वाराणसी (काशीवार्ता)। मणि कर्णिका घाट पर चल रहे विवाद को खत्म करने के लिए हालाँकि नगर निगम प्रशासन कोई कसर नही छोड़ रहा है। किंतु फिलहाल उसे सफलता मिलती नही दिख रही है। ऐसे वक्त में पूर्व नगर आयुक्त बाबा हरदेव सिंह की याद बरबस ही आ जाती है। उन्होंने अपने कार्यकांल में बकायदा मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए अग्नि देने का रेट और घाट पर रख कर लकड़ी रखकर बेचने का स्थान भी निर्धारित कर दिया था। ऐसा नही है कि उस वक्त उन्हें विरोध नही झेलना पड़ा। बावजूद इसके उन्होंने यह काम किया। उसी का परिणाम है कि बाबा हरदेव सिंह की चर्चा आज भी नगरवासी बड़े ही उत्साह के साथ करते हैं। बताया जाता है कि वर्ष 1999 में नगर निगम के तत्कालीन नगर आयुक्त हरदेव सिंह को पता चला कि मणिकर्णिका घाट पर नगर निगम के जन्म-मृत्यु कार्यालय में गलत दस्तावेजों के आधार पर सुविधा शुल्क देकर मृत्यु प्रमाण पत्र ले लिया जा रहा है। इस पर उन्होंने एक आदेश कर उपरोक्त कार्यालय को तत्काल बंद करा दिया। जिसका उस समय जनप्रतिनिधियों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उन्होंने किसी की एक न सुनी। बल्कि, एक आदेश जारी कर डोम राजा परिवार के लिए अग्नि देने का रेट तय कर दिया था। उस समय 100 रुपए प्रति शव अग्नि दाह के लिए तय किया गया था। लकड़ी बेचने वालों को यह आदेश था कि वे घाट पर अपनी जरूरत के हिसाब से ही लकड़ी रखकर बेचेंगे। उन्हें अगर ज्यादा लकड़ी की आवश्यकता हो तो वे गंगा में नाव द्वारा राजघाट से मंगवा सकते हैं। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो वह गंगा उस पार बालू की रेत में लकड़ी रखें और जरूरत के हिसाब से लकड़ियाँ मंगवायें।घाट पर वे किसी भी सूरत में अतिक्रमण नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा, अगर अतिक्रमण हुआ तो फिर कार्रवाई करते हुए भारी जुमार्ना वसूला जाएगा। इसके लिए बाकायदा निगम कर्मचारी घाट पर तैनात किए गए थे। इस दौरान चाय-पान के दुकानदारों ने कूड़ेदान रखना शुरू कर दिया था। गंदगी पाए जाने पर उनपर जुमार्ना लगाया जाता था।