(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी (काशीवार्ता)। पूर्वांचल में माफियाओं का जिक्र हो और उसमे मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी का जिक्र न आए, ऐसा हो नहीं सकता। दोनों की अदावत में दर्जनों हत्याएं हुईं पर जानकर ताज्जुब होगा कि अंडरवर्ल्ड के दोनों धुरंधरों की कोई सीधी दुश्मनी नहीं थी, बल्कि परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि दोनों आमने सामने आ गए। बताते हैं कि सैदपुर के मुड़ियार गांव निवासी साधू सिंह और मकनू सिंह के पट्टीदार रामपत सिंह ग्राम प्रधान चुने गए थे। परंतु इससे साधू और मकनू को खुशी के बजाय जलन हुई। एक दिन पांच बीघे खेत को लेकर साधू मकनू की रामपत सिंह से गाली गलौज हो गई। इस अपमान के बदले में रामपत सिंह ने त्रिभुवन सिंह सहित अपने बेटों के साथ मिलकर साधू सिंह और मकनू सिंह की लाठी डंडों से पिटाई कर दी। इसके बाद कुछ महीनों तक तनावपूर्ण शांति बनी रही। एक दिन साधू और मकनू ने रामपत सिंह को अकेले में पाकर लाठी डंडों से इतना मारा कि उनकी मौत हो गई। इसके बाद दोनों फरार हो गए। कुछ महीनों के बाद दोनों जब गांव लौटे तो रामपत सिंह के तीन बेटों की भी हत्या कर दी। इसके बाद रामपत के बचे दोनों बेटों त्रिभुवन और राजेन्द्र को गांव छोड़ना पड़ा। इसी दौरान एक और घटना हुई। चौबेपुर के धौरहरा गांव में सन 1984 में बंशी सिंह और पांचू सिंह ने पट्टीदार बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह की हत्या कर दी। इस घटना में कई अन्य लोग भी शामिल थे। कहा जाता है कि पिता की जलती चिता के सामने बृजेश ने पिता के हत्यारों से बदला लेने की कसम खाई और फरार हो गया। कुछ दिनों बाद सन 1985 में बृजेश ने पिता के एक हत्यारे हरिहर सिंह की हत्या कर दी। कहा जाता है कि बृजेश ने पहले हरिहर सिंह का पैर छुआ फिर गोली मार दी। बृजेश पर हत्या का यह पहला मुकदमा कायम हुआ। लगभग एक साल बाद सन 1986 में चंदौली के सिकरारा गांव में एक नरसंहार हुआ। आरोप है कि बृजेश ने अपने पिता के हत्यारे रामचंद्र यादव उसके भाइयों और भतीजे सहित 7 लोगों की हत्या कर दी। यह मुकदमा अभी उच्च न्यायालय में चल रहा है। पुलिस ने बृजेश को गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। जेल में बृजेश की मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई। वहां बृजेश को पता चला कि उसके पिता के हत्यारे बंसी और पांचू भी साधु सिंह से जुड़ चुके हैं। यानी त्रिभुवन और बृजेश के दुश्मन अब साधु सिंह और उसके गिरोह के बंसी, पांचू और मुख्तार थे। यहां से बृजेश की दुश्मनी मुख्तार से शुरू होती है। बाद में साधु सिंह की गाजीपुर जिला अस्पताल में उस समय गोली मार कर हत्या कर दी गई जब वह वहां भर्ती अपने बेटे को देखने गया था। कहा जाता है कि बृजेश और त्रिभुवन ने पुलिस की वर्दी में इस घटना को अंजाम दिया था। बाद में मकनू सिंह की भी गाजीपुर में सिंचाई विभाग चौराहे पर बम मार कर हत्या कर दी गई। आरोप बृजेश और त्रिभुवन पर लगा। साधू और मकनू सिंह की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी गिरोह का सरगना बना। उसने न सिर्फ दोनों परिवारों की जिम्मेदारी उठाई बल्कि उनकी हत्याओं का बदला भी लिया। त्रिभुवन के भाई राजेन्द्र सिंह को उसने बनारस पुलिस लाइन के पास अचूक निशाना लगा कर ढेर कर दिया। बाद में बृजेश सिंह के साथ कृष्णानंद राय सुभाष ठाकुर जैसे लोग भी जुड़ते चले गए। दोनों गिरोहों के बीच कई बार टकराव हुआ और अनेक हत्याएं हुईं।