डार्विन के क्रम विकास सिद्धांत ने बताया बंदर से कैसे बने इंसान


इंसान के पूर्वज बंदर थे यह बात आज लगभग सारी दुनिया स्वीकार चुकी है। बंदर के क्रम विकास से इंसान कैसे बने इस बात को बताने वाले महान वैज्ञानिक थे चार्ल्स डार्विन जिन्होंने उस समय में अपने सिद्धांत को लोगों के सामने रखा जब लोगों की आस्था उन्हें उनके धार्मिक ग्रंथों में कही बातों के अलावा कुछ भी समझने की इजाजत नहीं देती थी। क्रम विकास के सिद्धांत को जानने से पहले हालांकि खुद चार्ल्स डार्विन भी इंसान की उत्पत्ति को लेकर बाइबल में लिखी बात को अस्वीकार नहीं करते थे किन्तु जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों के बारे में उनकी विशेष रूचि और अपनी वैज्ञानिक सोच के चलते जब वे प्रकृति के विकासवाद को जान पाए तो उन्होंने इंसानों और जीव-जन्तुओं में होने वाले विकास को न सिर्फ स्वयं स्वीकारा बल्कि इस सिद्धांत को दुनिया के सामने भी रखा। चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर श्रेव्स्बुरी में हुआ था। उनके पिता रोबर्ट डार्विन चिकित्सक थे। उनका परिवार खुले विचारों वाला था।

बचपन से ही चार्ल्स डार्विन प्रकृति और पशु-पक्षियों के व्यवहार के अवलोकन, बीटल्स की दुर्लभ प्रजातियां खोजने, फूल-पत्तियों के नमूने इकट्ठा करने में अपना समय गुजारा करते थे। उनका मन स्कूल में पढ़ाई जाने वाली ग्रीक, लैटिन एवं बीजगणित में नहीं लगता था। पिता रोबर्ट डार्विन बेटे चार्ल्स डार्विन को भी अपनी ही तरह चिकित्सा के क्षेत्र में भेजना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने चार्ल्स का दाखिला मेडिकल में कराया किन्तु वहां भी चार्ल्स डार्विन का मन नहीं लगा और उन्होंने बीच में ही मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी। वनस्पति शास्त्र में चार्ल्स डार्विन की रूचि को देखते हुए बाद में उनका दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कराया गया जहां से 1831 में चार्ल्स डार्विन ने डिग्री प्राप्त की। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में चार्ल्स डार्विन के प्रोफेसर हेन्सलो चार्ल्स डार्विन के कार्यो विशेषकर प्रकृति में उनकी विशेष रूचि और लगाव को देखकर बहुत प्रभावित थे जिसके चलते उन्होंने समुद्री जहाज एचएमएस बीगल पर चार्ल्स को प्रकृतिवादी के पद पर नियुक्ति के लिए आॅफर दिया, हालांकि चार्ल्स के पिता इसके लिए तैयार नहीं थे किन्तु चार्ल्स डार्विन ने इस पद को स्वीकार कर लिया। 1831 से 1836 तक बीगल जहाज पर चार्ल्स डार्विन की 5 वर्ष की समुद्री यात्रा जिसमें उन्होंने कई महाद्वीपों का भ्रमण किया उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनी। इस समुद्री यात्रा के दौरान डार्विन ने जगह-जगह घूमकर वहां के जीव जन्तुओं, इंसान और पेड़-पौधों के जीवन और समय व वातावरण के साथ उनके बदलाव पर कई तरह की नई जानकारियां और तथ्य इकट्ठे किए। एचएमएस बीगल पर यात्रा के बाद लगभग 20 साल तक चार्ल्स डार्विन ने पौधों और जीवों की प्रजातियों पर सूक्ष्मता से अध्ययन किया और उसके बाद जीव-जन्तुओं में क्रमविकास के सिद्धांत को प्रतिपादित कर 1858 में इसे दुनिया के सामने रखा। 1859 में क्रमविकास के सिद्धांत पर आधारित चार्ल्स डार्विन की लिखी पुस्तक जीवजाति का उद्भव प्रकाशित हुई जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। इस किताब में डार्विन ने मानवी विकास की प्रजातियों का विस्तार से वर्णन किया था। डार्विन ने बताया कि विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे और जीव-जन्तु पहले एक जैसे ही होते थे, पर संसार में अलग-अलग जगह की भौगौलिक परिस्थितियों और वातावरण के कारण उनकी रचना में धीरे-धीरे परिवर्तन होता गया और इस विकास के फलस्वरूप एक ही जाति के पौधों और एक ही जाति के जीव-जन्तुओं की कई प्रजातियां बनती गई। मनुष्य के पूर्वज भी किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग होकर अलग जगहों पर अलग तरह से रहने लगे और तब उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनका क्रमिक विकास होता गया जिससे धीरे-धीरे उनमें बदलाव होते गए और वे बंदर से मनुष्य बन गए।