वाराणसी। आसमान से लू के रूप में बरस रहे कहर के बीच अन्य तरह की बीमारियां भी अपना असर बढ़ा रही हैं। इसी कारण मौतों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वाराणसी का महाश्मशान मणिकर्णिका घाट है। जहां शवदाह के लिए चिताओं की कतार लग रही है। लोगों को घंटो इंतजार करना पड़ रहा है। बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड और पूर्वांचल सटा होने के कारण मोक्ष की कामना के लिए सभी लोग शव को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर लाते हैं। भीषण गर्मी के चलते यहां लोग शव को शाम के समय लेकर आते हैं, इससे शवों का ट्रैफिक बढ़ रहा है। शवदाह करने के लिए लोगों को तीन से चार घंटे का इंतजार करना पड़ता है। हालांकि इसका बड़ा कारण मणिकर्णिका घाट पर जगह की कमी भी है। बीते साल के मुकाबले इस वर्ष निर्माण कार्यों के कारण मणिकर्णिका घाट पर अंत्येष्टि के लिए कम जगह बची है। श्मशान घाट के व्यवसायियों की मानें तो आम तौर पर सामान्य दिनों में 50 से 80 शवों की अंत्येष्टि होती है। लेकिन, मौसम के इस बदलाव ने मौतों की संख्या अचानक बढ़ा दी है। बनारस के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट से लेकर हरिश्चंद्र समेत अन्य श्मशान घाटों पर शवों की संख्या बढ़ी हैं। यहां शव लेकर आने वालों को दो से तीन घंटे इंतजार के बाद ही शव जलाने का मौका मिल रहा है। सभी घाटों पर सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा चिताएं पहुंच रही हैं। इस कारण लकड़ी के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। शहर से लेकर गांव तक गंगा किनारे स्थित अन्य श्मशान घाटों पर भी यही हाल है। माना जा रहा है कि भीषण गर्मी में चल रही गर्म हवाएं जानलेवा बनी हैं। शायद यही वजह है कि मृतकों की संख्या बढ़ी है। दाह संस्कार के लिए महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर मुश्किलों का सामना भी करना पड़ रहा है। चिलचिलाती धूप में न छांव है और न पानी की मुक्कमल व्यवस्था। शाम के समय स्थिति और ज्यादा विकट हो रही है। यहां लोगों को चिता जलाने के लिए भी जेब ढीली करनी पड़ रही है। शवदाह में लगने वाले लकड़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं।