कभी हार न मानने के जज्बे का दूसरा नाम है संजय गुप्ता


वाराणसी(काशीवार्ता)। वाराणसी के व्यापार और राजनीतिक जगत में आज संजय गुप्ता एक जाना पहचाना नाम है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा सफलता के इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें कितनी असफलता और टेढ़े मेढे रास्तों से गुजरना पड़ा। उनकी जिंदगी पर आसानी से एक वेब सीरीज बनाई जा सकती है। पिता काशी नाथ गुप्त एलआईसी एजेंट थे।चाहते थे कि बेटा भी इसी क्षेत्र में आए, लेकिन बेटे का सपना तो कुछ और ही था। वह कुछ बड़ा करना चाहता था। यह सन 80 का दौर था। संजय गुप्ता ने अपने व्यवसाय की शुरूआत वीडियो फोटोग्राफी से की। फिर कलर लैब, वीडियो कैसेट लाइब्रेरी से गुजरता उनका कारवां केबल टीवी तक आ पहुंचा। अपनी ऊंची सोच से मजबूर उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसने उन्हें सफलता की सीढ़ी दिखा दी। उन्होंने सपना देखा कि पूरे बनारस में एक केबल टीवी नेटवर्क होना चाहिए। इस निमित्त उन्होंने सीटीवी नामक संस्था की स्थापना की। आॅफिस सिगरा पर खुला। उस दौरान बनारस में हर मुहल्ले में स्वतंत्र केबल टीवी आॅपरेटर होते थे। संजय गुप्ता ने मुंह मांगे दामों में उन्हें खरीद लिया। सिगरा में ही स्टूडियो बनवाया, जहां से स्थानीय प्रोग्राम न्यूज आदि का प्रसारण शुरू हुआ। यह सन 90 के दशक का दौर था। अभी इस व्यवसाय को शुरू हुए कुछ महीने ही हुए थे कि जी टीवी की बनारस में इंट्री हुई। सिटी केबल के माध्यम से उसने भी केबल टीवी के क्षेत्र में कदम रखा। स्थानीय फ्रेंचाइजी से सीटीवी को अनैतिक प्रतिस्पर्धा मिली और संजय गुप्ता का बिजनेस तबाह हो गया। करोड़ों रुपए डूब गए। इनकी जगह और कोई होता तो शायद मैदान छोड़ देता किंतु संजय गुप्ता मजबूती से मैदान में डटे रहे। उन्होंने कुछ समय के लिए एक दूसरे चैनल की पराधीनता स्वीकार की। उससे जुड़े रहे। इसी दौरान वे रीयल स्टेट के बिजनेस में आए। उन्हें कुछ अच्छे पार्टनर मिले जिन्होंने बुरे वक्त में इनका साथ दिया। रीयल स्टेट का बिजनेस चल निकला। आज संजय गुप्ता की गिनती शहर के टॉप 10 बिल्डरों में होती है। शहर के हर कोने में खड़ी इनकी बिल्डिंगे इनकी सफलता की कहानी खुद ब खुद बयां करती हैं। सफलता भी ऐसी वैसी नहीं जिस प्रतिद्वंदी ने इन्हे बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। उस सिटी केबल के भी आज आप ही सर्वेसर्वा हैं।
राजनीति में रखा कदम
व्यापार में सफलता की ऊंचाइयां तय करने के बाद इन्होंने राजनीति में कदम रखा। समाजवादी पार्टी से चला इनका काफिला भाजपा में स्थाई ठौर पाया। संजय गुप्ता की पत्नी साधना गुप्ता ने सपा से वाराणसी सीट से मेयर का चुनाव लड़ा था। हालांकि वे जीत नहीं सकी पर प्रतिद्वन्दी को कड़ी टक्कर दी। संजय गुप्ता की सफलता में उनकी पत्नी का बहुत बड़ा योगदान है। बुरे वक्त में अगर ये चट्टान की तरह न खड़ी होती तो शायद वे इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते। संजय गुप्ता फिलहाल भाजपा में आर्थिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष है।