(संजय उपाध्याय)
वाराणसी (काशीवार्ता)। गर्मी का मौसम शुरू होते ही फलों के राजा आम की आमद शुरू हो जाती है। हर आम व खास व्यक्ति इसका स्वाद चखने को लालायित रहता है। इसके दृष्टिगत शहर व ग्रामीण क्षेत्रों के चट्टी-चौराहोें पर भी मैंगों शेक (आम का जूस) बेचने की तमाम अस्थाई दुकाने सज जाती हैं। काउंटर पर आम की विभिन्न प्रजातियों को डिस्प्ले कर सजी दुकानों से ठंडे मैंगों शेक की धड़ल्ले से बिक्री की जाती है और उपभोक्ता भी खूब चटखारे लेकर इसका रसास्वादन करते हैं। मगर शेक का लुत्फ उठाने वाले लोगों को यह नहीं पता होता कि जिस शीतल पेय को वह आम रस समझकर हलक तर कर रहे हैं, वह वास्तव में किसी जहर से कम नहीं। इससे उन्हें फूड प्वाइजिंग भी हो सकती है। पड़ताल में पता चला कि इन काउंटरों से मैंगो शेक के नाम पर लोगों को सड़े-गले पपीते का जूस परोसा जाता है। काउंटर के नीचे किसी बर्तन में रखे निहायत ही सस्ते दाम पर खरीदे गये गले पपीते के टुकड़ों को मिक्सी में डालकर उसमें आम का सिरप मिलाया जाता है। मिक्सी में जब यह पूरी तरह घुल जाता है तो उसे गिलास में उड़ेला जाता है। शेक को अच्छा दिखाने के लिए ऊपर से काजू के कुछ टुकड़े, चेरी, केसरिया रंग का छिड़काव कर ग्राहकों को दिया जाता है। शिरप की वजह से पपीते का घोल भी आम जैसा ही स्वाद देता है और लोगों को आम का रस पीने की अनुभूति होती है। दुकानदार कौड़ियों के दाम खरीदे सड़े पपीते के घोल की कीमत प्रति गिलास 40 से 50 रुपये वसूलते हैं। आश्चर्यजनक यह है कि इस गोरख धंधे की जांच आज तक खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने नहीं की। सफेद हाथी साबित हो रहा यह विभाग सिर्फ प्रमुख पर्वों पर जगता है और खोआ, छेना, दूध व कभी-कभी मसालों की जांच कर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर लेता है।