छाती में पानी भरना है जानलेवा दशा


उम्रदराज लोगों की मृत्यु के मुख्य कारणों में से एक है प्लूरल इफ्यूजन अर्थात फेफड़ों और छाती के मध्य अधिक मात्रा में पानी भरना। आम बोलचाल की भाषा में इसे फेफड़ों में पानी भरना कहते हैं। चेस्ट कैविटी के अंदर फेफड़ों को बाहर की ओर से कवर करने के लिये प्लूरा नामक झिल्ली (मेम्ब्रेन) होती है। इस झिल्ली में हमेशा ही अल्प मात्रा (एक चम्मच) में पानी होता है जिसकी चिकनाहट से फेफड़े सांस लेते समय आसानी से सिकुड़ते और फैलते हैं। जब प्लूरा नामक मेम्ब्रेन में मौजूद यह पानी जरूरत से ज्यादा हो जाता है तो प्लूरल इफ्यूजन की कंडीशन पैदा होती है। यह कंडीशन तब और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है जब फेफड़ों के आसपास जमा फ्लूड (पानी) में सांस लेने वाली नलिका जुड़ जाती है, इससे खांसी में बलगम और पानी आने लगता है। इस कंडीशन को बीपीएफ या ब्रान्को प्ल्यूरल फिश्च्युला कहते हैं।

इसमें एक साइड का फेफड़ा तो नष्ट होता ही है साथ ही दूसरे फेफड़े के नष्ट होने का खतरा भी बन जाता है। टी.बी. और हृदय रोग से पीड़ित उम्रदराज लोगों की यह कॉमन बीमारी है और हमारे देश में प्रतिवर्ष इसके 60 लाख से ज्यादा केस रजिस्टर होते हैं। प्लूरा मेम्ब्रेन में यदि 30 दिन या इससे ज्यादा समयतक पानी जमा रहे तो मरीज की मृत्यु भी सकती है।

क्यों जमा होता ज्यादा पानी?
स्वस्थ व्यक्ति में फेफड़े की ऊपरी सतह से पानी का नियमित रिसाव जारी रहता है, कभी-कभी यह पानी पेट से भी छिद्रों के जरिये छाती के अंदर पहुंचता है। छाती की अंदरूनी दीवार इस रिसाव से जमा हुए अतिरिक्त पानी को सोखकर बैलेंस बनाती है। जब व्यक्ति टी.बी., कन्जेस्टिव हार्ट फेलियर (सबसे कॉमन कारण), लीवर सिरोह्सिस (लीवर का काम न करना), पुलमोनरी इम्बोलिज्म (फेफड़ों की नसों में ब्लड क्लॉट), ओपन हार्ट सर्जरी के कॉम्प्लीकेशन, निमोनिया, गम्भीर किडनी डिसीस और लूपस तथा रह्यूमेटाइड आर्थराइटिस इत्यादि बीमारियों में से किसी से पीड़ित होता है तो इस अतिरिक्त पानी को सोखने की प्रक्रिया बाधित होती है और छाती में जरूरत से ज्यादा पानी जमा होने से इरीटेशन के साथ सूजन और संक्रमण के चांस बढ़ जाते हैं। यदि समय पर इलाज न हो तो संक्रमण से मृत्यु भी हो सकती है। टी.बी. के कारण प्लूरा मेम्ब्रेन में पीले रंग का पानी जमा होता है जो समय बीतने पर पस में परिवर्तित होकर जीवन के लिये खतरा बन जाता है।

प्लूरल इफ्यूजन के प्रकार
कारणों के अनुसार प्लूरल इफ्यूजन के ये प्रकार हैं-
ट्रांसयूडेटिव प्लूरल इफ्यूजन: धमनियों में ज्यादा दबाब बढ़ने (ब्लड प्रेशर) और ब्लड में प्रोटीन काउंट कम होने से द्रव्य (फ्लूड) प्लूरल स्पेस में लीक होने लगता है। कन्जस्टिव हार्ट फेलियर में अक्सर यही कंडीशन बनती है।
एक्सूडेटिव इफ्यूजन: ब्लड वेसल्स (नसें) या लिम्फ ब्लॉक होने से, सूजन आने से, ट्यूमर से या फेफड़ों में जख्म होने से यह कंडीशन बनती है। इन सभी वजहों से जब प्लूरल इफ्यूजन होता है तो इससे पुलमोनरी इम्बोलिज्म, निमोनियां और फंगल इंफेक्शन हो जाता है।
अन्कॉम्पलीकेटेड और कॉम्प्लीकेटेड प्लूरल इफ्यूजन: छाती में जमा पानी में संक्रमण और सूजन न होना अन्कॉम्प्लीकेटेड प्लूरल इफ्यूजन कहलाता है। इसके विपरीत छाती में जमा पानी में संक्रमण और सूजन होने से कॉम्प्लीकेटेड प्लूरल इफ्यूजन की कंडीशन पैदा होती है। इस स्थिति में तुरन्त इलाज और चेस्ट ड्रेनेज की जरूरत होती है।

