काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मामले में नया मोड़, कोर्ट ने एक और नई याचिका की एडमिट, जारी किया नोटिस


काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में गुरुवार को एक नया मोड़ आया. कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए नई याचिका को स्वीकार कर लिया. देवी श्रृंगार गौरी, आदि विशेश्वर, श्री काशी विश्वनाथ बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में दाखिल याचिका में सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार सिंह की कोर्ट ने फैसला सुनाया. जिसमें कहा गया कि चूंकि मुख्य मामला पूजा के अधिकार से संबंधित है जो कि सिविल अधिकार के अन्तर्गत आता है. इसलिए सिविल वाद द्वारा ही इसका निस्तारण किया जाना न्यायोचित होगा. कोर्ट ने कहा कि विवेचना के आधार पर पत्रावली को मूलवाद के रूप में दर्ज करने का पर्याप्त आधार है.

दरअसल, 18 फरवरी 2021 को वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट की अदालत में नए केस के रूप में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में मंदिर पक्ष की ओर से केस दर्ज कराने के लिए पत्रावली पेश की गई थी. इस मामले में यह दावा किया गया है कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 भारतीय संविधान के विरुद्ध है.

इस नए वाद के जरिये ये मांग उठाई गई है कि आदि विशेश्वर 5 कोस का जो अवमुक्त क्षेत्र है, उसे मुक्त किया जाए. औरंगजेब ने जो मंदिर का हिस्सा तोड़ा है, उसे वापस बनाया जाए और श्रृंगार गौरी की रोकी गई पूजा फिर से शुरू हो. यह भी कहा गया कि वक्फ एक्ट यहां अप्लाई नहीं होता है.

इस मामले में भारत संघ, उत्तर प्रदेश सरकार, जिलाधिकारी, एसएसपी वाराणसी, उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंताजामिया मस्जिद कमेटी और ट्रस्ट ऑफ काशी विश्वनाथ मंदिर को प्रतिवादी बनाया गया है.

याचिका के जरिये यह मांग कोर्ट में उठाई गई थी कि मां गंगा, भगवान हनुमान, भगवान गणेश, नंदी जी और आदि विशेश्वर के साथ मां श्रृंगार गौरी के उपासक और समर्पित देवी-देवताओं के दर्शन और पूजा करने के हकदार हैं. संपूर्ण अवमुक्तेश्वर क्षेत्र प्रमुख सीट के लिए 5 कोस के दायरे में देवता भगवान आदि विशेश्वर से संबंधित है. प्रतिवादी पक्ष को मौजूदा इमारत संरचना को ध्वस्त करने के बाद नए निर्माण करने में हस्तक्षेप करने से रोका जाए. साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर के न्यास मंडल को देवी मां श्रृंगार गौरी, भगवान आदि विशेश्वर और अन्य देवी-देवताओं की पूजा बहाल करने का निर्देश दिया जाए.

इस याचिका पर सिविल जज सिनियर डिवीजन महेंद्र कुमार सिंह ने निर्णय दिया कि मामले में मुख्य रूप से मां श्रृंगार गौरी, मां गंगा, भगवान हनुमान, भगवान गणेश, नंदी जी व आदि विशेश्वर के सेटेलमेंट प्लाट नंबर 9130 पर दर्शन पूजन के अधिकार की घोषणा करने एवं सेटेलमेंट प्लाट नंबर 9130 भगवान आदि विशेश्वर से संबंधित है.

कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त विवेचना के आधार पर पत्रावली को मूलवाद के रूप में दर्ज करने का आधार पर्याप्त है. विपक्षी संख्या 7 की ओर से जो भी आपत्ति उठायी गयी है, उन सभी का निस्तारण लिखित में आने के बाद किया जाएगा. इसके अलावा कोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड सहित सभी पक्षकारों को नोटिस भी भेज दिया.

इस बारे में वादी मंदिर पक्ष के वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन ने बताया कि काशी हिंदुओं का धार्मिक क्षेत्र है जो आदिकाल से ही चला आ रहा है. यहां भगवान शिव ने खुद एक लिंग स्थापित किया था. जिसे आदि विशेश्वर लिंग के नाम से जानते हैं और पांच कोस का एरिया जो अवमुक्त एरिया है. जिसपर औरंगजेब के वक्त में ही मंदिर को तोड़कर एक ढांचा जबरदस्ती खड़ा कर दिया गया.

कील हरिशंकर ने कहा कि जिसे मुसलमान मस्जिद कहते हैं, जबकि वह मस्जिद नहीं है. इसलिए हिंदुओं के अधिकार को सुरक्षित करते हुए उनको फिर से पूजा पाठ की इजाजत दी जाए और टूटे मंदिर को रिस्टोर किया जाए. इस मांग को लेकर दायर दावे को कोर्ट ने एडमिट कर लिया है. साथ ही वक्फ बोर्ड, इंतजामिया कमेटी, भारत सरकार, प्रदेश सरकार और पार्टी नोटिस भी भेज दिया. इनके जवाब आने के बाद केस आगे बढ़ेगा. मांग पर आज कोर्ट ने कहा कि ये धार्मिक मामला है और पूजापाठ का अधिकार मांगा गया है, इसपर विचार होना आवश्यक है.