सड़क पर चलते-फिरते यमदूत हैं ई-रिक्शा


(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी (काशीवार्ता)। कुछ वर्षों पूर्व जब काशी की सड़कों पर ई-रिक्शा का आगमन हुआ तो लोगों ने बड़ी राहत की सांस ली थी। एक तो यह प्रदूषणरहित थे दूसरे आटो के मुकाबले इनकी रफ्तार भी कम थी। परन्तु बाद के दिनों में यह सरकारी नियंत्रण के अभाव में सुविधा कम मुसीबत ज्यादा हो गये। आज हालात यह है कि इनके बगल से भी गुजरने में डर लगता है। ठोस लोहे के ढांचे से बने इन रिक्शों से न सिर्फ कार वाले डरते हैं बल्कि आटो व पैदल रिक्शा वाले भी निश्चित फासला बनाये रखते हैं। यह कब किसको ठोक दें पता नहीं होता। रात को तो यह चलते-फिरते यमदूत हैं। बैटरी की चार्जिंग बचाने के चक्कर में न तो आगे की लाइटें जलाते हैं न टेल लैम्प। फलस्वरुप एकदम नजदीक आने पर यह दिखते हैं। यह अगर बच गये तो आपकी किस्मत है। सरकार ने सीएनजी चलित आटो के चलन के लिए शहर में 5 हजार की संख्या निर्धारित की है, परन्तु ई-रिक्शा लिए संख्या की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। फिलहाल शहर के सभी प्रमुख मार्गों पर यह बेतहाशा धमाचौकड़ी मचाते रहते हैं। नियमत: इनमें पीछे की तरफ सिर्फ चार सवारियां बैठायी जा सकती हैं, परन्तु ये आगे पीछे मिला कर 8 सवारियां धड़ल्ले से बैठा कर घूमते हैं। हालांकि इनके लिए परिवहन विभाग में रजिस्टेÑशन व ड्राइविंग लाइसेंस भी अनिवार्य है, परन्तु हकीकत में बिना नंबर व लाइसेंस के सैकड़ों की तादात में ई-रिक्शे शहर की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। प्रमुख आटो डीलर गिरीश गुप्ता बताते हैं कि इन रिक्शों की बैटरी सहित औसत कीमत डेढ़ लाख रुपये है। इनमें चार बैटरियां लगती हैं, जो लगभग डेढ़ साल चलती हैं। एक बार चार्जिंग में ये रिक्शे 80 से 100 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। बैटरी बदलवाने में 5 से 6 हजार रुपये प्रति बैटरी का खर्च आता है। कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली में ई-रिक्शा की टक्कर से एक नवजात की खौलते तेल में गिरकर मौत के बाद काफी कडेÞ नियम बनाये गये। परन्तु वाराणसी जो प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र होने के साथ ही देश के लाखों पर्यटकों का हब भी है, ई-रिक्शा चालकों की मनमानी सारी हदें पार कर रही हैं।