(अजीत सिंह)
गाजीपुर (काशीवार्ता)। मुख्तार अंसारी के भतीजे एवं मुहम्मदाबाद में अंसारियों के वारिश और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी शोएब अंसारी ऊर्फ मन्नू के मैदान में आने के बाद करईल की सियासत रोचक दौर में पहुंच गई है। बसपा प्रत्याशी पर भूमिहार वोटरों का आकर्षण कम होने के कारण अब दलित वोटरों को अपने पाले में करने के लिए शीत युद्ध जारी है। ऐसी संभावना बन रही है कि अगर हाथी निशान से इतर 75 हजार दलितों ने वोट किया तो वही उम्मीदवार मुहम्मदाबाद का सिकंदर बनेगा। हालांकि अभी तक सीधी लड़ाई सपा और भाजपा के बीच चल रही है, लेकिन भाजपा की अलका राय की ओर से बुल्डोजर वाला बयान देकर पूरे करईल की सियासत गरमाई है।
वह माफियावाद को जड़ से समाप्त करने के लिए चुनाव मैदान में है।
उनके साथ उनके बेटे पीयूष राय अपनी मां को चुनाव जीताने के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि विधायक के भतीजे आनंद राय मुन्ना का मौन रहना भूमिहार वोटरों की एकजुटता में बाधक बना हुआ है। वहीं बसपा प्रत्याशी माधवेंद्र राय पर 80 हजार भूमिहार वोटरों के एकजुट होने की संभावना कम होने के कारण ही इंजीनियर अरविंद राय भूमिहारों में अलका का टेम्पो हाई किए हुए हैं। जिले के भूमिहारों को एक मंच पर लाने के कारण ही आज इंजीनियर अरविंद राय एवं उनके छोटे भाई राजेश राय की लोकप्रियता भूमिहारों में चरम पर पहुंच गई है। हालांकि राजेश राय सपा में है, मगर वह मौन है। उनके मौन रहने के कारण समाजवादियों में असमंजस के हालात उत्पन्न हो गए हैं।
इसका बुरा असर अंसारियों के वारिश एवं समाजवादी प्रत्याशी शोएब अंसारी के चुनाव पर पड़ने की संभावनाओं की भविष्यवाणी सियासी पंडित कर रहे हैं। लेकिन अंसारियों को यह भरोसा है कि जब अखिलेश आएंगे तो उनका चेहरा यदुवंशियों के दिल में उतर जाएगा और वह सब मन्नू के साथ हो जाएंगे। सियासी पंडित यह मानते हैं कि अभी भाजपा और सपा उम्मीदवार बराबर बराबर पर लड़ रहे हैं। उसके पीछे का कारण है कि यह है कि भाजपा का परंपरागत वोट बोल रहा है, मगर भूमिहार वोटर चुप्पी साधे हुए हैं, वह सही वक्त पर सही फैसला लेने का इंतजार कर रहे हैं। जहां तक अंसारियों की बात है कि इनका खुद का वजूद 40 हजार वोटों से शुरू होता है। जबकि भाजपा की अलका राय को शून्य से मेहनत करनी पड़ेगी। सियासी पंडित इसके पीछे का तर्क देते हैं कि बसपा सांसद अफजाल अंसारी यहां से छह बार विधायक रहे और यहां के जर्रे जर्रे की सियासत और एक एक गांव का माहौल वह 1984 से देख रहे हैं। अफजाल की सियासी काट खोजने के लिए अब भाजपा को अपनी रणनीति नए सिरे से तैयार करनी पड़ेगी। तभी 2017 के जीत का स्वाद 2022 में अलका राय चख पायेंगी वरना इस स्वाद का जायका बिगड़ जाएगा। साथ ही मुहम्मदाबाद के ब्लाक प्रमुख अवधेश राय की कड़ी मेहनत और निष्ठा भी राय परिवार में इस बार परखी जाएगी।