लक्षण और संकेत
छाती में दर्द, सूखी खांसी, बुखार, लेटने पर सांस लेने में परेशानी (ऑर्थोपोनिया), सांस फूलना, गहरी सांस लेने में दिक्कत, दैनिक कार्य करने में कठिनाई और परसिस्टेंट हिक्कप (लगातार और अनियन्त्रित हिचकी) इत्यादि इसके प्रमुख लक्षण हैं। यदि इनमें से कोई भी लक्षण नजर आयें मरीज को तुरन्त अस्पताल ले जायें।
प्लूरल इफ्यूजन कन्फर्म करना
इसे कन्फर्म करने के लिये डाक्टर सबसे पहले स्टेथोस्कोप के जरिये फेफड़ों की आवाज सुनकर प्लूरल इफ्यूजन का अनुमान लगाते हैं और संदेह होने पर चेस्ट एक्स-रे के द्वारा इसे कन्फर्म करते हैं। इसके अलावा सीटी स्कैन, चेस्ट अल्ट्रासाउंड, प्लूरल फ्लूड एनालिसिस, ब्रोन्कोस्कॉपी और प्लूरल बॉयोप्सी भी की जाती है।
प्लूरल फ्लूड एनालिसिस के तहत डाक्टर प्लूरल मेम्ब्रेन (झिल्ली) के अंदर से फ्लूड निकालने के लिये चेस्ट (वक्ष) कैविटी में एक सीरेन्ज इन्सर्ट करके फ्लूड निकालते हैं। यह प्रक्रिया थोरासेन्टिसिस कहलाती है। इसी प्रक्रिया से चेस्ट कैविटी में जमा अतिरिक्त पानी भी निकालते हैं। फ्लूड की जांच से बीमारी की असल वजह का पता चलता है।
लंग्स (फेफड़ों) कैंसर का शक दूर करने के लिये प्लूरल बॉयोप्सी की जरूरत होती है। इसके लिये फ्लूड के स्थान पर प्लूरा टिश्यू (ऊतक) सैम्पल लेने के लिये चेस्ट कैविटी में एक छोटी सी नीडल इंसर्ट करते हैं।
प्लूरल इफ्यूजन कन्फर्म होने पर उसके टाइप का पता लगाने के लिये थोरोस्कोपी की जाती है। यह सर्जिकल प्रोसीजर है और इसमें चेस्ट कैविटी में फाइबर ऑप्टिक कैमरा इंसर्ट करके अंदरूनी भाग को देखते हैं। इस प्रक्रिया में जनरल एनेस्थीसिया देकर चेस्ट एरिया में छोटे-छोटे (चार से छह इंच) चीरे लगाते हैं और इन्हीं से कैमरा और अन्य सर्जिकल टूल्स को चेस्ट कैविटी में इंसर्ट करते हैं।

