ईरान पर प्रतिबंधों को लेकर अकेला पड़ा अमरीका, सहयोगी देशों ने भी दिया ‘झटका’


राष्ट्रपति बनने के बाद से ही ईरान को लेकर आक्रामक रहे हैं डोनाल्ड ट्रंप

ईरान के मामले में अमरीका के मंसूबे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने सहयोगियों से भी तगड़ा झटका लगा है जिसपर अमरीका की ओर से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगभग सभी सदस्यों ने अमरीका द्वारा ईरान पर और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने के निर्णय को ग़लत ठहराया है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, 15 में से 13 सदस्यों ने कहा है कि अमरीका का यह निर्णय इसलिए ग़लत है क्योंकि वो परमाणु समझौते के तहत सहमति से बनी एक प्रक्रिया पर चल रहा है. अमरीका इस समझौते को दो साल पहले तोड़ चुका है.

बीते 24 घंटे में, जब से अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि ‘अगले 30 दिन के भीतर ईरान पर दोबारा संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं’, तब से उसके पुराने सहयोगियों ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी और बेल्जियम समेत चीन, रूस, वियतनाम, सेंट विंसेंट, दक्षिण अफ़्रीका, इंडोनेशिया, एस्टोनिया और ट्यूनेशिया चिट्ठी लिखकर अमरीका के निर्णय को ग़लत ठहरा चुके हैं.

अमरीका क्या चाहता है?

अमरीका ने ईरान पर विश्व शक्तियों के साथ 2015 के समझौते को तोड़ने का आरोप लगाया है जिसका उद्देश्य प्रतिबंधों से राहत के बदले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था. लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ‘सबसे ख़राब डील’ बताते हुए साल 2018 में इसे छोड़ दिया था.

राजनयिकों ने कहा है कि रूस और चीन समेत कई अन्य देश एक बार फिर ईरान पर प्रतिबंध लगाने का इरादा नहीं रखते और वो इसके ख़िलाफ़ हैं. मगर पोम्पियो ने शुक्रवार को रूस और चीन को फिर यह चेतावनी दी कि अगर वो ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लागू करने से इनकार करेंगे, तो अमरीका इस पर कार्रवाई करेगा.

अमरीका चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 के तहत संयुक्त राष्ट्र के जो प्रतिबंध ईरान से हटा लिये गए थे, वो 19 सितंबर तक फिर से ईरान पर लग जायें – यानी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संयुक्त राष्ट्र असेंबली में वैश्विक नेताओं के बीच भाषण देने से ठीक कुछ दिन पहले.

लेकिन अमरीका को इस प्रस्ताव के तुरंत बाद विरोध का सामना करना पड़ा है. चीन और रूस ही नहीं, बल्कि अमरीका के यूरोपीय सहयोगियों ने भी कहा है कि ट्रंप प्रशासन की इस माँग का आधार ‘अवैध’ है.

अमरीका का सहयोगियों पर निशाना

उधर अपने सहयोगियों से समर्थन ना मिलने पर अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो निराश दिखे और उन्होंने यूरोपीय देशों पर ‘अयातुल्लाह के साथ खड़े होने’ का आरोप लगाया.

न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की एक प्रेस वार्ता में पोम्पियो ने अपनी निराशा व्यक्त की.

उन्होंने कहा, “हमारे कार्यों से किसी को भी हैरानी नहीं होनी चाहिए. हमारी टीम ने बीते दो वर्ष में हर राजनयिक प्रयास किया है ताकि हथियारों पर ये रोक लगी रहे. जर्मनी, फ़्रांस और यूके में हमारे दोस्त निजी तौर पर कहते रहे कि वो भी नहीं चाहते कि ईरान पर लगे प्रतिबंध हटें. फिर भी, आज, अंत में, उन्होंने कोई विकल्प नहीं छोड़ा. किसी में ये साहस हो या ना हो, अमरीका में इतनी हिम्मत है कि वो इस प्रस्ताव को रखे, और हम अयातुल्लाह के साथ नहीं खड़े हो सकते, क्योंकि उनके एक्शन इराक़, यमन, लेबनान, सीरिया, यहाँ तक की ख़ुद अपने लोगों के लिए ख़तरा हैं.”

उन्होंने कहा, “हमारा संदेश बहुत साफ़ है. अमरीका कभी भी दुनिया में आतंकवाद के सबसे बड़े प्रायोजक को प्लेन, टैंक, मिसाइल और अन्य किस्म के हथियार ख़रीदने या बेचने नहीं देगा. इसलिए ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के ये प्रतिबंध लगना ज़रूरी है ताकि उसके हथियारों की ख़रीद-बेच पर रोक जारी रहे.”

‘अमरीका बच्चे की तरह कर रहा’

वहीं न्यूयॉर्क में पत्रकारों से बात करते हुए ईरान के राजदूत माजिद तख़्त रावंची ने कहा कि “अमरीका को ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लगवाने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय के बाद अमरीका ने ‘जॉइंट कॉम्प्रीहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन’ (JCPOA) जिसे अमरीका-ईरान परमाणु समझौता कहते हैं, उससे 2018 में ख़ुद को अलग कर लिया था.”

उन्होंने कहा, “अमरीका अपने हालिया प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को ईरान पर हथियारों से जुड़ी रोक लगाये रखने के लिए मनाने में असफल रहा, इसलिए अब अमरीका सुरक्षा परिषद और उसके सदस्यों पर अपनी तथाकथित ‘अधिकतम दबाव की नीति’ को लागू करना चाहता है. अमरीका की कोशिशें प्रक्रियाओं के दुरुपयोग का एक स्पष्ट उदाहरण है जो अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत निषिद्ध है. यह क़ानूनी और राजनीतिक गुंडागर्दी है, और कुछ नहीं.”

अमरीका में मौजूद ईरान के राजदूत ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य (अमरीका) एक बच्चे की तरह कर रहा है, जिसका अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अन्य सदस्यों द्वारा, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद में उपहास किया जा रहा है. अमरीका के पास अब ख़ुद को ईरान परमाणु समझौते के भागीदार के रूप में प्रस्तुत करने का कोई क़ानूनी तर्क नहीं है. उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी कोई राजनीतिक समर्थन नहीं है.”

माना जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विरोध झेलने के बाद अमरीका इस मुद्दे पर वीटो पावर का इस्तेमाल कर सकता है ताकि ईरान पर प्रतिबंधों को फिर से लागू किया जा सके.