वाराणसी(काशीवार्ता)। कबीर ने कहा था- ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ,पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर’। जी 20 की तैयारी में जुटे जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर 20 देशों के प्रतिनिधियों को शहर को हरा भरा और स्वच्छ दिखाने का जो प्रयास किया जा रहा है वह इस दोहे को चरितार्थ कर रहा है। शहर में जगह जगह जो बड़े गमले और पौधे लगाए गए हैं,उनसे न तो छाया मिलनी है न फल, लेकिन फिर भी पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। मेहमानों को शहर हराभरा जो दिखाना है, लेकिन इस हरियाली प्रयास की जमीनी हकीकत कुछ और है। पानी के अभाव में सड़को पर रखे बड़े बड़े गमलों के पौधे मुरझाकर दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। कभी शहर के डिवाइडर हरियाली के पर्याय थे। इनमें बीच में मिट्टी डाल कर पेड़ पौधे लगाए गए थे। नगर निगम का टैंकर सिंचाई करता था। पौधे काफी बड़े हो गए थे। ये सुंदरता के साथ साथ छाया भी प्रदान करते थे। फिर पता नहीं क्या हुआ कि एक दशक पूर्व सारे डिवाइडर तोड़ दिए गए। जो नए डिवाइडर बने उनमें पेड़ पौधों के लिए कोई जगह नहीं बची थी। अब जी-20 में फिर से डिवाइडरों को हरा भरा करने की कवायद हो रही है। शहर के चौराहों, सड़कों, डिवाइडरों को हरा भरा दिखाने के लिए नगर निगम ने टेंडर द्वारा एक एजेंसी को 4 करोड़ 10 लाख का ठेका दिया है। टेंडर की शर्तो के अनुसार पौधे लगाने के साथ ही उनकी सुरक्षा और संरक्षण का कार्य भी इसी एजेंसी को करना है। गत 24 मार्च को शहर में मुख्यमंत्री के आगमन के मद्देनजर नगर निगम ने आनन फानन में कचहरी से लेकर भोजूबीर, मकबूल आलम रोड, नदेसर सहित अन्य इलाकों में डिवाइडर पर बड़े बड़े गमले और इनमे पौधे रख दिए।लेकिन आज स्थिति यह हैं कि इन गमलों में लगे पौधे पानी के अभाव में सूख कर दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। कई गमलों से पेड़ ही गायब हैं । संभवत: जी-20 तक सड़कों पर कुछ ही गमलों में पौधे शेष बचें। आश्चर्य है कि पर्यावरण संरक्षण की बात करने वाले तमाम अधिकारी और पर्यावरण प्रेमी इन रास्तों से गुजरते हैं। शायद उनकी नजर इन मुरझाए पेड़ों पर न पड़ती हो। संभव है आने वाले दिनों में सूखे पेड़ों की जगह नए पेड़ लग जाएं, लेकिन पानी के अभाव में दम तोड़ते पेड़ों की मौत का जिम्मेदार कौन होगा। काश पेड़ पौधे भी अपनी व्यथा कह पाते। लोगों का मानना है कि अस्थाई गमलों पर चार करोड़ की भारी भरकम धनराशि खर्च करने के बजाय डिवाइडर पर स्थाई पौधे लगाए जाते तो बेहतर रहता। ये साल भर हरे भरे रहते और प्रदूषण से तो मुक्ति दिलाते ही साथ में पथिक को शीतलता भी प्रदान करते। वैसे कचहरी और स्टेट बैंक के बीच के डिवाइडर में यह प्रयोग सफलता पूर्वक किया गया है। यही प्रयोग शहर के अन्य हिस्सों में दोहराने की जरूरत है।