पीरियड्स के लिए छुट्टियां दिया जाना सही या ग़लत, क्या कहती हैं महिलाएं?


ये एक ऐसा सवाल है जिसे लेकर सोशल मीडिया पर बीते कुछ दिनों से बहस जारी है. लेकिन इस बहस ने महिलाओं को ही दो पक्षों में बांट दिया है.

महिलाओं का एक पक्ष मानता है कि अगर पीरियड के लिए छुट्टियां दी जाने लगें तो इससे समाज विशेषत: वर्किंग कल्चर में पीरियड को एक स्वीकार्यता मिलेगी.

वहीं, महिलाओं का एक अन्य पक्ष इसका विरोध करते हुए कह रहा है कि इससे वर्क प्लेस में असमानता बढ़ेगी.

कैसे शुरू हुई ये बहस

फूड डिलिवरी सर्विस देने वाली कंपनी ज़ोमेटो ने अपनी महिला कर्मचारियों को एक साल में पीरियड के लिए दस दिनों की छुट्टियां देने का ऐलान किया है.

कंपनी के संस्थापक दीपेंदर गोयल ने अपने कर्मचारियों को एक ईमेल भेजकर इस पहल के बारे में बताया है.

इस ईमेल को कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर भी जारी किया है.

ईमेल में महिला कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि वे इस पहल के तहत मेंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान एक छुट्टी ले सकती हैं, और उन्हें इस छुट्टी के लिए आवेदन करते हुए किसी तरह की शर्म आदि महसूस नहीं करनी चाहिए.

इसी ईमेल में ये भी कहा गया है कि अगर ये छुट्टी लेने या इस बारे में बात करने के लिए उन्हें कंपनी में काम कर रहे पुरुषों या महिलाओं से किसी तरह के प्रताड़ना या ग़लत कमेंट्स का सामना करना पड़े तो इस बारे में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है.

हालांकि, इसी इमेल में एक हिदायत ये भी दी गई है कि इन छुट्टियों का ग़लत इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.

लेकिन ज़ोमेटो ऐसी पहली कंपनी नहीं है जिसने इस तरह की योजना पर काम किया हो.

इससे पहले मुंबई स्थित कल्चर मशीन, गुड़गांव स्थित गोज़ूप और कोलकाता की फ़्लाईमाईबिज़ नाम की कंपनी इस तरह की पहल के साथ सामने आ चुकी हैं.

बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नाइक साल 2007 में इस तरह की छुट्टियों को शुरू कर चुकी है. पश्चिमी देशों में भी कई संस्थान अपने यहां काम करने वाली महिलाओं को पीरियड के दिनों छुट्टियां देते हैं.

लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब इस तरह की बहस सोशल मीडिया या आम लोगों के बीच छिड़ी हो.

इससे पहले अरुणाचल प्रदेश के लोकसभा सांसद निनॉन्ग एरिंग मेन्स्ट्रुएशन बेनिफ़िट बिल, 2017 संसद के पटल पर पेश कर चुके हैं. इस बिल के तहत महिलाओं को हर महीने दो दिन की छुट्टियां देने का प्रावधान था.

बिल पेश होने के बाद भी एक राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ी थी कि महिलाओं को ये सुविधा मिलनी चाहिए या नहीं.

ये बिल पेश करने के बाद निनॉन्ग एरिंग ने बीबीसी से इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की थी.

उन्होंने कहा था कि उनके मन में ये विचार तब आया जब उन्होंने मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी द्वारा महिलाओं को पीरियड के पहले दिन छुट्टी देने का फ़ैसला करने की ख़बर सुनी.

साल 2018 में भी ये बहस वर्तमान दौर की तरह दो हिस्सों में बंटी हुई थी.

एक पक्ष का दावा था कि ऐसा करने से समाज में पीरियड को लेकर एक स्वीकार्यता का भाव विकसित होगा. वहीं, दूसरे पक्ष का दावा था कि इससे महिलाओं को नौकरी पाने में दिक़्क़तें पैदा होंगी.

क्या कह रही हैं विरोध करने वाली महिलाएं

ज़ोमेटो की ओर से इस ऐलान के बाद एक बार फिर ये बहस शुरू हो गई है. ट्विटर से लेकर फेसबुक तक कई महिलाएं इस बारे में खुलकर अपनी राय रख रही हैं.

