फ़िल्म-टीवी इंडस्ट्री के लोग कैसे डिप्रेशन में चले जाते हैं


कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए मार्च से लागू हुए लॉकडाउन की वजह से दूसरे उद्योगों के साथ ही देश की इंटरटेनमेंट इंटस्ट्री भी ठप पड़ गई.

लॉकडाउन और महामारी की वजह से फ़िल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री के कई कलाकारों समेत तकनीशियन, कैमरामैन, लाइटमैन, स्पॉट ब्वॉय, मेकअप आर्टिस्ट, जूनियर आर्टिस्ट से लेकर बड़े प्रोड्यूसर और प्रोडक्शन हाउस प्रभावित हुए हैं. कई कलाकार आर्थिक तंगी से गुज़र रहे हैं.

कुछ कलाकार ना चाहते हुए भी लोगों से पैसे मांगने पर मजबूर हुए हैं. वहीं कुछ इंडस्ट्री छोड़ अब अपने घरों को लौट चुके हैं.

पांच महीनो में नौ कलाकारों ने दुनिया को कहा अलविदा

पिछले पांच महीनों में मनोरंजन जगत की कई हस्तियों ने दुनिया को अलविदा कहा है.

जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत हुई तो मीडिया में चर्चा शुरू हुई कि कहीं वो ड्रिप्रेशन में तो नहीं थे.

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की मौत को लेकर मीडिया में लगातार सवाल खड़े किए जाते रहे हैं कि उनकी मौत आत्महत्या है या कोई साजिश. इस पर फ़िलहाल सीबीआई की जांच जारी है.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को अगर छोड़ भी दें तो क्राइम पेट्रोल, लाल इश्क और मेरी दुर्गा जैसे सीरियल्स में काम कर चुकीं अभि‌नेत्री प्रेक्षा मेहता, टीवी सीरियल ‘आदत से मजबूर’ के अभिनेता मनमीत ग्रेवाल, चेन्नई में तमिल एक्टर श्रीधर और उनकी बहन जया कल्याणी ने भी आत्महत्या कर ली. जया कल्याणी भी पेशे से कलाकार थीं.

इसके अलावा कन्नड़ टीवी इंडस्ट्री के एक्टर सुशील गोवड़ा, भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की एक्ट्रेस अनुपमा पाठक और टीवी के पॉपुलर एक्टर समीर शर्मा जैसे कलाकारों ने भी खुदकुशी कर दुनिया को अलविदा कह दिया.

‘कैमरे और स्क्रिप्ट के बिना डिप्रेशन’

जोधा अकबर, महाराणा प्रताप, देवों के देव महादेव जैसे कई धारावाहिकों में काम कर चुके अभिनेता जावेद पठान बीबीसी हिंदी से खास बातचीत में बताते हैं, “लॉकडाउन से पहले मैं अपने शो विघ्नहर्ता गणेश के लिए काम कर रहा था. साथ ही एक फ़िल्म जिसकी शूटिंग लखनऊ में होने वाली थी और एक वेब सिरीज़ भी कर रहा था, लेकिन लॉकडाउन के चलते ये सारा काम बीच में ही रुक गया.”

“काम रुका है लेकिन रोज़ के जो खर्चे होते हैं वो तो पहले जैसे ही होते जा रहे हैं. अब तो ये डर सताने लगा है कि कब तक ऐसे ही रुका रहेगा. मैं इतना जनता हूँ कि कलाकार हमेशा संवेदनशील होते हैं. जब हमारे सामने कैमरा नहीं होता, चेहरे पर मेकअप नहीं होता, हाथों में स्क्रिप्ट नहीं होती तब हम एक अलग लेवल के डिप्रेशन में चले जाते हैं.”

वो कहते हैं, “मेरे साथ भी ऐसा होता है. ऐसे में मानसिक संतुलन बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि आपको पता ही नहीं होता कि आपका करियर किस दिशा में जा रहा है. आप कुछ समझ ही नहीं पाते.”

“प्रोड्यूसर को भी नहीं मालूम होता कि शूटिंग कब शुरू होगी. प्रोडक्शन हाउस बंद हैं. हम घर से बहार निकल नहीं पा रहे. हम जिम नहीं जाते, कितनी देर टीवी देखेंगे, वर्कआउट करेंगे या फिर कितनी देर तक योग करेंगे. करने को कोई काम है ही नहीं. ऐसे में एक वक़्त ऐसा लगने लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी ज़िंदगी ख़त्म हो रही है. जो काम मिल भी रहे हैं, उसमें भी अब पैसे कट कर मिल रहे हैं.”


