गाजीपुर (काशीवार्ता)।राज की बात कह दूँ तो, जाने महफिल में फिर क्या हो। राज खुलने का तुम पहले जरा अंजाम सोच लो। इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो…। वर्ष 1973 में देश में रिलीज हुई धर्मा फिल्म में आशा भोसले और मोहम्मद रफी का यह गीत जिले के बादशाह पर सटीक बैठ रहा है। जी हां यह गीत अब लहुरीकाशी के तरानों में खूब गूंज रहा है। बादशाह सलामत की तबीयत क्या नासाज हुई, हर तरफ काना फूंसी होने लगी। बादशाह ने अपनी नासाज तबीयत के बहाने सिर्फ दीदी को ही सियासी पटखनी नहीं दी, बल्कि बबुआ को भी समझा दिया कि अब जो कुछ भी होगा, सब पर्दे के पीछे। करीब दस दिन पहले की तो बात है। उन्होंने मटर की सब्जी खाई थी। किसी को क्या पता था कि यह मटर की सब्जी यूपी के सियासतदानों को पूरे चुनाव भर दर्द पैदा करती रहेगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही। मटर खाने के बाद बादशाह सलामत के पेट में तेज दर्द उठी तो उन्हें लखनऊ के अस्पताल में अपनों ने दाखिल कराया। यहां हालात ऐसे कुछ हुए कि उन्हें आईसीयू नसीब हुआ। खुदा का शुक्र रहा कि वह एक सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद घर वापस आ गए। मगर इस दौरान डाक्टरों ने मशविरा दिया कि एक माह तक आराम फरमाना है। अधिक सोचना भी नहीं है और न ही बाहर निकलना है। क्योंकि बाहर की हवा बादशाह सलामत के लिए कातिल सी हो गई है। बादशाह घर आ चुके हैं और उनके चाहने वाले उन्हें जल्द सेहतमंद होने की दुआ खुदा के सामने पेश कर रहे हंै। बादशाह सलामत को दीदी ने कहा था कि आप के समाज में आपकी बड़ी शोहरत है और पश्चिमी यूपी में चले जाओगे तो पार्टी को फायदा हो जाएगा। एक दिन पहले बादशाह बुलावे का इंतजार कर रहे थे। खैर प्रचार की बात आई तो पेट में दर्द हुआ और अस्पताल पहुंच गए। बादशाह ने यह पहले से ही तय कर लिया था कि न इधर जाएंगे और न उधर। बस दिल चाहेगा तो उधर जाएंगे। अब तो दीदी भी उनकी सलामती की दुआएं कर रही हैं। उन्हें क्या पता कि बादशाह ने कभी अपनी सियासी पारी में कच्ची गोटी खेली ही नहीं। जब भी खेली अखाड़े में पटखनी दी और जीतकर ही वापस आए। चाहे वह नेताजी हों, या फिर बबुआ हों और दीदी तो उनके हर दांव को समझकर भी कुछ नहीं कर पा रही हैं। वह तो इंतजार कर रही हैं कि बादशाह कह दें कि अब तुमसे जी भर गया है और बबुआ का बुलावा आया है, लेकिन इतना सब कुछ करते करते 2024 का भी वह दिन आ जाएगा, जब बादशाह सलामत आजाद पंक्षी बनकर यह कहते रहेंगे कि… यह हौसलों की उड़ान है, यह हौसलों की उड़ान है। और अब बबुआ की बारी है।