिटेन के वो वैज्ञानिक, जिन्हें असलियत की जानकारी नहीं थी, उन्होंने स्पुतनिक वैक्सीन को लेकर कहा था कि, वैक्सीन के परिणाम काफी ‘उत्साहजनक’ हैं। लेकिन, वैज्ञानिकों को अभी भी रूसी वैक्सीन की क्वालिटी को लेकर शक था। रूस की तरफ से दावा किया गया था कि ये परीक्षण राजधामी मॉस्को के दो अस्पतालों में किए गये हैं और 18 से 60 साल की उम्र वाले लोगों पर इसका परीक्षण किया गया है। पत्रिका में रूस के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि वैक्सीन टेस्ट करने के शुरूआती पहले चरण में उन्होंने परीक्षण में शामिल लोगों को वैक्सीन की एक छोटी खुराक दी थी। जिसके बाद लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच की गई।
वैक्सीन का प्रभाव
वैक्सीन लेने वाले करीब 60 प्रतिशत लोगों को इंजेक्शन लेने के बाद थोड़ा दर्द महसूस हुआ था, वहीं परीक्षण में शामिल आधे लोगों को तेज बुखार आई थी और डॉक्टर्स का मानना है कि, ये लक्षण बताते हैं कि वैक्सीन कारगर है। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ने कहा है कि, प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में रूस की तरफ से स्पुतनिक वैक्सीन को लेकर रिपोर्ट तब प्रकाशित की गई, जब रूस के राष्ट्रपति ने वैक्सीन की दोनों खुराक लेने का दावा कर दिया था। रूसी राष्ट्रपति ने दावा करते हुए कहा था कि, वैक्सीन की एक खुराक मैंने दिन के वक्त और दूसरी खुराक मैंने रात के वक्त ली थी, और देखिए मैं पूरी तरह से ठीक हूं। हालांकि, रूसी राष्ट्रपति के वैक्सीन लेने को लेकर कोई तस्वीर क्रेमलिन की तरफ से जारी नहीं किया गया था।
खुफिया एजेंसी का दावा
ब्रिटिश खुफिया एजेंसी के सूत्रों ने दावा किया है कि, रूस के एजेंट्स ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की ब्लूप्रिंट हासिल करने के बाद उसे रूसी वैज्ञानिकों को सौंप दिया। ‘द सन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को लेकर काफी झूठ फैलाया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग स्पुतनिक वैक्सीन लें। इतना ही नहीं, ब्रिटिश खुफिया सूत्रों का मानना है कि रूस ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को लेकर भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया और कनाडा में भी गलत प्रचार फैलाया, ताकि इन बाजारों में स्पुतनिक वैक्सीन अपनी पकड़ बना सके। विशेषज्ञों ने बताया है कि अफ्रीकन मीडिया में स्पुतनिक वैक्सीन को लेकर 66 प्रतिशत सकारात्मक प्रचार किया गया।