दिल में घबड़ाहट व चेहरे पर मुस्कान लेकर हो रही ड्यूटी


(युगल किशोर जालान)
वाराणसी (काशीवार्ता)। ‘कोविड-19’ के इस दौर में रोजाना परिस्थितियां और लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। लगातार मिल रही नकारात्मक खबरों में लोग सिर्फ अपने बारे में सोच रहे, कोरोना संक्रमित मरीजों और उनके परिवार के आर्थिक और मानसिक पीड़ा का शायद ही किसी को अहसास हो रहा हो। इस विषम परिस्थिति में भी दिल में घबड़ाहट और चेहरे पर मुस्कान लेकर अपनी ड्यूटी निभाने वाले सरकारी चिकित्सक, चिकित्साकर्मी और पुलिसकर्मियों पर अंगुली उठाने वालों की भी कमी नहीं है। वाराणसी में 300 के करीब हॉटस्पॉट रेड जोन में है। कहने का तात्पर्य यह है कि पुलिस, पीएसी, होमगार्ड के मिलाकर एक हजार से अधिक जवान हॉटस्पाट इलाकों में ही ड्यूटी कर रहे। पुलिस में भी संक्रमित होने लालों की संख्या इसी तरह रोजाना बढ़ती रही तो पुलिस प्रशासन के समक्ष जवानों की कमी जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी। ऐसे माहौल में वाराणसी के लाइफ कोच अनिल जाजोदिया ने सोलापुर (महाराष्ट्र) के आठ अस्पतालो में ईलाज करा रहे कोरोना संक्रमितो का वेबिनार में उत्साहवर्धन किया। उन्होंने मरीजों को समझाया कि सोच पॉजिटिव रखेंगे तो टेस्ट रिजल्ट शीघ्र ही निगेटिव आ जाएगा। रोटरी क्लब सोलापुर ने वहां के आठ स्थानीय सहित देश के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कोरोना संक्रमितों के लिए रविवार को आॅनलाइन ‘प्रेरणा वार्ता’ आयोजित की थी। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अनिल जाजोदिया थे। जूम ऐप, यू ट्यूब और फेसबुक पर लाइव आयोजित कार्यक्रम को अस्पतालों में बड़े टीवी स्क्रीन पर प्रदर्शित किया गया। अनिल जाजोदिया ने अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमितों को समझाया कि खुद पर भरोसा और हिम्मत बनाये रखना ही सबसे कारगर दवा है। जो खुश रहेगा, उसकी सोच सकारात्मक रहेगी और जल्दी स्वस्थ होकर घर जाएगा। कोरोना रोगियों के शरीर में बन रहे एंटीबॉडी समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वर्तमान मरीज ठीक होने के बाद कोरोना के सशक्त दुश्मन साबित होंगे। मरीजों से कहा कि स्वस्थ होने के बाद दूसरे गंभीर मरीजों के ईलाज के लिए ‘प्लाज्मा’ देकर आपलोग समाज के सबसे बडे दानवीर कहलाओगे। इस अवसर उन्होंने ठीक हो चुके कोरोना मरीजों के अनुभव भी साझा किये। मरीजों को समझाया कि सोच पॉजिटिव होगी और सावधानी बरती जाएगी तो कोरोना रिपोर्ट निगेटिव होने मे अधिक दिन नहीं लगेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक कोरोना से बचाव का ईलाज आम आदमी के लिए उपलब्ध न हो जाए, दुनिया इससे मुक्त ना हो जाए, तबतक हमें इसके साथ जीना पडेगा। ऐसे दौर में अपना स्वाभाविक जीवन जीने और लोगों से मिलने-जुलने में डर नहीं, सावधानी की जरूरत है। कोरोना या किसी भी संकट के समय डर का मार्ग अपनाने से न केवल जीवन जीना दूभर हो जाता है बल्कि मुसीबत भी बढ़ती जाती है। सहज जीवन जीने के लिए हमें डर के स्थान पर सावधानी को अपनाना होगा। हम सबने अपने जीवन में महसूस किया होगा कि कई बार हमसे दूर अन्य शहर में रहने वाला कोई व्यक्ति बिना मिले ही हमें बहुत प्रिय होता है और लगातार मिलने वाला व्यक्ति उतना प्रिय नहीं हो पाता। दरअसल आपसी संबंधों में मधुरता के लिए हाथों का नहीं, दिलों का मिलना जरूरी है। फिजिकल डिस्टेन्सिग के इस दौर में एक दूसरे के प्रति सद्भावना और दिलों के तार जोड़े रखना बहुत जरूरी है।