काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद का क्या है विवाद, ASI को क्या काम करने का मिला है जिम्मा?


काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अब बयानबाजी भी शुरू हो गई है. जहां सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि वह इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और इसे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे तो वहीं AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसपर टिप्पणी की है. आइए जानते हैं आखिर काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद क्या है और ASI को क्या काम करने का जिम्मा मिला है?

दरअसल, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया. जिसमें ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को दिया है और रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश करने को कहा है. अब यह बात जल्द स्पष्ट हो जाएगी कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे और आसपास के पूरे इलाके में पुरातात्विक लिहाज से है क्या? वहां हिंदू देवी-देवताओं या फिर काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े अवशेष तो नहीं हैं?

ऐसे में कोर्ट के इस फैसले के साथ मंदिर पक्ष की उम्मीदें बढ़ गई हैं, क्योंकि दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और उसके नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के लिहाज से पुरातात्विक अवशेष हैं. वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के दिए गए फैसले के बाद सुनवाई की अगली तारीख 31 मई को तय की है. फिलहाल कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर पक्ष के लोगों में फैसला सुनाया.

असदुद्दीन ओवैसी का बयान

इस बीच असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा कि AIMPLB और मस्जिद कमेटी को मामले में तुरंत अपील करके सुधार करवाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ASI से धोखाधड़ी की संभावना है और इतिहास दोहराया जाएगा, जैसा कि बाबरी मस्जिद के मामले में किया गया था. वहीं, मंदिर की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील ने कहा कि ये हिंदू पक्ष के लिए बड़ी जीत है.

क्या है पूरा मामला?

आपको बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है. यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है. दावा किया जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने 1664 में नष्ट कर दिया था. फिर इसके अवशेषों से मस्जिद बनवाई, जिसे मंदिर की जमीन के एक हिस्से पर ज्ञानवापसी मस्जिद के रूप में जाना जाता है.

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी ममले में 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल हुआ था. इस याचिका कि जरिए ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति मांगी गई. लेकिन कुछ ही दिनों बाद मस्जिद कमेटी ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला देकर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1993 में स्टे लगाकर मौके पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया.

हालांकि, स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और फैसले के बाद 2019 में वाराणसी की कोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई शुरू हो गई. अब वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद के ASI द्वारा सर्वेक्षण करने की मंजूरी दी गई है.

इस आदेश में खास यह है कि सर्वे करने वाली टीम 5 सदस्यों की होगी, जिसमें 2 अल्पसंख्यक समुदाय के जबकि 3 अन्य होंगे. इस टीम को भी एक एक्सपर्ट की ओर से मॉनिटर किया जाएगा. जो किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पुरातत्व विषय के वैज्ञानिक होंगे. ASI को उत्तर प्रदेश के पुरातत्व विभाग मदद करेगी.

वहीं, प्रतिवादी पक्ष (ज्ञानवापी मस्जिद) अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल प्रतिवाद पत्र में दावा किया गया कि यहां विश्वनाथ मंदिर कभी था ही नहीं और औरंगजेब बादशाह ने उसे कभी तोड़ा ही नहीं. जबकि मस्जिद अनंत काल से कायम है. उन्होंने अपने परिवाद पत्र में यह भी माना कि कम से कम 1669 से यह ढांचा कायम चला आ रहा है.