देश की सर्वोच्च अदालत ने जम्मू में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को किसी भी किस्म की राहत नहीं प्रदान की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि जम्मू में रोहिंद्या मुसलमानों के प्रत्यर्पण तय प्रक्रिया पूरी होने तक नहीं होगी। कोर्ट ने केंद्र के आदेश पर किसी भी तरह का स्टे नहीं लगाया है। वहीं जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश में रह रहे म्यांमार और बांग्लादेश के अप्रवासियों की पहचान करने के लिए सरकार को छह सप्ताह का वक्त दिया है। हाईकोर्ट की तरफ से जेएंडके के गृह सचिव को छह सप्ताह के भीतर म्यांमार व बांग्लादेश के घुसपैठियों की निशानदेही करने व उनकी सूची तैयार करने का आदेश दिया है।
वकील हुनर गुप्ता की ओर से जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मोक्ष खजूरिया काजमी की पीठ ने रोहिंग्या के निर्वासन की मांग पर आदेश पारित किया है। जनहित याचिका में जम्मू कश्मीर में गैर कानूनी ढंग से दाखिल हुए म्यांमार व बांग्लादेश के नागरिकों को बाहर निकालने और इनकी निशानदेही करने के लिए सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में जांच करवाने की मांग की गई। इसमें कहा गया कि पिछले कुछ सालों में जम्मू कश्मीर में इनकी संख्या काफी बढ़ी है।
जनहित याचिका में कहा कि सरकार के अनुसार 13400 म्यांमार व बांग्लादेश निवासी जम्मू कश्मीर में रह रहे हैं जबकि वास्तविकता में यह आंकड़ा कहीं अधिक है। 1982 में म्यांमार सरकार ने इन्हें अपना नागरिक मानने से इन्कार कर दिया था जिस कारण इन्होंने बांग्लादेश, पाकिस्तान व थाईलैंड की ओर पलायन किया और फिर किसी तरह से घुसपैठ करके भारत में दाखिल हो गए। उन्होंने कहा कि 8500 रोहिंग्या जम्मू कश्मीर में हैं।