‘बड़े एक्टर होते तो शूटिंग नहीं करते’

जावेद इंडस्ट्री के उन चंद कलाकरों में से हैं जिनके सीरियल की शूटिंग हाल में फिर से शुरू हुई है. वो कहते हैं, “एक कलाकार के तौर पर मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास काम था. इसलिए जब महाराष्ट्र सरकार ने काम करने की मंजूरी दी तो मुझे बुलाया गया. सच कहूं तो सेट पर लौट कर बेहद खुशी हुई लेकिन फिर डर का माहौल भी दिखा.”

“सेट पर जाना हमारी मजबूरी है क्योंकि काम तो करना ही है लेकिन अब सेट पर डर में काम करते हैं. पहले की तरह सेट पर खुशनुमा माहौल नहीं दिखता. अब हर इंसान घबराया हुआ है, कोई किसी से हाथ नहीं मिलाता, सबसे दूर-दूर रहते हैं.”

वो कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि बड़े एक्टर अभी शूटिंग करेंगे.

वो कहते हैं, “अगर मैं सलमान खान होता मैं भी शूट नहीं करता लेकिन मुझे अपने घर का किराया देना है, परिवार को भी देखना है, अपने आपको मेंटेन भी रखना है. अगर आप अपना ख़याल नहीं रखेंगे तो काम नहीं मिलेगा. इस चक्कर में हमारे खर्चे भी थोड़े ज़्यादा होते हैं. अब स्थिति ऐसी है कि चाहे कोरोना से मरो या फिर बिना काम के मरो. अच्छा तो यही है कि काम करो बाकि ऊपरवाले पर छोड़ दो. एक चीज़ अच्छी है कि हम एक्टर्स का मेडिकल इंश्योरेंस शो के प्रोड्यूसर ने करवा रखा है और साथ में सेट पर देखभाल के लिए डॉक्टर भी मौजूद रहते हैं.”

‘अनिश्चितता के साथ ज़िंदगी जी रहा हूँ’

फ़िल्म और टीवी इंडस्ट्री में 25 साल से काम कर रहे अभिनेता और निर्देशक हर्ष छाया ने बीबीसी हिंदी से कहा, “इतने सालों से काम करता आया हूँ इसलिए मुझे इस बात का अंदाज़ा है कि इस इंडस्ट्र्री में काम की गारंटी नहीं होती. आज मेरे पास काम है, फिर कल नहीं होगा. मैं उसी तरह से जी रहा हूं तो मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं है. इन 25 सालों में कई बार ऐसे वक्त से गुज़र चुका हूं जहां छह-छह महीने मेरे पास काम नहीं था. मैं इंडस्ट्री की सच्चाई जानता हूँ.”

“जो कलाकार बड़े सीरियल में कई सालों से काम करते आ रहे हैं वो सोचते हैं कि उन्हें सुरक्षा मिल गई है लेकिन मैं काम की अनिश्चितता के बारे में जनता हूँ. मैं इस अनिश्चितता के साथ ज़िंदगी जीता रहा हूँ. इसलिए मैं अपने खर्चे भी उसी तरह से प्लान करता हूँ. मेरी कुछ शूटिंग बीच में ही रुक गई है. अब बस इंतज़ार है कब काम शुरू हो. सच्चाई तो ये है कि अगर दो और महीने शूटिंग नहीं शुरू हुई तो हमारे घर के पीछे जो गुरुद्वारा है वहां लंगर में बैठना पड़ेगा और हम चले भी जाएंगे.”

हर्ष कहते हैं कि ” आपको मेरी बात मज़ाक लग रही होगी लेकिन अगर ऐसा हाल रहा तो आगे चलकर ये दिन ज़रूर आ जाएगा जब हमें खाना खाने के लिए लंगर जाना पड़ेगा. इसलिए बेझिझक बोलने में कोई नुकसान नहीं है क्योंकि मैं लंगर में जाकर खाना खाने में शर्म महसूस नहीं करता. अगर आप इसे शर्म की तरह देखेंगे तो आपको दिक्कत होगी.”

