मेरी काशी के सपनों को तोड़ रही अफसरशाही


(विशेष प्रतिनिधि)
वाराणसी(काशीवार्ता)। नदेसर पर 4 दिन पहले हुआ गड्ढा सिर्फ एक गड्ढा नहीं बल्कि यह प्रशासनिक अफसरों और जनप्रतिनिधियों की विफलता का आईना भी है। यह गढ़ा इस बात को दर्शाता है कि अफसरों के पास शहर के लिये न तो कोई योजना है न विजन। सब कुछ यथास्थितिवाद के तहत चल रहा है मतलब जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो। कहीं छेड़छाड़ न करो नही तो कुर्सी चली जायेगी। अफसरों के कुर्सी मोह ने शहर का बेड़ा गर्क कर दिया है।अफसरशाही कुछ करना ही नहीं चाहती। अब तो चुनाव आ गया है। अब तो कुछ हो भी नहीं सकता। कहीं ऐसा न हो कि कुछ बड़ा करने के चक्कर में वोट बैंक बिगड़ जाय और अफसरों को ऊपर का कोपभाजन बनना पड़े। अब नदेसर के गढ़े को ही लें। उसी स्थान पर करीब आधा दर्जन बार पहले भी पाइप लीकेज की वजह से गड्ढा हुआ। सड़क खुदी फिर पाटी गयी। सारे शहर की ट्रैफिक कई दिनों तक डिस्टर्ब रही। जितने दिन गड्ढा रहा उतने दिन चिंता भी रही। उधर गड्ढा पटा इधर चिंता भी खत्म। किसी अफसर या जनप्रतिनिधि ने यह जानने की कोशिश नहीं कि आखिर इस समस्या का स्थायी समाधान क्या है। यह सही है कि गड्ढा कहीं भी और कभी भी हो सकता है, लेकिन एक गड्ढे की वजह से पूरे शहर का ट्रैफिक डिस्टर्ब हो जाय यह स्वीकार्य नहीं हो सकता। नदेसर में जिस जगह पर उक्त गड्ढा खोदा गया वहाँ पीडब्ल्यूडी के नक्शे के हिसाब से एक लेन में 40 फुट तथा दोनो लेन मिला कर 80 फुट चौड़ी सड़क होनी चाहिये। पर अतिक्रमण के चलते मौके पर एक लेन में मात्र 20 फीट सड़क बची है। दूसरी लेन में मस्जिद का चबूतरा है। यह सिर्फ एक सड़क की स्थिति नहीं है बल्कि शहर की ज्यादातर सड़कों की यही हालत है। शहर के ज्यादार प्रमुख मार्गों पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। उदाहरण के तौर पर कैंट लंका और कैंट मैदागिन मार्ग को लिया जा सकता है। राजस्व नक्शे के अनुसार दोनो ही मार्गो की चौड़ाई कम से कम 60 फीट होनी चाहिये परन्तु अतिक्रमण के चलते कहीं कहीं तो सड़क 20 फीट भी नहीं बची है। अब खुदा न खास्ता इन सड़कों पर गड्ढे हो जाय तो ट्रैफिक की क्या हालत होगी आसानी से समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के बाद से वाराणसी के विकास के लिये खजाना खोल दिया। हजारों करोड़ भिजवाये, लेकिन अफसरशाही के चलते ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया जिसे मील का पत्थर कहा जा सके।बाबतपुर फोरलेन को छोड़ दिया जाय तो सात साल होने को है धरातल पर कोई विकास कार्य नहीं दिख रहा है। बाबतपुर फोरलेन का श्रेय भी केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को जाता है। खम्भो पर रंगबिरंगी लाइटों को अगर विकास कार्य माना जाय तो जरूर विकास हुआ है। पिछले सात सालों में सिर्फ दो फ्लाईओवर आशापुर और चौकाघाट का बनकर तैयार हुआ। उसकी भी गुणवत्ता सवालों के घेरे में है। कज्जाकपुरा आरओबी,फुलवरिया फोरलेन आदि कार्य समय से काफी पीछे चल रहे हैं। जिस तरह से केंद्र ने काशी के विकास के लिये खजाना खोला है, बेहतर अफसरशाही होती तो शहर में विकास की गंगा बह रही होती। परन्तु दुर्भाग्य इस शहर और यहाँ के नागरिकों का है कि अफसर सिर्फ हवाई किले बनाने में व्यस्त हैं। कभी मेट्रो तो कभी रोपवे कागज पर दौड़ने में व्यस्त हैं। चुनाव सिर्फ कुछ महीने ही दूर हैं। ऐसे में शहर की जो हालत है वह जनता में आक्रोश पैदा कर रही है। कहीं ऐसा न हो कि चुनाव में यह लावा बह निकले।