बेटियों का नि:शुल्क प्रसव करा आदर्श बन गई डा. शिप्राधर


वाराणसी (काशीवार्ता)। आज गलाकाट प्रतिस्पर्धा व असीमित धन कमाने की होड़ में कोई तो है जो धरती के भगवान कहे जाने वालों को गर्व का एहसास कराता हो। ऐसी ही शख्सियत हैं डा. शिप्राधर। ये अपनी कमाई का 50 फीसदी भाग समाज सेवा में खर्च कर देती हैं। वे पांडेयपुर पहड़िया स्थित काशी मेडिकेयर में चिकित्सक हैं। आपको पीएम नरेंद्र मोदी ने सम्मान से नवाजा है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू होने से लगभग एक वर्ष पूर्व ही आपने अपने नर्सिंग होम में एक स्लोगन ‘बेटी नहीं है बोझ, आओ बदले सोच’ के तहत बेटी के जन्म पर न तो कोई चिकित्सकीय शुल्क लेती है और न ही दवा का खर्च। इसमें आपके चिकित्सक पति डॉ.एम.के.श्रीवास्तव का पूरा सहयोग रहता है। डॉ. शिप्राधर की मानें तो यह प्रक्रिया 25 मई 2014 से अनवरत जारी है। डॉ. मनोज का खेल के प्रति लगाव है, वे प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन फार फिजिकली चैलेन्ज्ड के अध्यक्ष हैं। वे दिव्यांगों को प्रोत्साहित करने व टीम का मनोबल बढ़ाने के लिए समय-समय पर टूर्नामनेट कराने के साथ ही टीम के खिलाड़ियों के लिए पौष्टिक आहार भत्ता के रूप में प्रतिमाह प्रोत्साहन राशि भी देते हैं। समाज सेवा के जुनून को देखते हुए चिकित्सक दंपत्ति डॉ.मनोज व डॉ.शिप्राधर को पीएम मोदी सम्मानित कर चुके है। बीएलडब्ल्यू में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान पीएम ने भरे मंच से इनके कार्यों की सराहना की थी। डॉ.मनोज एक हेमेटोलॉजिस्ट होने के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं। 54 वर्ष की अवस्था में अब तक 30 किताबे लिख चुके हैं। जिसमें ‘काशी ज्ञान दायिनि, अन्न दायिनि एवं मोक्ष दायिनि’ तथा ‘काशी द सिटी आफ लार्ड शिवा’ के साथ ही ‘कैंसर अब हारने लगा’ प्रमुख है।


सास-श्वसुर व पति के सपनों को साकार किया
देवरिया जिले की रहने वाली डॉ.शिप्राधर अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। इनके पिता एक इंजीनियर थे, जिनका अल्पआयु मे ही निधन हो गया। माँ इरावती श्रीवास्तव ने बेटी की परवरिश की। इंटर तक की शिक्षा देवरिया से करने के बाद गोरखपुर में दो वर्ष मेडिकल परीक्षा की तैयारी की और मेडिकल में चयन होने के पश्चात बीएचयू में एडमिशन ले लिया। पढ़ाई के दौरान ही माँ ने बेटी की शादी काशी के एक प्रतिष्ठित परिवार में कर दी। चिकित्सक पति व श्वसुर बाल कुवंर लाल के अलावा माँ से भी ज्यादा प्यार देने वाली सास सुशीला श्रीवास्तव ने घर के काम-काज की बजाय शिप्रा की पढ़ाई को तरजीह दी तथा गायनी में एमडी की पढ़ाई हेतु बीएचयू में दाखिला कराया।
565 बेटियों का अब तक करा चुकीं हैं नि:शुल्क प्रसव


डॉ. शिप्रा ने ‘काशीवार्ता’ को बताया 2014 से अब तक 565 बच्चियों का जन्म उनके इस छोटे से अस्पताल में हो चुका है, जिनके माता-पिता से कोई शुल्क नहीं लिया गया। यही नहीं अस्पताल में गरीब बच्चियों को शिक्षित करने के लिए स्किल डेवलपमेंट के माध्यम से सिलाई, कढ़ाई व बुनाई का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके लिए बाकायदा दो अध्यापिकाओं को नियुक्त किया गया है, इसका सारा खर्च वे स्वयं वहन करती हैं। डॉ.शिप्रा भारत विकास परिषद के महिला एवं बाल विकास की नेशनल सेक्रेटरी व पीएम मोदी के एनीमिया मुक्त भारत अभियान की नेशनल सेक्रेटरी हैं।
बेटी चिकित्सक व
बेटा इंजीनियर
डॉ. मनोज व डॉ. शिप्रा को एक बेटी व एक बेटा है। बेटी वत्सला कुंवर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत आगे की पढ़ाई कर रही है। बेटा स्वप्निल कुंवर ने इस वर्ष दिल्ली आईआईटी से बी.टेक किया है। जिसका कैम्पस सलेक्शन जिओ कम्पनी मुम्बई के लिए हुआ है। बेटे का सपना आईएएस बन दादा व दादी के सपनों को साकार करना है।
गरीबो को गेंहू-चावल व साड़ी देना नहीं भूलते
डॉ. शिप्रा व डॉ. मनोज प्रत्येक शनिवार को सभी को नि:शुल्क चिकित्सा परामर्श देते हैं। डॉ.मनोज के सहयोग से विगत कई वर्षों से क्षेत्र की 35 गरीब व विधवा महिलाओं को 10 किलो गेहूं व 5 किलो चावल दिया जाता है। जिसको ‘अपना अनाज बैंक’ नाम दिया गया है। इन गरीब महिलाओं को वर्ष में तीन बार कपड़े दिए जाते है, जिसका नाम उन्होंने ‘मानवता की दीवाल’ रखा है। इसके अलावा डॉ.मनोज द्वारा दिव्यांग और सैनिकों हेतु नि:शुल्क परामर्श के साथ ही हीमोफीलिया, थैलेसीमिया, मानसिक विकलांगता एवं लेप्रोसी का मुफ्त इलाज करते है। चिकित्सक दम्पत्ति के इस सेवा कार्य से प्रभावित होकर अनेकों सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है।