लहुरीकाशी की सियासत में चंचल का चलेगा सिक्का


(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। वह तारीख थी सात मार्च 2016 की। जब सत्ताधारी पार्टी सपा से दो दो हाथ करके निर्दल उम्मीदवार के रूप में उतरे विशाल सिंह चंचल ने सपा के डा. सानंद सिंह को हराकर लंबी सियासी रेखा खींच दी थी। उस समय कोई यह नहीं जानता था कि यह युवा जनप्रतिनिधि लहुरीकाशी की सियासत का बड़ा बादशाह बनेगा। समय के साथ सब कुछ बदला और भाजपा की सरकार आई तो वह सीएम योगी के करीब आ गए। धीरे धीरे समय बीतता गया। एक दौर ऐसा आया, जब चंचल के नाम की गूंज हर तरफ सुनाई देने लगी। हालत यह हो गए कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अचानक चंचल की सियासी ताकत में इजाफा हुआ और वह जिले की सियासत के चतुर खिलाड़ी बन गए। मनोज सिन्हा को हारने के एक वर्ष के बाद भीतर जम्मू एवं कश्मीर का उपराज्यपाल बना दिया गया। इधर चंचल के ही इशारे पर सब कुछ जिले में चलता रहा। जब 2021 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हुए तो भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज करके अपने 14 ब्लाकों में भाजपा का कब्जा जमा लिया। यानि इन ब्लाकों में भाजपा के ब्लाक प्रमुख थे। फिर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव आया तो उन्होंने अपनी सरहज को चेयरमैन बनाकर इतिहास रच दिया था। तभी से सियासी पंडित यह मान चुके थे कि अब चंचल ही जिले के बादशाह रहेंगे। क्योंकि कई दशक बीत गए, मगर भाजपा का जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं बन पाया था। यह सब चंचल के सियासी प्रयास के कारण संभव हो पाया। इधर महाराज के भी नजरों में चंचल के लिए इज्जत बढ़ गई थी। जब भी सीएम योगी जिले में आते, तब वह चंचल को अपने हेलीकाप्टर में जरूर बैठते थे। विधानसभा चुनाव हुए तो उस समय चंचल की नहीं चली। टिकट बंटवारे में कश्मीर की हवा चली। चुनाव के समय में भी कश्मीर के हवा का ऐसा झोंका जिले में दो सप्ताह तक चलता रहा कि सभी सिहर गए। सब कांपने लगे। सियासी ठंड अधिक लगने लगी। मतदान से कुछ दिन पहले ही कश्मीर वाली हवा शांत हुई। यह हवा हर उस मंदिर तक पहुंची, जहां पर कभी कश्मीर की हवा तक नहीं बहती थी। खैर छोड़िए जब चुनाव परिणाम आए तो सब कुछ उलट था। भाजपा सातों की सातों सीट हार चुकी थी। सिर्फ पार्टी के पास रोने के सिवाय कुछ नहीं था। हालात यह हो गए कि भाजपाई एक दूसरे के आंसू भी नहीं पोछ पा रहे थे। हर तरफ किरकिरी हो रही थी। लेकिन दूसरी बार सत्ता पर फिर योगी ही काबिज हुए। यही राहत की बात थी। विपक्ष भाजपा को ललकार रहा था। इसी बीच एमएलसी चुनाव आए तो विपक्ष ने चंचल को हराने के लिए भदोही से प्रत्याशी मंगाया। लेकिन यह प्रत्याशी इस कदर भयभीत था कि उसने चंचल को अपना समर्थन दे दिया। सातों विधायक यह सब देखते रह गए। तब निर्दल मदन पर दांव आजमाया गया। लेकिन चंचल के सियासी दांव के आगे सपा एवं सुभासपा के सभी सातों विधायक चारों खाने चित हो गए। और जब चुनाव परिणाम आए तो रिकार्ड मतों से चंचल की जीत हुई। चंचल की यह जीत जहां सपा से एक माह पहले हार का बदला लिया, वहीं 2024 के लिए विपक्ष के सामने बड़ी लकीर खिंच दी। उन्होंने भाजपा के वोटरों की अभी से एक तरह से किले बंदी कर दिया। अब सपा की बोलती बंद है। सभी सत्ता के दुरूपयोग का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन इन सपा के दिग्गजों को यह मालूम नहीं है कि जब 2016 में सपा की सरकार थी, तब चंचल कैसे जीते। यह आरोप बेबुनियाद है। सपा के ही अधिकांश वोटरों ने चंचल के लिए वोट किए, उनके लिए जिंदाबाद के नारे लगाए। यहां तक की कई सपाई भाजपाई बन गए।