(अजीत सिंह )
गाजीपुर (काशीवार्ता)। माफियाओं और परिवारवाद को संरक्षण देने वाली सपा ने भाजपा को कड़ा संदेश देते हुए मुख्तार के भतीजे मन्नू अंसारी को मुहम्मदाबाद से मैदान में उतारकर अपने दामन को पाक साफ करने की बड़ी कोशिश की है। विदेश से पढ़े लिखे मन्नू अंसारी को करईल के सियासत की अच्छी समझ है। यही कारण रहा कि मुख्तार के बेटे के बाद अब अफजाल और उनके भाई पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी ने मुहम्मदाबाद से अपना वारिश मन्नू अंसारी को घोषित करके नई सियासी चाल चली है। मन्नू की युवाओं में जबरदस्त पकड़ी मानी जाती है।
अंसारी बंधुओं की परंपरागत सीट मुहम्मदाबाद के सपा प्रत्याशी रहे सिबगतुल्लाह अंसारी का घोषित टिकट
काटकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने उनके बेटे मन्नू अंसारी को मैदान में उतारकर लोगों को आश्चर्य में डाल दिया। अपने चाचा अफजाल अंसारी से राजनीति का ककहरा सीखने वाले मन्नू अंसारी ने 2017, 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव को लीड करके चर्चा में आए थे। यही नहीं उन्होंने नामांकन पत्र भी दाखिल किया था। लेकिन जब अब्बा और चच्चा का नामांकन वैध हो गया तो उन्होंने इसे वापस भी ले लिया। अगर मुहम्मदाबाद में सांसद अफजाल अंसारी के सियासी सफरनामे पर गौर फरमाया जाए तो 1984 से लेकर 2002 तक वह विधायक निर्वाचित होते रहे। मगर 2002 में पहली बार भाजपा के कृष्णानंद राय ने उनको पटखनी दी थी। जबकि 1996 में अफजाल ने कृष्णानंद को परास्त किया था। कृष्णानंद राय की मौत के बाद 2006 में उपचुनाव हुए तो अलका राय विधायक बनीं। एक वर्ष बाद 2007 में अंसारियों ने राय परिवार से यह सीट छिन ली थी। फिर 2012 में भी सिबगतुल्लाह अंसारी विधायक निर्वाचित हुए। मगर 2017 का चुनाव आया तो सिबगतुल्लाह अंसारी हार गए। इस तरह से कुल तीन चुनाव ही 1984 से लेकर अब तक अंसारी हारे थे। वैसे एक चुनाव में उनके खास गामा राम को हार मिली थी। अब अंसारियों के वारिश मन्नू ने मैदान में आने के लिए मुहम्मदाबाद से नामांकन किया है। यही हाल मऊ सदर सीट का है। यहां से मुख्तार के बेटे अब्बास ने नामांकन करके सियासतदानों को हैरान
कर दिया। सियासी पंडितों की मानें तो अंसारियों ने 2022 के चुनाव में अपने वारिशों को मैदान में उतारकर दो तरह का संदेश दिया है। एक तो वे अब सियासत को अलविदा कहकर अपनी नई सियासी पौध को हराभरा करने की कोशिश में जुटेंगे। साथ ही भाजपा के बुल्डोजर वाली राजनीति का जवाब देंगे। लेकिन इन दोनों से अलग हटकर जो बात सामने आ रही है उसमें यह कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ने भाजपा के सियासी वार से बचने के लिए ही मुख्तार एवं अफजाल के वारिशों को मैदान में उताकर भाजपा को घेरने की रणनीति बनाई है। इस विधानसभा चुनाव में यह तय भी हो जाएगा कि अंसारियों के वारिश स्थापित होंगे, या फिर उन्हें राजनीति में संघर्ष करना पड़ेगा।