EC की याचिका पर SC का फैसला- अनुचित और कठोर थी मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी


चुनाव आयोग द्वारा मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ दायर की गई याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि मीडिया की रिपोर्टिंग पर रोक नहीं लगा सकते हैं, अदालत की सुनवाई उतनी ही अहम है जितना कि अदालत का फैसला है.

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही अपने फैसले में ये कहा है कि चुनाव आयोग के खिलाफ जो मद्रास हाईकोर्ट ने टिप्पणी की वो कठोर और अनुचित थीं, जजों को संयम बरतने की जरूरत है. लेकिन आयोग की आपत्ति जिस टिप्पणी पर है, वह किसी आदेश का हिस्सा नहीं है ऐसे में उसे हटाने की जरूरत ही नहीं है. 

अपना फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों का अधिकार है कि अदालत उनके समक्ष सही रहे, ऐसे में मीडिया की भूमिका अहम हो जाती है. अगर हम नई मीडिया को रिपोर्टिंग से रोकेंगे, तो इससे कुछ भला नहीं होने वाला है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टेक्नोलॉजी की मदद से आम लोगों को तुरंत जानकारी दी जा रही है, जिससे लोगों में संवैधानिक लोकाचार के प्रति अच्छी भावना उत्पन्न हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दो संवैधानिक संस्थाओं के बीच अधिकारों का संतुलन बना रहना उतना ही जरूरी है, जितनी मीडिया की स्वतंत्रता जरूरी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुनिया में कई अदालत हैं जो लाइव स्ट्रीमिंग करती हैं, ताकि लोग उनसे जुड़ सकें. किसी सुनवाई के दौरान जब कोई राय दी जाती है, तो वह किसी फैसले को निर्धारित नहीं करती है. बेंच द्वारा कोई विचार रखना इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि वो कोर्ट की सुनवाई की रिपोर्टिंग पर रोक नहीं लगा सकते.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया को अदालती कार्यवाही के बारे में टिप्पणी करने और लिखने का अधिकार है. कोर्ट ने निर्वाचन आयोग की गरिमा, जिम्मेदारी और उसके पालन की सराहना की. साथ ही कहा कि आयोग की शिकायत वैसे तो हाईकोर्ट के रिकॉर्ड पर नहीं है, कोर्ट ने इस नसीहत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की याचिका का निपटारा कर दिया. कोर्ट ने कहा कि जो चीज रिकॉर्ड पर नहीं है, उसे डिलीट या रिमूव करने का कोई मतलब नहीं है.

बता दें कि कोरोना संकट के बीच हाल ही में जब पांच राज्यों के चुनाव हुए तब एक मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है, ऐसे में उनके अधिकारियों पर मर्डर का चार्ज क्यों नहीं लगाना चाहिए.