किंगमेकर की भूमिका में हो सकती है बसपा!


(राजेश राय)
वाराणसी(काशीवार्ता)। जिन लोगों को भी 1983 का क्रिकेट वर्ल्डकप याद होगा। उन्हें पता होगा कोई दूर-दूर तक भारत की जीत पर दांव लगाने को तैयार नहीं था। परन्तु कपिलदेव की टीम ने सारे अनुमानों को गलत साबित करते हुए कप पर कब्जा किया। उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस समय हर राजनीतिक पंडित बसपा को अप्रासंगिक बता रहा है, लेकिन वे भूल रहे हैं क्रिकेट की तरह राजनीति भी अनिश्चितता का खेल है। किसी ने 2004 लोस चुनाव में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की हार का अनुमान नहीं लगाया था। इसी तरह किसी ने भी 2009 लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह, 2007 में यूपी में मायावती और 2012 में सपा की जीत की भविष्यवाणी नहीं की थी।
2022 के यूपी चुनाव में सबकी निगाहें इस समय बीजेपी और सपा पर टिकी हुई हैं। सभी एक सुर से बसपा को चुका हुआ मान रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पंडितों के अनुमानों से बेपरवाह मायावती अपने चुनावी अभियान में चुपचाप लगी हुई हैं। उन्होंने न तो बड़ी रैलियों में अपनी ऊर्जा और वक्त जाया किया और न ही बीजेपी और सपा की तरह यात्राएं ही निकालीं। दुनियावी तामझाम से हट कर मायावती का सारा फोकस इस समय अपने संगठन और वोट बैंक पर है। वे लगातार अपना कैडर मजबूत करने में लगी हुई हैं। उनका सारा ध्यान बूथ लेवेल पर कार्यकर्ताओं की नियुक्ति और हर जिले और मंडल में संगठन को पुन: मजबूत करने पर है। उनसे जो भी मिलने जाता है तो वे बड़े आत्मविश्वास से कहती हैं कि अगली सरकार उनकी बनने जा रही है। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उनके इस आत्मविश्वास की वजह ढूंढने में लोग व्यस्त हैं।
जानकारों का कहना है कि तमाम राजनीतिक उठा-पटक के बावजूद मायावती का वोट बैंक कमोबेस अभी भी सुरक्षित है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि सन 1993 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 167 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उसे 67 सीटों पर विजय हासिल हुई। 1996 के चुनाव में पार्टी 296 सीटों पर लड़ी। वोट का प्रतिशत बढ़कर 19.64 हो गया पर सीटें 67 ही आयीं। मायावती ने 2002 के चुनाव में 401 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इस बार वोट का प्रतिशत बढ़ कर 23.6 हो गया और पार्टी को 98 सीटें मिली। लेकिन बसपा का टर्निंग पॉइंट 2007 चुनाव में आया जब पार्टी ने सभी 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और इस बार 206 सीटें जीत कर पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ कर 30.43 हो गया। इस विजय में दलितों के अलावा ब्राम्हणों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन इस चुनाव के बाद बसपा अपने इस प्रदर्शन को दोहरा नहीं सकी। 2012 के चुनाव में उसे मात्र 80 सीटों पर संतोष करना पड़ा, लेकिन वोट का प्रतिशत ज्यादा नहीं गिरा। 25.95 प्रतिशत लोगों ने अब भी मायावती पर भरोसा जताया था। सन 2017 बसपा के लिये अब तक का सबसे बुरा चुनाव साबित हुआ। पार्टी ने 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन विजय मात्र 10 सीटों पर मिली, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पार्टी पर अब भी 22.24 प्रतिशत मतदाताओ ने भरोसा जताया। यह भरोसा ही 2022 के चुनाव में मायावती का संबल है।
पार्टी की रणनीति इस बार कम से कम 30 से 40 सीटों पर विजय हासिल करने की है। अगर ऐसा हुआ तो बहन जी किंगमेकर की भूमिका में आ जाएंगी क्योंकि किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में सबकी निगाहें मायावती की तरफ होगी। बहन जी जब अगले चुनाव में सरकार बनाने की बात करती हैं तो दिमाग में यही रणनीति काम कर रही होती है। इसी रणनीति के तहत बसपा अन्य दलों से पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने जा रही हैं।