सरकार की कमाई का सबसे बड़ा रास्ता है टैक्स. फिर चाहे वो डायरेक्ट टैक्स (प्रत्यक्ष कर) हो या इनडायरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष कर).
डायरेक्ट टैक्स या प्रत्यक्ष कर वो टैक्स है जो कमाने वाला या लेनदेन करने वाला सीधे भरता है और इसकी जिम्मेदारी किसी तीसरे को ट्रांसफर नहीं हो सकती. इनमें इनकम टैक्स, और कॉरपोरेट टैक्स या कंपनियों का इनकम टैक्स शामिल है. कैपिटल गेन्स टैक्स भी ऐसा ही टैक्स है और बहुत पहले खत्म हुए वेल्थ टैक्स और एस्टेट ड्यूटी या मृत्यु कर भी ऐसे ही टैक्स थे.
और इनडायरेक्ट टैक्स या अप्रत्यक्ष कर वो होते हैं जिनका भुगतान करने वाला आगे खरीदने वाले से उसे वसूल लेता है. जैसे सेल्स टैक्स जिसकी जगह अब जीएसटी आ गया है, एक्साइज़ और कस्टम ड्यूटी.
पिछले बजट के हिसाब से इस साल सरकार को मिलने वाले हर एक रुपये में से 18 पैसे कॉरपोरेट टैक्स और 17 पैसे इनकम टैक्स से आने थे. दोनों जोड़कर 35 प्रतिशत डायरेक्ट टैक्स से मिलता. इसके ऊपर जीएसटी के 18 पैसे, सेंट्रल एक्साइज़ के सात पैसे और सीमा शुल्क के चार पैसे. यानी इनडायरेक्ट टैक्स के रूप में 29 प्रतिशत हासिल होता. तो रुपए में चौंसठ पैसे आए टैक्स से.
टैक्स के अलावा आय के साधन
चालू साल के बजट में यह 64 प्रतिशत रकम करीब बीस लाख करोड़ रुपये थी. लेकिन खर्च तो होना था लगभग तीस लाख करोड़ रुपये. तो अब बाकी का इंतजाम?
अब सरकार के पास आमदनी के तीन रास्ते और हैं. नॉन टैक्स रेवेन्यू, यानी वो कमाई जो टैक्स से नहीं आती है, लेकिन रेवेन्यू यानी राजस्व खाते की आमदनी है.
टैक्स के अलावा भी सरकार की कमाई के दर्जनों रास्ते हैं. आप सरकार की जो सेवाएं इस्तेमाल करते हैं उनकी फीस. बिजली, टेलिफोन, गैस जैसे बिल में एक छोटा हिस्सा. तमाम चीज़ों पर मिलने वाली रॉयल्टी, लाइसेंस फीस, राज्य सरकारों को दिए कर्ज पर मिलने वाला ब्याज, रेडियो टीवी के लाइसेंस, सड़कों, पुलों का टॉल टैक्स, पासपोर्ट, वीज़ा वगैरह की फीस.
सरकारी कंपनियों के मुनाफे का हिस्सा और बीच-बीच में रिजर्व बैंक से सरकार जो रकम वसूलती रहती है वो.और भी बहुत कुछ है. हालांकि इनमें कई चीज़ों से बहुत छोटी-छोटी रकम आती है. फिर भी कुल मिलाकर दस प्रतिशत इस रास्ते से भी आ जाता है.
और अब बची नॉन डेट कैपिटल रिसीटस यानी पूंजी खाते में आने वाली वो रकम जो कर्ज नहीं है, हालांकि राज्य सरकारों को या विदेशी सरकारों को दिए हुए कर्ज की वापसी इसी खाते में होती है.
कर्ज़ कब लेते हैं?
यह खाता पिछले कुछ सालों में बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने से मिलने वाली रकम भी यहीं आती है और सरकार अगर किसी नई कंपनी को बाज़ार में लिस्ट करवाए या उसे बोनस शेयर मिलें तो वो भी. जैसे-जैसे वो लक्ष्य बढ़ता है वैसे ही सरकारी कमाई में इस खाते का हिस्सा भी बढ़ता है.
2019-20 के बजट में यह तीन प्रतिशत था लेकिन बीस इक्कीस के बजट में छह प्रतिशत हो गया. यह अलग बात है कि उसमें से कितना हाथ में आता है.
अब तक हम अस्सी प्रतिशत कमाई का हिसाब जोड़ चुके हैं. लेकिन फिर जो बीस प्रतिशत हिस्सा बचता है वो कहां से आएगा? वो आता है कर्ज़ लेकर. सरकारी बॉन्ड जारी करने से लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं या दूसरे देशों की सरकारों से मिलने वाले कर्ज़ तक यहीं दर्ज होते हैं.
अगर तरक्की की रफ्तार तेज़ हो तो कर्ज़ लेना और चुकाना मुश्किल नहीं होता है, इसलिए विकासशील देश घाटे की अर्थव्यवस्था चलाते हैं और तरक्की की रफ्तार बढ़ाकर अपने कर्ज़ उतारते रहते हैं.
लेकिन अगर तरक्की पर सवाल हों, कमाई कम हो रही हो, तो यह गले का फंदा भी बन सकता है. यही बड़ी मुसीबत है.