कारगिल युद्ध की रिपोर्टिंग करने वालीं पत्रकार बरखा दत्त ने इसका विरोध करते हुए लिखा है कि ये महिलाओं को पीछे धकेलने जैसा है.

इसके बाद कई अन्य महिला हस्तियों ने भी दत्त का समर्थन क्या है.

ट्विटर यूज़र अनन्या शंकर लिखती हैं, “मुझे लगता है ज़ोमेटो की पीरियड्स लीव देने की पहल महिलाओं को ऑफ़िस कल्चर में थोड़ा पीछे ले जाएंगी? मतलब, इसे बीमारी पर ली जाने वाली छुट्टी कहना क्यों ग़लत है. आप क्यों नहीं कह सकते कि मुझे पीरियड्स हो रहे हैं और इसीलिए छुट्टी चाहिए. क्या ये सिर्फ मैं हूं जिसे ये लगता है कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है.”ट्विटर यूज़र सलोनी कोठारी लिखती हैं, “उम्मीद करती हूँ कि पीरियड लीव का ट्रेंड आगे नहीं बढ़े. इससे क्या अच्छा हो पाएगा? बराबरी की पूरी लड़ाई का मूल विचार ही ये है कि समान अवसरों और सम्मान की माँग की जाए और उसका समर्थन किया जाए. किसी ने विशेष तरजीह नहीं माँगी थी!

बीबीसी से बात करते हुए दक्षिणी दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ जयश्री सुंदर बताती हैं, “हम समानता, सशक्तिकरण और पीरियड्स के नाम से शर्म का अहसास मिटाने की बात कर रहे हैं. ऐसे में हमें वापस पीछे की ओर नहीं जाना चाहिए. मेंस्ट्रुअल साइकिल एक शारीरिक प्रक्रिया है. जब हम शारीरिक मेहनत ज़्यादा करते हैं, तभी हमें आराम की ज़रूरत होती है. ऑफिस के रूटीन काम में इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती है. इससे ज़्यादा ध्यान हमें दफ़्तरों को साफ सफाई की सुविधाओं से परिपूर्ण करने में देना चाहिए. कंपनियों को महिलाओं को माँ बनने के बाद ऑफ़िस वापस आने के लिए अच्छा माहौल देना चाहिए.”

समर्थन करने वाले क्या कहते हैं?

ट्विटर यूज़र लाहिरी रेड्डी लिखती हैं, “भारत में जहां पीरियड्स को एक टैबू के रूप में देखा जाता है, मैं इस मौके पर ज़ोमेटो को इस कदम के लिए बधाई देती हूँ. मुझे उम्मीद है कि अन्य कंपनियां अपनी लीव पॉलिसी में इसे शामिल करें. ज़ोमेटो को ये सबसे पहले करने के लिए खूब सारा प्यार…”

ट्विटर यूज़र बी लिखती हैं, “अगर आप पीरियड लीव के ख़िलाफ़ हैं तो मुझे लगता है कि आप इतनी किस्मत वाली हैं कि आपका पीरियड का अनुभव बुरा नहीं है. मैं उनमें से एक हूँ कि जिन्हें हर महीने अलग-अलग तरह के अनुभव झेलने पड़ते हैं. कुछ महीने पीरियड पर कुछ नहीं होता है. कुछ महीने पूरे दिन दर्द होता रहता है. और ये इतना होता है कि मैं बिस्तर से उठ भी नहीं पाती हूँ.”

ट्विटर यूज़र आइना रॉय चौधरी लिखती हैं, “कर्मचारी कभी भी किसी संस्थान को पैसे के लिए नहीं छोड़ते हैं. बल्कि ज़्यादातर सस्थानों में काम करने के ढंग में संवेदनशीलता में कमी की वजह से ऐसा करते हैं. पीरियड लीव माँगने पर मुझ पर विमन कार्ड इस्तेमाल की बात कहकर चिल्लाया तक गया है. इंसान मशीन नहीं होते हैं.”

पीरियड के दिनों में लीव दी जानी चाहिए या नहीं…ये बहस पुरानी है.

लेकिन बार-बार ये बहस सामने आने से इतना ज़रूर होता दिख रहा है कि लोगों में इसे लेकर स्वीकार्यता का भाव पनप रहा है.

क्योंकि इस बहस के मौके पर पीरियड लीव का समर्थन करने वाली आवाज़ों की संख्या विरोध करने वालों से ज़्यादा हैं.