“ज़रूरत पड़ने पर किसी से पैसे मांगने पड़े तो मांग लूंगा. मैंने देखा कुछ कलाकारों ने फेसबुक पर या सोशल मीडिया पर लोगों से मदद की गुहार लगाई थी और लोगों ने की भी. लेकिन लोग हर महीने तो एक लाख नहीं डालेंगे ना. हम जो एक्टिंग करते हैं वह एक अलग दुनिया है और जो हमारी असल ज़िंदगी है जिसे हम हर रोज़ जीते हैं, वह एकदम अलग दुनिया है. इस बात को मैं जनता हूँ इसीलिए थोड़ी कम परेशानी हो रही है.”

फ़िल्म और टीवी इंडस्ट्री के वर्कर्स के बदतर हालात

लॉकडाउन का असर सिर्फ़ कलाकारों की ज़िंदगी पर नहीं पड़ा है बल्कि इंडस्ट्री में काम करने वाले कैमरामैन, लाइटमैन, मेकअप आर्टिस्ट, स्पॉट बॉय और जूनियर आर्टिस्ट की ज़िंदगी में तो गरीबी और लाचारी की ऐसी मार पड़ी है कि उनका परिवार दाने-दाने का मोहताज हो चुका हैं.

आल इंडिया सिने वर्कर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश श्यामलाल गुप्ता ने बीबीसी को बताया, “चार महीने बाद सीरियल की शूटिंग शुरू हुई है और मैं सेट पर जा रहा हूँ. लॉकडाउन से पहले के तीन महीने का वेतन कई लोगों को नहीं मिला था. फिर लॉकडाउन लगा तो तीन-चार महीने ऐसे भी काम नहीं रहा. अब जब काम शुरू हुआ है तो सेट पर बहुत कम लोगों को ही काम मिल रहा है. पहले फ़िल्म्स, सीरियल, ऐड, वेब सीरिज़, फोटोशूट, शार्ट फ़िल्म्स का बहुत सारा काम हुआ करता था लेकिन अब सब बंद है. अभी भी केवल सीरियल और ऐड फ़िल्म्स की शूटिंग शुरू हुई है बाकि काम बंद है.”

वो कहते हैं, “टीवी सीरियल्स में अब तीस फ़ीसदी के आसपास लोग काम कर रहे हैं. पहले बड़े-बड़े कैमरे पर 4 से 5 लोग काम करते थे लेकिन अब सिर्फ़ दो लोग हैं. लाइटमैन की बात करें तो एक लाइट पर तीन से चार लोग काम करते थे लेकिन अब सिर्फ एक आदमी होता है.”

“लॉकडाउन से पहले नियम से वर्कर्स को 90 दिन के बाद पूरी पेमेंट मिलती थी. कुछ भी काटा नहीं जाता था. लेकिन अब 30 फ़ीसद पेमेंट काट कर दिया जा रहा है.”

फ़िल्म इंडस्ट्री छोड़कर चौकीदार बनने पर मजबूर

श्यामलाल बताते हैं कि इंडस्ट्री में काम करने वाले 80 फ़ीसद लोग महाराष्ट्र के बाहर से आते हैं. ये लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पंजाब और दिल्ली जैसे कई राज्यों से यहाँ आते हैं.

वो कहते हैं, “ये लोग वापस अपने गाँव चले गए हैं और अब सिर्फ़ 30 फ़ीसद लोग ही काम करने के लिए बचे हैं. गांव लौट गए कई लोगों का कहना है कि अब वह कभी वापस नहीं आएंगे क्योंकि उनको पता है कि काम करना बहुत मुश्किल होगा और अगर चीज़ें ठीक हो भी गई तो इसमें समय लगेगा. इसलिए कई लोगों ने इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है. जो लोग अभी भी यहां टिके हुए हैं उनके इतने बुरे हालात हैं कि वो इंडस्ट्री छोड़कर चौकीदारी करने पर या फिर कोई दूसरा काम करने पर मजबूर हो गए हैं ताकि वो अपने परिवार का गुज़ारा चला सकें.”

वो कहते हैं कि एक्टर्स के मानसिक तनाव में होने और ख़ुदकुशी करने की ख़बरें तो दुनिया तक पुहँच जाती हैं लेकिन इन वर्कर्स की ख़बरें बाहर नहीं आ पातीं जबकि इनके हालात भी बदतर हैं.

