मिथिला का मधुश्रावणी त्योहार शुरू


वाराणसी (काशीवार्ता)। मिथिला का महान पर्व मधुश्रावणी का त्योहार प्रारम्भ हो गया है। काशी में रहने वाले सभी मिथिलावासी व नव विवाहिताएं पूरे हर्षोल्लास के साथ इसे मना रही हैं। कोरोना काल में वे अपनी सखी सहेलियों व गांव से दूर हैं बावजूद इसके उनमें उत्साह देखने लायक है। यह पूजा तपस्या के समान है सावन मास के कृष्ण पक्ष के पंचमी से इसका प्रारंभ होता है जो चौदह दिनों तक चलता है। पति की लंबी आयु के लिए नवविवाहिताएं नाग, विषहरा, गौरी और शिव की पूजा के साथ गंगा माता की पूजा कर अहिवात के लिए वरदान मांगती हैं तथा ससुराल से आये अरवा चावल व अन्य पकवान इस दौरान ग्रहण करती हैं। लाख की चूड़ी, नई साड़ी के साथ वे फूल चुनने जाती हैं साथ में वट गवनी का गीत गाया जाता है।संध्याकाल में चुने फूलों से ही विषहरा की पूजा होती है। इस दौरान नववधू और वर का कमरा जिसे कोहवर कहते हैं विद्यापति के गीत, भगवती गीत, गौरी पूजा के गीत, महेशवाणी व नचारी से भर उठता है। इस दौरान दीवाल पर बने मधुबनी पेंटिंग, मिटटी से बने हाथी, विषहरा, शिव गौरी की मूर्ति देखते ही बनती है।पूजन से पूर्व पीसे हुए चावल से बने अरिपन अर्थात अल्पना का सौंदर्य देखते ही बनता है। इस सम्बंध में वसंत महिला महाविद्यालय की प्रो.वन्दना झा ने बताया कि इस दौरान स्त्री, प्रकृति और संस्कृति का सामंजस्य मिथिला की संस्कृति मधुश्रावणी में दिखाई देता है। मिथिला भाषा संस्कृति की अध्येता डॉ वंदना ने कहा कि मिथिला का हर त्योहार प्रकृति के चिंतन के अनुरूप रचा गया है। पारिस्थितिकी का चिंतन वहां के त्यौहार की
विशेषता है।