वाराणसी (काशीवार्ता)। हर साल जब दारू के ठेके के लिए आवेदन आमंत्रित किये जाते हैं तो उसमें पहली शर्त होती है कि ठेका अस्पताल, स्कूल या धार्मिक स्थल आदि के आस-पास नहीं होगा। इसके लिए मौके पर आबकारी विभाग के कर्मचारी सत्यापन के लिए भी जाते हैं लेकिन हो एकदम उलटा है। शहर में ठेका आवंटन करते समय इस शर्त की खुलेआम अवहेलना की जाती है। कहना न होगा इसके पीछे आबकारी विभाग के भ्रष्ट कर्मियों की मुट्ठी गरम की जती है। जब अचानक ठेके का बोर्ड टंगता है तो मुहल्ले वालों के अचरज का ठिकाना नहीं रहता।
फिर शुरू होता है विरोध प्रदर्शन का दौर। कई बार विरोध के चलते ठेके हटाये जाते हैें तो कई बार नहीं। लेकिन इन ठेकों के चलते आसपास का वाातवरण दूषित जरूर होता है। आबकारी विभाग को इससे क्या मतलब उसे तो महीने की बंधी बंधाई रकम मिल जाती है। जनता जाये चूल्हे भाड़ में। एक अप्रैल से नये ठेके आवंटित होंगे। शराब माफियाओं ने भ्रष्ट आबकारी कर्मियों से जोड़तोड़ शुरू कर दी है। पिछलीबार की लाटरी में शराब माफियाओं की चांदी रही। एक-एक व्यक्ति ने अलग-अलग नामों से दर्जनों दुकानें हथिया ली। ऐसा नहीं है कि आबकारी विभाग को इसकी खबर नहीं है परन्तु जब मुट्ठी गर्म है तो नियम-कानून ताक पर रख दिये जाते हैं। जबकि लाटरी सिस्टम के पीछे शासन की मंशा शराब माफियाओं का स्ािंडिकेट तोड़ना था। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले वित्तीय वर्ष से शराब माफियाओं का स्ािंडिकेट टूटता है या नहीं। केंद्र सरकार ने जब बेनामी कानून लागू किया तो उसके पीछे मंशा थी कि कोई व्यक्ति दूसरे के नाम पर न तो सम्पत्ति खरीद सके और न ही व्यवसाय कर सके। परन्तु आबकारी विभाग ने केंद्र सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया। अन्यथा कोई वजह नहीं थी कि एक व्यक्ति के पास एक से ज्यादा दुकानें होती।