श्यामलाल कहते हैं, “एक्टर्स के लिए पर्सनल वैनिटी वैन होती है, सेट पर उनका ध्यान रखा जाता है और मेडिकल बीमा भी दिया जाता है. लेकिन उनके मुक़ाबले जो वर्कर्स होते हैं, उनमें सिर्फ़ 10 फ़ीसद लोगों का ही बीमा होता है. अभी स्थिति ये है कि जो वर्कर्स काम के लिए आ रहे हैं उनसे कहा जाता है कि काम करने के लिए वो अपने फिट होने का मेडिकल सर्टिफिकेट लेकर आएं. सच कहें तो इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की जान कह जाने वाले ये वर्कर राम भरोसे काम कर रहे हैं.”

क्या काम न मिलना ही हो सकती है डिप्रेशन की वजह?

कलाकारों के डिप्रेशन में जाने की वजहों पर बात करते हुए मनोचिकित्सक और साइकोथेरेपिस्ट डॉक्टर श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “कलाकारों के डिप्रेशन में जाने और खुदकुशी करने की कई वजहें हो सकती हैं लेकिन इस बात को नाकारा नहीं जा सकता कि कोरोना काल और लॉकडाउन में कई कलाकार शूटिंग पर नहीं जा पा रहे हैं, उनके पास काम नहीं है. पहले अच्छे पैसे मिलते थे वो नहीं आ रहे हैं.”

“इस स्थिति में उनके लिए ये समझना बहुत मुश्किल हो रहा है कि उनकी पहचान क्या है? बहुत से लोगों के पास अभी काम नहीं है और वो इस कारण खालीपन का शिकार हो रहे हैं. अब वो वित्तीय दबाव भी महसूस करने लगे हैं. कलाकारों को अब पैसे और स्टेटस को लेकर बैचनी होने लगी है. उन्हें कई इमोशनल चीज़ों से भी गुज़रना पड़ रहा है. ज़्यादातर मामलों में काम नहीं रहने से डिप्रेशन होता है.”

डॉक्टर श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “डिप्रेशन और उदासी में फर्क़ होता है. डिप्रेशन के बहुत सारे अलग-अलग संकेत होते हैं जैसे नींद न आना, खाना अच्छा नहीं लगना. ऐसा लगने लगता है कि हम अपने आसपास के दोस्तों से या किसी से बात ना करें. कोरोना काल में लोगों का मेलजोल बंद है, सामाजिक संपर्क टूट चुका है. कहीं ना कहीं सोशल लाइफ ख़त्म हो गई है और अब सब कुछ सोशल मीडिया पर निर्भर है और वहां भी कई बार उन्हें कई तरह की बातें झेलनी पड़ती हैं.”

“पहले नियमित तौर पर वो अपनी शूटिंग करते थे जो वो अब कर नहीं पा रहे. इसकी वजह से वो खुद को नॉर्मल इंसान जैसा महसूस करते थे जो अब नहीं कर पा रहे. अगर आप एक्टर्स के सोशल मीडिया पन्ने के देखेंगे तो आप पाएंगे कि वो भी वही डाल रहे हैं जो आम लोग पोस्ट कर रहे हैं जैसे खाना बनाने, योगा करने या एक्सरसाइज करने वाली तस्वीरें. इससे वो भी आम लोगों की तरह नज़र आ रहे हैं ना कि सुपरस्टार की तरह. इसी वजह से कई एक्टर्स को बहुत हाई और लो फीलिंग आ रही है. दूसरा डर जो एक्टर्स को है वो ये है कि अगर शूटिंग पर गए तो कहीं हमारी वजह से परिवार के लिए संक्रमण का ख़तरा न पैदा हो जाए.”

सच्चाई वो नहीं, जो दिखती है

डॉक्टर श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “लोगों में यह आम धारणा है कि कलाकारों के पास कई सुविधाएं हैं, उनके कई फैन्स हैं, तो उन्हें डिप्रेशन कैसे हो सकता है? ये सोच ग़लत है कि एक्टर्स को डिप्रेशन नहीं होता. उन्हें भी आम लोगों की तरह डिप्रेशन हो सकता है. बस फ़र्क इतना है कि वो हमें नज़र नहीं आता. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि बहुत कम एक्टर्स इस बारे में बात करते हैं. हमारे देश में डिप्रेशन को मेन्टल हेल्थ या दिमागी बीमारी कह दिया जाता है इसलिए लोग इस पर खुलकर बोलने से बचते हैं. हालांकि हाल में कुछ एक्टर्स इस पर बात करने लगे हैं.”