ट्रीटमेंट-इलाज
प्लूरल इफ्यूजन का इलाज उसके कारण और मरीज की कंडीशन पर निर्भर है। आजकल इसके इलाज के लिये इन तरीकों का प्रयोग होता है-
ड्रेनिंग फ्लूड: चेस्ट कैविटी में जमा फ्लूड को सीरेन्ज या ट्यूब की मदद से बाहर निकालते हैं। इस प्रोसीजर में मरीज को लोकल एनीस्थीसिया दिया जाता है जिससे यह इलाज आसान हो जाता है। चेस्ट कैविटी से फ्लूड निकलने के बाद जब मरीज में लोकल एनीस्थीसिया का असर समाप्त हो जाता है तो उसे दर्द महसूस होता है, इस दर्द को मैनेज करने के लिये डाक्टर दर्द निवारक दवाओं का सहारा लेते हैं। अगर एक बार में फ्लूड पूरी तरह से नहीं निकल पाता या दोबारा बन जाता है तो इसी प्रक्रिया को फिर से प्रयोग किया जा सकता है। यदि चेस्ट कैविटी में फ्लूड जमा होने का कारण कैंसर है तो इसे ड्रेन करने के लिये अन्य क्रियाओं का सहारा लेते हैं। यदि चेस्ट में जमा पानी पस (मवाद) बन गया है तो सीरेन्ज से इसे निकलवाने का प्रयास न करें, ऐसी अवस्था में थोरेसिक सर्जन से ट्यूब डलवायें, इससे ही फेफड़ा बच सकता है। यदि चेस्ट में जमा पानी की मात्रा 400 मिलीलीटर है तो इसे सीरेन्ज से निकलवाने की बजाय ट्यूब से निकलवाने को प्राथमिकता दें। पानी निकलवाते समय अल्ट्रासाउंड मशीन होनी आवश्यक है इसी से यह पता चलता है कि अब कितना पानी शेष रह गया है।
प्लूरोडेसिस: ट्रीटमेंट के इस मैथड का प्रयोग उस कंडीशन में होता है जब फेफड़ों और चेस्ट कैविटी (प्लूरा) के मध्य सूजन होती है और इसमें बार-बार पानी जमा हो जाता है। ऐसी कंडीशन में डाक्टर चेस्ट कैविटी में जमा अतिरिक्त पानी निकालने के बाद इस भाग में एक दवा (ड्रग) इंजेक्ट करते हैं। आमतौर पर यह दवा पाउडर जैसा एक मिश्रण होती है, इसकी वजह से प्लूरा की दोनों परतें आपस में चिपक जातीं हैं और भविष्य में अतिरिक्त फ्लूड (पानी) जमा होने की सम्भावना घट जाती है।
सर्जरी: बहुत गम्भीर केसों में डाक्टर सर्जरी के द्वारा चेस्ट कैविटी में स्टेंट और एक छोटी ट्यूब इंसर्ट कर देते हैं जिससे फ्लूड चेस्ट से एब्डॉमिन में रिडायरेक्ट हो जाता है जहां से इसे शरीर से बाहर निकाल देते हैं। ट्रीटमेंट के इस विकल्प का प्रयोग तभी करते हैं जब कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। इसके अलावा प्लूरेक्टॉमी नामक सर्जिकल प्रोसीजर से प्लूरल लाइनिंग को रिमूव करके भी इसका इलाज किया जाता है। यदि चेस्ट में ट्यूब डालने या स्टेंट लगाने के बाद भी फेफड़ा पूरी तरह से फूल नहीं रहा है तो जख्म से खराब हुए भाग को काटकर निकालना भी पड़ सकता है, ऐसे में थोरेसिक या चेस्ट सर्जन से ही इस सर्जरी को करायें।

जोखिम कैसी-कितनी?
अधिकतर मामलों में प्लूरल इफ्यूजन को दवाइयों और सपोर्टिव केयर से मैनेज करते हैं इससे मरीज कुछ दिनों या सप्ताह में स्वस्थ हो जाते हैं। जब इलाज के लिये इनवेसिव (शल्य क्रिया) तरीकों को अपनाया जाता है तो दर्द, असहजता के अलावा कुछ कॉम्प्लीकेशन भी आते हैं हालांकि ये धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं। कुछ केसों में पलमोनरी एडिमा, फेफड़ों के किसी एक हिस्से का काम न करना, संक्रमण और ब्लीडिंग जैसे रेयर लेकिन सीरियस कॉम्प्लीकेशन हो जाते हैं। ये मरीज की कंडीशन, कारण और इलाज पर निर्भर हैं।

प्लूरल इफ्यूजन से बचाव
इससे बचाव का कोई पक्का उपाय नहीं है लेकिन शराब, सिगरेट छोड़ने से इसके रिस्क को कम किया जा सकता है। यदि निमोनिया हो गया है तो जल्द से जल्द इसका इलाज करायें ताकि प्लूरल इफ्यूजन से बचा जा सके। यदि हार्ट 40 प्रतिशत से कम क्षमता पर कार्य कर रहा है तो इसके होने के चांस बढ़ जाते हैं ऐसे में हार्ट प्रॉब्लम का तुरन्त इलाज जरूरी हो जाता है।

