मधुमेह में ना करें आंखों की अनदेखी


वाराणसी (काशीवार्ता)। मधुमेह पीड़ितों के आंकड़ों में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। खासकर युवाओं में इसके बढ़ते मामलों के कारण भारत को दुनिया का ‘डायबिटिक कैपिटल’ कहा जा रहा है। खासकर महानगरों में अस्वस्थ जीवनशैली के कारण टाइप-2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़े हैं। डायबिटीज का असर शरीर के कई अंगों पर पड़ता है। खासकर आंख, किडनी व तंत्रिका तंत्र पर मधुमेह का बुरा असर देखने को मिलता है। स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकें, इसके लिए मधुमेह को काबू में रखना जरूरी है।
आंखों पर कैसे होता है असर- मधुमेह के रोगियों में डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा सबसे ज्यादा होता है। आंखों के रेटिना पर होने वाले बुरे असर के कारण व्यक्ति की देखने की क्षमता भी जाती रहती है। लंबे समय से मधुमेह की बीमारी का सामना कर रहे लोगों में ऐसा होने की आशंका ज्यादा होती है। खून में शर्करा का स्तर बेकाबू रहना व उसमें तेजी से उतार-चढ़ाव आने वालों में भी इसकी आशंका ज्यादा होती है। रेटिना की गड़बड़ी के कारण व्यक्ति को दिखाई देना भी बंद हो सकता है। शुरू में मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिखते या उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं होती। असल समस्या तब शुरू होती है, जब असर रेटिना के केंद्र (मेक्युला) पर होने लगता है। इस स्तर पर आकर व्यक्ति को दिखने में परेशानी होने लगती है। धुंधला दिखता है, छवि विकृत दिखती है या नजर अचानक बहुत कमजोर हो जाती है। इस स्तर पर रेटिना को स्थायी क्षति होती है। रेटिना के केंद्र में सूजन आ जाती है। यहीं वह हिस्सा होता है, जहां से हमें दिखाई देता है। इसे चिकित्सकीय भाषा में मेक्युलर एडिमा कहते हैं, जो दिखाई न देने का आम कारण है। इतना ही नहीं, रेटिना की रक्त वाहिनियों को भी नुकसान पहुंचाता है, इससे खून के रिसाव की आशंका बढ़ जाती है, उस वजह से सूजन और हैमरेज की आशंका बढ़ जाती है। शुरू में रक्तस्राव कम और बिखरा हुआ होता है। पर सही समय पर उपचार न कराया जाए तो पूरे रेटिना से खून का स्राव होने लगता है। रेटिना को होने वाले इस नुकसान को ठीक नहीं किया जा सकता। इस मामले में दृष्टि पूरी तरह भी जा सकती है। इसके अलावा मोतियाबिंद, ग्लूकोमा व आंखों का संक्रमण, मधुमेह रोगियों में ज्यादा होने लगता है। समस्या को गंभीर होने से रोकने के लिए समय पर उपचार जरूरी है।
आंखों के लिए ये करना है जरूरी
मधुमेह रोगियाँ के लिए नियमित आंखों की जांच कराना जरूरी है। खासतौर पर रेटिना स्पेशलिस्ट से रेटिना की जांच करानी चाहिए। भले ही आंखों में किसी तरह की समस्या न हो, तो भी यह जांच जरूरी है। चूंकि रेटिना में आने वाली खराबी का शुरूआत में पता नहीं चल पाता। ऐसे में नियमित जांच से समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है। रेटिना की जांच के लिए रेटिना की फ्लोरीसीन एंजियोग्राफी और रेटिना ओसीटी (स्कैनिंग) की जाती है। रेटिना को हुए नुकसान के आधार पर ही उपचार किया जाता है। आधुनिक तरीकों में इन दिनों हैमरेज और सूजन को रोकने के लिए आंखों में इंजेक्शन लगाए जाते हैं, इससे दृष्टि भी बढ़ती है। लेजर ट्रीटमेंट भी प्रभावी है। इसके अलावा रेटिना सर्जरी यानी विट्रेक्टॉमी का सहारा भी लिया जाता है। सर्जरी तभी की जाती है, जब दूसरे उपायों से आराम नहीं मिल रहा हो। हालांकि यह सर्जरी जटिल होती है और उसमें कुछ जोखिम भी होते हैं, पर नई विट्रेक्टॉमी मशीनों और तकनीक की मदद से अब इसके बेहतर परिणाम मिलने लगे हैं।