डॉक्टर श्रद्धा ने किसी का नाम नहीं बताया लेकिन कहा कि लॉकडाउन के दौरान कई एक्टर्स उनके साथ अपनी परेशानी साझा कर चुके हैं.

उनका कहना है कि एक्टर्स की जो छवि परदे पर होती है या सोशल मीडिया पर दिखती है, असल में उनकी जिंदगी इतनी रंगीन नहीं होती.

खालीपान, अकेलेपन से होती है एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन

डॉक्टर श्रद्धा कहती हैं कि डिप्रेशन से बचा जा सकता है लेकिन इसके लिए सबसे ज़रूरी है वक्त पर इसकी पहचान कर लेना.

वो कहती हैं कि इसके कुछ संकेत होते हैं जिनका ध्यान रखना ज़रूरी है. वो बताती हैं “अगर आप रात रात भर जाग रहे हैं, सोने की कोशिश कर रहे हैं पर आपको नींद नहीं आ रही. कभी-कभार डिप्रेशन में इंसान ज़रूरत से ज्यादा सोता है. किसी को बिल्कुल भूख नहीं लगती तो किसी को बहुत ज़्यादा भूख लगती है. एंग्ज़ाइटी की बात करें तो बहुत घबराहट और बेचैनी होना और बहुत थका महसूस होना हो सकता है. आजकल जो माहौल है जिसमें खालीपन अधिक है और काम कमस इसकी वजह से भी एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन हो सकता है. इंसान आने वाले कल के बारे में सोचकर परेशान होता है.”

वो कहती हैं, “डिप्रेशन से निकलने के लिए व्यक्ति को सजग होकर सोचने की जरूरत है. खुद को व्यस्त रखने की ज़रूरत है. कोरोना के कारण कई एक्टर्स अपनी फैमिली और दोस्तों से मुलाक़ात नहीं कर पा रहे हैं. ज़रूरी है कि वो अपने परिवार के साथ संपर्क में रहें. रोज़ कम से कम एक फ़ोन कर लें या वीडियो कॉल कर ले. अगर आपके आसपास ऐसे लोग नहीं हैं जिनसे आप बात कर सकें तो डॉक्टर्स से मिलें और उनसे बात करें.”

सिने जगत से जुड़े लोगों के लिए मदद की पहल

लॉकडाउन के दौरान मनोरंजन जगत से जुड़े कई कलाकारों के आत्महत्या करने की ख़बरें आईं तो कई के गरीबी की कगार तक पहुंचने की ख़बरें भी सामने आईं.

इस बारे में सिने और टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिशन (CINTAA) के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “एक्टर के चेहरे पर मेकअप की परतों के मुक़ाबले उस पर दबाव की परतें अधिक होती हैं. सबकी नज़रों में बने रहने को लेकर सोशल मीडिया अक्सर कलाकारों के मन में तनाव पैदा करता है. इंडस्ट्री सिर्फ़ शोहरत और आय का ज़रिया नहीं है. लॉकडाउन ने यकीनन लोगों की ज़िंदगी में काफ़ी तनाव पैदा कर दिया था और अनिश्चित भविष्य के डर में कई लोगों को डिप्रेशन में जाने पर मजबूर कर दिया था.”

वो कहते हैं, “हम इंडस्ट्री से जुड़े सभी लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. महामारी के दौरान ही नहीं, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के काम आने की कोशिश करते हैं. CINTAA ने ‘ज़िंदगी हेल्पलाईन’ की संस्थापक अनुषा श्रीनिवासन के साथ हाथ मिलाया है जो काउंसिलिंग कर लोगों की मदद करता है. CINTAA की कमिटी में भी कई साइकियाट्रिस्ट, साइकोथेरेपिस्ट, साइकोएनालिस्ट और साइकोलॉजिस्ट शामिल हैं. मानसिक तनाव और अवसाद के मुद्दे को लेकर हम काफी गंभीर हैं और इसे लेकर लोगों की सहायता करना चाहते हैं.”