(डा. लोकनाथ पांडेय)
वाराणसी। काशी की धरती पर होम्योपैथी चिकित्सा का उच्च संस्थान खोलने की नितांत जरूरत है। ताकि युवा पीढ़ी उस विधा को सीख मानवता व स्वास्थ्य के लिए आगे आ सकें। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने जब पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया तब होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति ने आधुनिक दुनिया को नई राह दिखाई और अपनी दवाओं व चिकित्सा से करोड़ों लोगों को राहत प्रदान कर जीवन में नई आशा की लौ जलाई, उक्त बातें ‘काशीवार्ता’ से मुलाकात में प्रसिद्ध होम्यो चिकित्सक मिश्र पोखरा (लक्सा) निवासी डॉक्टर पीके मुखर्जी ने कही। उन्होंने कहा कि “आर्सनिक एल्बम -30” नामक दवा की डिमांड अचानक पूरी दुनिया में बढ़ी तो उसका चमत्कारिक परिणाम भी अमेरिका, ब्रिटेन, रूस समेत दुनियां के तमाम देशों में चिकित्सा विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों को होम्यो पैथी चिकित्सा का कायल बना दिया। होम्योपैथी एक पूर्णत: वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, जिसका उद्भव लगभग 200 वर्ष पहले हुआ। होम्योपैथी ‘सम: समं, शमयति’ के सिद्धांत पर काम करती है, जिसका अर्थ है समान की समान से चिकित्सा अर्थात एक तत्व जिस रोग को पैदा करता है, वही उस रोग को दूर करने की क्षमता भी रखता है।
130 वर्ष पूर्व बनारस में खुला था उच्च संस्थान
डॉक्टर पी. के. मुखर्जी ने बताया कि सन 1890 में स्कूल आॅफ होम्योपैथी संस्थान बनारस में खुला था। तब ब्रिटिश सरकार ने मैदागिन इलाके के एक भवन में इसे खोलने की अनुमति दी थी, उस समय डॉक्टर लोकनाथ मित्रा ने भाड़े के भवन में होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान की शुरूआत कर इस विधा के छात्रों की पढ़ाई शुरू कराई। सन 1924 में यह संस्थान बनारस में बंद हुआ तो फिर नहीं खुला। लेकिन यहां से शिक्षा प्राप्त करके बाहर गए केजी सक्सेना ने लखनऊ में नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज की स्थापना कराई। बाद में यह गोमती नगर के लखनऊ होम्योपैथिक कॉलेज के नाम से तब्दील हो गया।
कर्नाटक, केरला, गुजरात में होम्योपैथी अग्रणी
भारत में 68फीसदी लोग आज होम्योपैथी चिकित्सा कराने लगे हैं। आंकड़ों की बात करें तो केरला इस मामलेमें प्रथम स्थान पर है। यहां लोग सबसे पहले होम्योपैथी चिकित्सा पर विश्वास करते हैं। इस चिकित्सा का लाभ लेने वालों में तमिलनाडु दूसरे, गुजरात तीसरे व राजस्थान चौथे स्थान पर है। पश्चिम बंगाल के साथ यूपी एवं बिहार में भी होम्योपैथी चिकित्सा की गहरी जड़े विद्यमान है।