प्लूरल इफ्यूजन और कैंसर
लंग्स कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, ओविरयन कैंसर, ल्यूकेमिया, मेलानोमा, सर्विकल कैंसर और यूट्राइन कैंसर के कारण भी प्लूरल इफ्यूजन हो जाता है। ऐसी कंडीशन में सांस लेने में तकलीफ, खांसी, चेस्ट पेन और वजन गिरने जैसे लक्षण उभरते हैं। कैंसर से होने वाले प्लूरल इफ्यूजन को मैलिगनेन्ट प्लूरल इफ्यूजन कहते हैं। जब कैंसर सेल्स प्लूरा में फैलते हैं तो प्लूरा में जमा नार्मल फ्लूड का प्रवाह कैंसर सेल्स द्वारा ब्लॉक होने से चेस्ट में पानी भरने लगता है। इस तरह का प्लूरल इफ्यूजन मेटास्टेटिक कैंसर का परिणाम है। इसे ठीक करने के लिये प्लूरोडेसिस ट्रीटमेंट होता है। इसमें संक्रमण का संदेह होने पर एंटीबॉयोटिक्स के साथ स्टीरॉइड्स और एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवायें दी जाती हैं। इस विधि में प्लूरल इफ्यूजन के इलाज के साथ इसकी वजह बने कैंसर का इलाज भी होता है। जब मरीज कैंसर ट्रीटमेंट से गुजरता है तो उसका इम्यून सिस्टम कमजोर होने से उसके संक्रमित होने के चांस बढ़ जाते हैं जिससे कुछ और कॉम्प्लीकेशन्स पैदा होते हैं। कई केसों में यह भी देखा गया है कि कैंसर ट्रीटमेंट के लिये की गयी रेडियेशन थेरेपी और कीमोथेरेपी से भी प्लूरल इफ्यूजन की स्थिति बनी है।

नजरिया
प्लूरल इफ्यूजन लाइफ थ्रेटनिंग कंडीशन है, इसमें तुरन्त अस्पताल में भर्ती होना चाहिये। ज्यादा गम्भीर मामलों में सर्जरी की जा सकती है, इसलिये यदि डाक्टर सर्जरी के लिये कहे तो घबरानें की जरूरत नहीं। इसके इलाज के लिये ऐसे अस्पताल का चयन करें जहां पर अच्छा ऑपरेशन थियेटर और क्रिटिकल केयर यूनिट तथा ब्लड बैंक की सुविधा हो। इसकी सर्जरी में सर्जन के साथ एनीस्थीसिया देने वाला डाक्टर अनुभवी होना चाहिये। यदि ऑपरेशन की जरूरत है तो हमेशा लंग्स का ऑपरेशन करने वाले डाक्टर का ही चयन करें, हार्ट सर्जन से इस तरह की सर्जरी कराने से बचें। इलाज में देरी से फेफड़े सिकुड़ना (न्यूमोथोरॉक्स), वातस्फीत (खाली जगह में पस भरना), सेप्सिस और फेफड़ों में जख्म तक हो सकते हैं, इसलिये जल्द से जल्द इलाज करायें।

इलाज के बाद रिकवरी में लगने वाला समय इसके कारण, आकार, गम्भीरता तथा मरीज की शारीरिक हैल्थ पर निर्भर होता है। इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने के पहले सप्ताह में अनेक मरीजों को बहुत थकान महसूस होती है, इससे घबराने की जरूरत नहीं है। इलाज के दौरान की गयी सर्जरी के जख्म भरने में भी दो से चार सप्ताह का समय लग जाता है, ऐसे में अस्पताल से छुट्टी के बाद भी मरीज को केयर की जरूरत होती है इसमें लापरवाही न करें। जब तक मरीज पूरी तरह से ठीक न हो जाये उसे प्रति सप्ताह डाक्टर के पास फॉलोअप के लिये ले जायें जिससे रिकवरी की गति और कॉम्प्लीकेशन्स के बारे में समय पर पता चल जाये और जरूरत होने पर इलाज में तब्दीली की जा सके।